साइबर क्राइम : ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट से दहशत’

Last Updated 23 Oct 2024 01:27:26 PM IST

डिजिटल हाउस अरेस्ट’ साइबर अपराध का नया स्वरूप है, जिससे आमजन दहशतजदा हैं, क्योंकि आए दिन कोई न कोई साइबर ठगों का शिकार बन रहा है और ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’ की खबरें अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं।


ऐसी ठगी में पढ़े-लिखे लोग ज्यादा शिकार बन रहे हैं और ठगी के शिकार लोगों में बुजुगरे की संख्या अधिक है।

विगत वर्षो में साइबर अपराधों में काफी विविधता आई है। ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तर्ज पर अपराधी अब नये-नये तरीकों से साइबर अपराध को अंजाम दे रहे हैं। इस क्रम में नई मोडस ऑपरेंडी है ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’। इस तकनीक की मदद से ऑनलाइन फ्रॉड में काफी तेजी आई है। उदाहरण के तौर पर अक्टूबर 2024 के पहले सप्ताह में मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में एक 65 साल की बुजुर्ग महिला को 5 दिनों तक डिजिटली घर में कैद करके फर्जी पूछताछ किया गया और 46 लाख रुपए ठगे गए। इसी तर्ज पर अगस्त महीने में लखनऊ की एक महिला न्यूरो डॉक्टर को 6 दिनों तक डिजिटली गिरफ्तार करके ठगों ने 2.8 करोड़ रुपए ठग लिए। दोनों मामले में ठग खुद को सीबीआई अधिकारी बता रहे थे और बुजुर्ग महिला एवं महिला डॉक्टर को हवाला कारोबार में उनकी संलिप्तता बताकर इन दोनों ठगी को अंजाम दिया।

इस तरह की ठगी में ठग पुलिस, सीबीआई, ईडी, इंटेलिजेंस ब्यूरो, रॉ,नॉरकोटिक्स आदि का अधिकारी बनकर आडियो या वीडियो कॉल करके टार्गेट इतना डराते हैं कि वह अपनी जिंदगी भर की जमापूंजी ठग के खाते में ट्रांसफर कर देता है। ठगी को अंजाम देने के लिए ठग हर तरह के हथकंडे अपनाता है, जैसे टार्गेट के खाते का इस्तेमाल हवाला के लिए किया जा रहा है या उसका करीबी गिरफ्तार हो गया है या वह ड्रग्स स्मगलिंग या आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है आदि। ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’ को मूर्त रूप देने के लिए ठग आर्टििफशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल कर रहे हैं।

एआई के जरिये वे टार्गेट के सगे-संबंधियों के आवाज की नकल करके या फिर उसकी हूबहू वीडियो बनाकर टार्गेट को यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो जाते हैं कि वे गंभीर संकट में हैं। ठगे जाने का मुख्य कारण डर, जागरूकता की कमी, सतर्क नहीं रहना और कुछ मामलों में खुद का भ्रष्ट होना है। चूंकि,‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’ या दूसरे साइबर अपराधों को रोकने के लिए अभी भी पुख्ता कानून और प्रशिक्षित मानव संसाधन का अभाव है, इसलिए ऐसी ठगी को रोकना भारत में हाल-फिलहाल में असंभव लग रहा है। आज की तारीख में देश में प्रशिक्षित साइबर पुलिस की भारी कमी है, जिसका फायदा साइबर ठगों को मिल रहा है। ‘वि साइबर अपराध सूचकांक’ में भारत दुनिया में 10वें स्थान पर है। इस सूचकांक में 100 देशों को शामिल किया गया है, जिसके मुताबिक साइबर अपराध के मामले में रूस शीर्ष पर है, जबकि यूक्रेन (2), चीन (3), अमेरिका (4), नाइजीरिया (5), रोमानिया (6) और उत्तर कोरिया (7) वें स्थान पर है।

