भारत की चुनौती : प्राकृतिक खेती और खाद्य सुरक्षा

Last Updated 23 Oct 2024 01:21:53 PM IST

राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF) भारत में सतत कृषि को बढ़ावा देने की दिशा में एक साहसिक कदम है।


यह हरित क्रांति-आधारित खेती से जुड़े कई पर्यावरणीय मुद्दों का समाधान करता है, लेकिन भारत की बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध कराने और छोटे किसानों के सामने आने वाली आर्थिक चुनौतियों के संदर्भ में कुछ महत्त्वपूर्ण सवाल भी खड़े करता है। 2050 तक भारत की आबादी 1.6 अरब तक पहुंचने का अनुमान है। ऐसे में देश की कृषि पद्धतियों का न केवल पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ होना जरूरी है, बल्कि उन्हें बढ़ती आबादी की खाद्य सुरक्षा की आवश्यकताओं को भी पूरा करना चाहिए।

एनएमएनएफ के संदर्भ में एक प्रमुख सवाल यह है कि क्या प्राकृतिक खेती के तरीके हरित क्रांति के दौरान हासिल की गई उच्च पैदावार की बराबरी कर सकते हैं। हरित क्रांति ने, अपने पर्यावरणीय प्रभावों के बावजूद, भारत को खाद्यान्न की कमी से आत्मनिर्भर राष्ट्र बनने में सहायता की। उच्च उत्पादकता वाली गेहूं और चावल की किस्मों के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग ने कृषि उत्पादकता में जबरदस्त वृद्धि की। इसके विपरीत, शून्य बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) जो बाहरी इनपुट्स को न्यूनतम करने पर जोर देती है, अब तक बड़े पैमाने पर उतनी अधिक उत्पादकता नहीं दिखा पाई है।

गुजरात में किए गए शोध के अनुसार, दक्षिण सौराष्ट्र जैसे क्षेत्रों में शून्य बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) की पैदावार, हरित क्रांति-आधारित खेती की तुलना में कम पाई गई। कुछ मामलों में प्रतिकूल मौसम की स्थितियों में यह अंतर और बढ़ गया, जिससे यह सवाल उठने लगे कि प्राकृतिक खेती मौसम की अनिश्चितताओं को कितनी अच्छी तरह संभाल सकती है। उदाहरण के लिए, जहां प्राकृतिक खेती ने समय के साथ मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार किया, वहीं शुरु आती चरणों में पैदावार में गिरावट देखी गई। यह उन किसानों के लिए चिंताजनक हो सकता है जो अपनी आजीविका के लिए संतोषजनक और स्थिर फसल उत्पादन पर निर्भर हैं। प्राकृतिक खेती का बड़े पैमाने पर विस्तार एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न बना हुआ है।

छोटे प्रयोगात्मक खेतों में प्राकृतिक खेती के उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं, लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि इसे भारत की विशाल आबादी की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है या नहीं। प्राकृतिक खेती की सफलता मुख्य रूप से स्थानीय जैव विविधता, जलवायु और मिट्टी की परिस्थितियों पर निर्भर करती है, जिससे इसे पूरे भारत के विविध कृषि परिदृश्यों में समान रूप से लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

उदाहरण के लिए, उत्तरी भारत के वे क्षेत्र जो पानी-आधारित फसलों जैसे चावल और गेहूं पर अत्यधिक निर्भर हैं, वे प्राकृतिक खेती की पद्धतियों को अपनाने में कठिनाइयों का सामना कर सकते हैं। छोटे किसानों के लिए आर्थिक व्यवहार्यता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। गुजरात के अध्ययनों से पता चला है कि प्राकृतिक खेती में इनपुट लागत कम होती है, लेकिन संक्रमण अवधि के दौरान संभावित पैदावार में कमी से किसानों की आय पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और खाद्य असुरक्षा बढ़ने का खतरा है।

यह आर्थिक बोझ विशेष रूप से छोटे किसानों के लिए चिंताजनक है, क्योंकि वे भारत की कृषि श्रमशक्ति का बड़ा हिस्सा हैं। खाद्य सुरक्षा भी एक प्रमुख मुद्दा है। भारत की कृषि को देश की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लगातार पर्याप्त उत्पादन बनाए रखना चाहिए, खासकर जब आबादी के बढ़ने की संभावना है। प्राकृतिक खेती, भले ही पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देती हो, लेकिन इसकी पैदावार क्षमता अभी भी हरित क्रांति-आधारित खेती की तुलना में स्पष्ट रूप से कम है।

आलोचकों का मानना है कि प्राकृतिक खेती के तरीके, जो मुख्य रूप से कृषि पारिस्थितिकी तंत्र और घटे हुए इनपुट्स पर आधारित हैं, बढ़ती खाद्य मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हो सकते। हरित क्रांति-आधारित खेती, जो रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भर करती है, से प्राकृतिक खेती की ओर परिवर्तन के लिए व्यापक शिक्षा, प्रशिक्षण और संसाधनों की आवश्यकता होगी।

हरित क्रांति की सफलता केवल उच्च उत्पादक फसलों की शुरु आत के कारण नहीं थी, बल्कि सिंचाई, कीट प्रबंधन और फसल प्रजनन में तकनीकी प्रगति के कारण भी थी। एनएमएनएफ पर्यावरणीय दृष्टि से टिकाऊ कृषि का एक आशाजनक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, लेकिन कई महत्त्वपूर्ण सवाल अब भी अनुत्तरित हैं। पैदावार की तुलना, आर्थिक व्यवहार्यता, और खाद्य सुरक्षा ऐसे क्षेत्र हैं जहां प्राकृतिक खेती को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

भारत की बढ़ती जनसंख्या और बदलती कृषि आवश्यकताओं को देखते हुए स्थिरता और उत्पादकता के बीच संतुलन बनाना बहुत जरूरी है। प्राकृतिक खेती और हरित क्रांति-आधारित खेती के सर्वोत्तम तरीकों को एक साथ लाना, साथ ही आधुनिक तकनीकी नवाचारों का उपयोग करना, सबसे प्रभावी रास्ता हो सकता है।

डॉ. धीरज यादव


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