उत्तर प्रदेश की हजारों शत्रु सम्पत्तियों पर स्थापित होंगे चारा उत्पादन और पशु संरक्षण केंद्र
उत्तर प्रदेश की हजारों शत्रु संपत्तियों पर चारा उत्पादन और पशु संरक्षण केंद्र स्थापित करने की योजना बनाई जा रही है।
CM Yogi |
वर्षों से बेकार पड़ी इन संपत्तियों को लेकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने ऐसी योजना बनाई है जिससे ना सिर्फ इन खाली पड़ी जमीनों का सदुपयोग हो सकेगा बल्कि आवारा पशुओं को भी आसानी इन केंद्रों पर रखा जा सकेगा। जो जानकारी मिल रही है, उसके मुताबिक सरकार ने इस संदर्भ में केंद्रीय गृहमंत्रालय से शत्रु संपत्तियों की जानकारी मांगी है। यहां बता दें कि प्रदेश में 7624 गोआश्रय स्थलों में 12 लाख से अधिक गोवंश हैं, जिनके लिए हरे चारे की कमी हो रही है। इस समस्या का समाधान करने के लिए शत्रु संपत्तियों पर चारा उत्पादन केंद्र खोलने की योजना बन चुकी है। इसके साथ ही, शत्रु संपत्तियों पर पशु संरक्षण केंद्र भी स्थापित किए जाएंगे, जहां गोवंश की देखभाल की जाएगी। इस योजना के तहत केंद्र सरकार भूमि उपलब्ध कराएगी, जबकि प्रदेश सरकार उन पर आवश्यक सुविधाएं विकसित करने की जिम्मेदारी निभाएगी। इन केंद्रों के माध्यम से प्रदेश में चारे की कमी को दूर करने और गोवंश की बेहतर देखभाल की उम्मीद की जा रही है।
जहां तक पूरे देश में शत्रु सम्पत्तियों की बात है तो अब 12,611 शत्रु संपत्तियों की पहचान की जा चुकी है, जो 20 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों में फैली हुई हैं। इनमें सबसे अधिक शत्रु संपत्तियां उत्तर प्रदेश में हैं, जिनकी संख्या लगभग 7624 है। प्रदेश सरकार इन्हीं संपत्तियों का उपयोग पशु संरक्षण के लिए करना चाहती है। दरअसल, विभाजन के समय बहुत से लोग पाकिस्तान चले गए थे, जबकि कुछ चीन भी गए। उन सबके नाम पर दर्ज जमीन-जायदाद का तब कोई वैधानिक प्रबंधन नहीं हो सका, जिससे उनके मालिकाना हक का सवाल विवादित बना रहा। ऐसे संपत्तियों को तकनीकी रूप से शत्रु संपत्ति कहा गया। संभव है कि ऐसी संपत्तियों के कुछ वास्तविक दावेदार भी रहे हों, लेकिन इससे संबंधित कोई व्यावहारिक कानून न होने का लाभ उठाकर कई लोगों ने फर्जी दावे पेश करके उन पर कब्जा जमा लिया। कई स्थानों पर भूमाफिया ने अवैध रूप से इमारतें भी खड़ी कर दीं।
सरकार की ओर से कराए गए सर्वेक्षण के बाद यह स्पष्ट हुआ कि चिह्नित ऐसी संपत्तियों में से 12,485 संपत्तियां पाकिस्तान जा चुके लोगों की हैं, जबकि 126 संपत्तियों पर कभी मालिकाना हक रखने वाले चीन की नागरिकता ले चुके हैं। ऐसे में, शुरुआती दौर में ही यह आवश्यक था कि सरकारी तंत्र ऐसी विवादित या बिना मालिकाना हक वाली संपत्तियों को चिह्नित करके उनका उचित प्रबंधन करे। ऐसा करने से यह कार्य अधिक सरल हो जाता। लेकिन संभवतः प्रक्रियागत जटिलताओं के कारण यह काम दशकों तक लटका रहा। फिलहाल, ऐसी सभी संपत्तियां भारत के शत्रु संपत्ति के अभिरक्षक (सीईपीआइ) के अधीन हैं।
इन संपत्तियों के निपटान के लिए नई व्यवस्था के तहत अब जो कार्रवाई की जाने वाली है, उसमें तय प्रक्रिया के अनुसार, यदि किसी शत्रु संपत्ति की कीमत एक करोड़ रुपए से कम आंकी गई है, तो सीईपीआइ की ओर से पहले उन पर काबिज लोगों से ही उन्हें खरीदने की पेशकश की जाएगी। यदि वे इनकार करते हैं, तो गृह मंत्रालय की ओर से जारी दिशा-निर्देशों के तहत उन्हें बेचा जाएगा। बहरहाल शत्रु सम्पत्तियों पर योगी की यह पहल सराहनीय है। अगर यह योजना सफल हो जाती है तो निश्चित तौर पर यह एक नजीर बनेगी।
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