पेंशन पर चुनावी दांव

Last Updated 21 Oct 2023 01:33:14 PM IST

चुनावों को देखते हुए केंद्र सरकार पुरानी पेंशन की तर्ज पर नेशनल पेंशन योजना यानी एनपीएस की तैयारी में है। मोदी सरकार ने वित्त सचिव की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था, जिसे एनपीएस में सुधार करने के सुझाव देने को कहा गया था।


पेंशन पर चुनावी दांव

इस कमेटी ने आखिरी वेतन का 40 से 45 फीसद तक पेंशन देने की बात की है। एनपीएस 2004 में लागू किया गया था, जिसमें 10 फीसद हिस्सा सरकारी कर्मचारी अपने वेतन से जमा करते हैं। इसमें केंद्र सरकार 14 फीसद राशि देती है। इस राशि को सरकार शेयर बाजार में निवेश करती है।

इससे जो र्टिन आता है, वह कर्मियों के खाते में डाल दिया जाता है। पेंशन राशि इन्हीं निवेशों को मिलाकर बनेगी। पुरानी पेंशन स्कीम में आखिरी वेतन का 50 फीसद पेंशन सरकारी खजाने से मिलती थी। इसमें कर्मचारियों का कोई योगदान नहीं था, जबकि 2004 के बाद भर्ती कर्मियों के 2030 में अवकाश प्राप्त होने के बाद बीस से पच्चीस हजार रुपए पेंशन मिल सकती है। पेंशनरों की लगातार बढ़ती संख्या के कारण राज्य सरकारों पर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है। मगर विपक्ष ने पुरानी पेंशन बहाली को लेकर चुनावी वादे किए, जिसका उन्हें फायदा भी मिला।

यह देखकर मोदी सरकार नए पैंतरे अपनाने में जुट गई है। निजीकरण पर रोक, खाली पदों को भरने, आंठवे पे कमीशन का गठन, बकाया डीए/डीआर का भुगतान समेत पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर देश भर में पूर्व व कार्यरत कर्मचारियों के प्रदर्शनों व आक्रोश को देखते हुए सरकार के माथे पर चिंता की रेखाएं बढ़ती जा रही हैं। हालांकि बढ़ती बेरोजगारी और नौकरियों पर छाता संकट आम आदमी की रीढ़ तोड़ने वाला साबित हो रहा है। इस हकीकत से मुंह चुराने वाली सरकारों के समक्ष कोई सटीक निदान नहीं हैं। मगर चुनावी साल में सत्ता पक्ष पर दबाव बढ़ जाता है।

वास्तव में देश में बहुत बड़ा वर्ग गैरसंगठित व निजी क्षेत्रों में कार्यरत है, जिनका न तो कोई संगठन है, ना ही किसी तरह संघबद्धता ही है। वेतनवृद्धि, पेंशन व अन्य सुविधाओं से वंचित रहने के बावजूद उनकी मांगें सुनने वाला कोई तंत्र नहीं है। उन सबके लिहाज से एनपीएस बेहतर योजना है, जिसका लाभ लेने को वे स्वतंत्र हैं। अपनी बचत से कुछ अंश इस योजना में डाल कर देश का कोई भी नागरिक अपने लिए पेंशन की व्यवस्था कर सकता है। सरकार के निर्णय से स्पष्ट होगा कि वह चुनावी लाभ के लोभ में है या सर्वजनहिताय सवरेपरी रखती है।



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