‘एक्स रे’ के बाद ही इलाज

Last Updated 21 Oct 2023 01:28:10 PM IST

तेलंगाना में अपने चुनाव प्रचार में राहुल गांधी जातिगत जनगणना को प्रमुख मुद्दा बनाते नजर आए। उन्होंने केंद्र की भाजपा सरकार और बीआरएस की राज्य सरकार, दोनों को यह गणना नहीं कराने पर घेरा और कांग्रेस के राज्य में सत्ता में आने पर जातिगत जनगणना कराने का वादा किया।


‘एक्स रे’ के बाद ही इलाज

वास्तव में तेलंगाना अकेला राज्य नहीं है जहां कांग्रेस इस तरह की गणना कराने का वादा कर कर रही है। इससे पहले, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि दूसरे जिन राज्यों में अगले महीने विधानसभाई चुनाव होने हैं, उन सभी में कांग्रेस ऐसा वादा कर चुकी है बल्कि कांग्रेस शासित राज्यों में तो ऐसी गणना के आदेश भी हो चुके हैं। साफ है कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव के वर्तमान चक्र में और आगामी आम चुनाव में भी, जातिगत जनगणना को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की उम्मीद कर रही है।

वास्तव में जब से बिहार में नीतीश सरकार ने जातिगत सव्रेक्षण के आंकड़े जारी किए हैं, उसके बाद से जातिगत गणना की बहस में काफी तेजी आई है।

इस बीच, ओडिसा तथा कर्नाटक में इस तरह की गणनाओं के जो विवरण अनौपचारिक रूप से सामने आए हैं, उनसे इस मांग को और बल ही मिला है। सारे संकेत भी इसी के हैं कि अनूसूचित जातियों व जनजातियों से इतर, सामाजिक रूप से पिछड़े वगरे का राजनीति, प्रशासन, शिक्षा, नौकरियों आदि में प्रतिनिधित्व अब भी, उनकी संख्या के अनुपात से उल्लेखनीय रूप से कम बना हुआ है। स्वाभाविक रूप से यह इस गणना की मांग को इन तबकों की अपेक्षाओं के वाहक के रूप में बल देता है।

राहुल गांधी इस गणना के संबंध में समाज के ‘एक्स रे’ के रूपक का प्रयोग करते हैं, जो बेशक बहुत सटीक है, लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि जाति गणना सिर्फ एक्स रे है उपचार नहीं। यह एक्स रे समाज की आंतरिक रचना की हमारी जानकारी को तो बढ़ाता है और इसलिए उसकी उपयोगिता असंदिग्ध है, लेकिन असली मुद्दा तो इस बेहतर जानकारी से, बेहतर उपचार तक की यात्रा का है।

कांग्रेस, जो इस मामले में नव-दीक्षित की तरह आचरण कर रही है, समाज को स्वस्थ बनाने के लिए उपचार के मामले में कोई नए विचार या मांग पेश करती नजर नहीं आती है, लेकिन उपयुक्त उपचार के बिना तो ये एक्स रे भी एक और गैरजरूरी टेस्ट ही बनकर रह जाएगा।



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