संसद पर छोड़ा

Last Updated 19 Oct 2023 01:58:07 PM IST

समलैंगिक विवाह के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ का बहुमत से फैसला देश के बड़े वर्ग को रुचा होगा।


संसद पर छोड़ा

इसमें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ समेत पांचों न्यायाधीशों ने एकमत से समलैंगिक जोड़े को विवाह करने और उन्हें सिविल यूनियन में प्रवेश का हक देने से इनकार किया है। बच्चा गोद लेने के इनके अधिकार को भी नहीं माना है। इस फैसले से विशेष विवाह अधिनियम-1954 बरकरार रह गया है, जिसमें केवल एक ‘पुरु ष’ और एक ‘महिला’ के बीच विवाह की ही अनुमति है। देश का बड़ा तबका इसे भारतीय संस्कृति और परिवारवाद की मौलिक अवधारणा पर न्यायालय की मुहर मान रहा है।

विभिन्न धार्मिक समुदायों के प्रसन्न होने के भी अपने जाहिर कारण हैं। इनसे तटस्थ तबका भी बहुत राहत में है, जो समलैंगिकता को प्रकृतिगत यौन रुझान का एक प्रकार न मान कर उसे मानसिक विकृति मानता है-हालांकि यह कोई विकार नहीं है-और किंतु-परंतु के साथ यथास्थितिवादी है। पर संविधान पीठ का यह फैसला समलैंगिक समुदाय के लिए एक झटके से कम नहीं है, जो इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया प्रगतिशील फैसलों और उसके सामान्य खुलेपन से एक बड़ी उम्मीद लगा बैठे थे। जब इसी अदालत ने आईपीसी की धारा 377 को रद्द करके समलैंगिकता को अपराधमुक्त कर दिया था।

फिर, समलैंगिक व्यक्ति की यौन स्वायत्तता को निजता के उनके मौलिक अधिकार के एक पहलू के रूप में मान्यता दी थी। इनसे उत्साहित समलैंगिक जोड़े ने पिछले साल नवम्बर में भारतीय पारिवारिक कानून के तहत शादी करने में अपनी असमर्थता को समानता, जीवन और स्वतंत्रता, गरिमा, स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति आदि के उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए  एक याचिका दायर की थी। अदालत ने मई में सुरक्षित रखे फैसले में कहा कि विवाह कानून के दायरे में समलैंगिकों की शादी को वैध करने के लिए ‘विधायी संरचना’ और नीतियों की एक विस्तृत श्रृंखला में बदलाव करने होंगे।

निश्चित रूप से यह विधायी कार्य है। इसके लिए अदालत ने केंद्र से मुद्दे से संबंधित मसलों पर व्यापक रूप से विचार के लिए एक समिति बनाने का सुझाव दिया है, जिसे मान भी लिया गया है। इसमें तैयार मसौदा जब संसद में विचार के लिए आएगा तब यह देखना दिलचस्प होगा कि वह भारतीय परिवार-संस्कृति की रक्षा में इसे खारिज करेगी या उन कुछेक देशों के साथ ‘प्रगतिशील’ दिखेगी, जहां समलैंगिक शादी की इजाजत है?



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