निजी पर सार्वजनिक दुविधा
हाल में अपने एक संसदीय संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने निजी क्षेत्र को लेकर कुछ महत्त्वपूर्ण बातें कही हैं, उन पर खुला विमर्श होना चाहिए और तमाम नेताओं के निजी क्षेत्र को लेकर दोहरे चरित्र का पर्दाफाश भी होना चाहिए।
निजी पर सार्वजनिक दुविधा |
प्रधानमंत्री मोदी ने जो कहा उसका आशय यह है कि निजी क्षेत्र के सहयोग से अर्थव्यवस्था का विकास हुआ है और हर काम सिर्फ नौकरशाह नहीं कर सकते। प्रकारांतर से प्रधानमंत्री का आशय यह था कि उद्योगों को सरकारी हिसाब से नहीं चलाया जा सकता, उसके लिए उद्यमी चाहिए, जो धन पैदा करें, रोजगार पैदा करें। उद्यमियों के प्रति और खासकर निजी क्षेत्र के उद्यमियों के प्रति मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों में बड़ा दोहरा रवैया रहा है।
वामपंथी विचारधारा से प्रेरित दल तो मोटे तौर पर पूंजी और पूंजीपतियों के विरोधी रहे हैं, खैर वो तो अब भारतीय राजनीति में हाशिये पर हैं, पर दूसरे दल निजी क्षेत्र को एक तरह से चोर मानते रहे हैं और कई बार तो ऐसा लगता है कि वो निजी क्षेत्र को सिर्फ लूटतंत्र का केंद्र मानते रहे हैं। यह अतिवादिता है। यह ठीक है कि निजी क्षेत्र के अस्पताल, निजी क्षेत्र के स्कूल बहुत लूट मचाते हैं, पर यह भी सच है कि जिन सेवाओं की आपूर्ति करने में सरकारी तंत्र विफल रहता है, वह आपूर्ति निजी क्षेत्र का मुनाफा केंद्रित कारोबार कर देता है।
एक वक्त था, जब फोनों के कारोबार सिर्फ सरकारी संगठनों का एकाधिकार था। फोन मिलने में सालों का समय लगता था और लाइनमैन का भ्रष्टाचार बहुत आम हुआ करता था। मोबाइल सेवाओं के सस्ते और बेहतर होने में निजी क्षेत्र की कंपनियों की भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता। वामपंथी-साम्यवादी विचाराधारा से प्रेरित अर्थचिंतन में सार्वजनिक क्षेत्र को ही वरीयता दी जाती थी। नब्बे के दशक में सोवियत संघ के ध्वस्त होने के बाद साम्यवादी विचारधारा की व्यावहारिकता पर ही प्रश्नचिह्न लगे।
निजी क्षेत्र अब अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। उस पर अविश्वास करके काम नहीं चल सकता। वक्त बदल गया है, अब साठ और सत्तर के दशकों के नारे बहुत निर्थक लगते हैं, जब तमाम राज्यों के मुख्यमंत्री उद्योगपतियों से निवेश का निवेदन करते हैं। निवेश से रोजगार आते हैं, संपन्नता आती है। निजी क्षेत्र के प्रति अविश्वास खत्म होना चाहिए, इसका मतलब यह नहीं है कि निजी क्षेत्र की लूट की अनदेखी होनी चाहिए। नियामक सस्थाएं अपना काम करें और निजी क्षेत्र को अपना काम करने दें।
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