आजकल किशोर बच्चियों को ऑनलाइन चैटिंग एप के जरिये ब्रेनवॉश करके या उनकी अश्लील तसवीरों को पॉर्न मार्केट में बेचकर और उनके पैरेंट्स को ब्लेकमेल करके ठगी को अंजाम दिया जा रहा है। ऑनलाइन गेमिंग, कूरियर, रिश्तेदार, दोस्त की गिरफ्तारी आदि की धमकी, अश्लील वीडियो आदि नये-नये तरीकों की मदद से ठगी करने के वारदातों में तेजी आई है। स्नैप चैट, फेसबुक और इंस्टाग्राम भी अब ठगी के साधन बन गए हैं। मित्र या रिश्तेदार की फर्जी प्रोफाइल बनाकर ऐसी ठगी को अंजाम दिया जा रहा है। हाल के वर्षो में कॉल फॉरवर्डिंग के जरिये साइबर अपराध करने की घटनाओं में उल्लेखनीय तेजी आई है। इस सुविधा का इस्तेमाल उपभोक्ता तब करते हैं, जब वे मीटिंग या किसी जरूरी काम में व्यस्त होते हैं, ताकि कोई जरूरी कॉल मिस न हो। बीते कुछ वर्षो से गूगल सर्च इंजन पर लोग अपने हर प्रश्न का जबाव ढूंढ रहे हैं। ऐसे मनोविज्ञान को दृष्टिगत कर ठग नामचीन भुगतान एप्स जैसे, गूगल पे, फोन पे, पेटीएम के नाम से अपना नंबर इंटरनेट पर सहेज रहे हैं, जिसके कारण खुद से लोग हैकर्स के जाल में फंस जाते हैं। ब्राउजर एक्सटेंशन के डाउनलोडिंग के जरिये भी साइबर अपराध किए जा रहे हैं। यह काम वायरस के जरिये किया जाता है। क्रोम, मोजिला आदि ब्राउजर के जरिए किए गए ऑनलाइन लेनदेन ब्राउजर के सर्वर में सेव हो जाते हैं, जिन्हें सेटिंग में जाकर डिलीट करने की जरूरत होती है, लेकिन अज्ञानतावश लोग ऐसा नहीं करते हैं, जिसका फायदा साइबर ठग उठाते हैं।

फिशिंग के तहत किसी बड़ी या नामचीन कंपनी का फर्जी बेवसाइट बनाकर लुभावने मेल किए जाते हैं, जिसमें मुफ्त में महंगी चीजें देने की बात कही गई होती है। हैकर्स एसएमएस या व्हाट्सएप के जरिये भी ऑफर वाले मैसेज भेजते हैं, जिसमें मैलवेयर युक्त हाइपर लिंक दिया हुआ होता है। आजकल साइबर अपराधी फोन काल्स या एसएमएस के द्वारा लोगों को बिना कर्ज लिए ही कर्जदार बताकर उनसे पैसों की वसूली कर रहे हैं। ऐसी ब्लेकमेलिंग छोटी राशि मसलन 2000 से 5000 रुपए के लिए ज्यादा की जा रही है, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर लोग पुलिस में शिकायत नहीं करें।

ब्राउजिंग सेशन के दौरान संदेहास्पद पॉप अप से सतर्क रहें, ण्द्यद्यद्रद्म://पैड लॉक सिंबल वाला छङख््र है या नहीं को सुनिश्चित करें, वेबसाइट्स या मोबाइल या पब्लिक लैपटॉप या डेस्कटॉप पर कार्ड की जानकारी साझा नहीं करें, अंजान नंबर या ईमेल आईडी से आए अटैचमेंट को तुरंत डिलीट कर दें और ऑनलाइन लॉटरी, कैसिनो, गेमिंग, शॉपिंग या फ्री डाउनलोड वाले मैसेज की उपेक्षा करें तो फिशिंग मेल या एसएमएस या व्हाट्सएप के जरिये फॉर्वड होने वाले संदेहास्पद हाइपर लिंक के जाल से बचा जा सकता है। साथ ही, कभी मनोवैज्ञानिक दबाव में नहीं आएं। धमकी मिलने पर पुलिस की मदद लेने से नहीं हिचकें। हमेशा जागरूक रहें। फोन, कंप्यूटर, टैबलेट के सॉफ्टवेयर को समयानुसार अपडेट करें, मजबूत पार्सवड, अंजान लिंक को ओपेन करने से बचें, निजी जानकारी को सुरक्षित रखें, सार्वजनिक वाई-फाई के इस्तेमाल में सावधानी बरतें, एंटीवायरस का इस्तेमाल करें और नियमित रूप से उसे अपडेट करें आदि। सबसे महत्त्वपूर्ण है लालच से परहेज करें। मामले में सावधानी ही बचाव है।
(लेखक के निजी विचार हैं)

सतीश सिंह


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