घाटी में फिर खून-खराबा
जम्मू-कश्मीर के गांदरबल में आतंकवादियों के हमले में 7 लोगों के मारे जाने की घटना वाकई चिंता का सबब है। राज्य में नई सरकार के गठन के चार दिन के भीतर आतंकियों ने दूसरी बार दुस्साहस किया।
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इस घटना में जहां 5 श्रमिक बाहरी राज्यों के हैं वहीं इससे पहले की गई कायराना हरकत में भी एक बाहरी श्रमिक की हत्या कर दी गई थी। आतंकवादियों ने बड़ी परियोजना के क्षेत्र में हाल के वर्षो में इस तरह का हमला किया है।
एक और तथ्य विचारणीय है कि जिस इलाके में यह हमला किया गया है, वह आमतौर पर आतंकी हमलों से अछूता है। यानी अब आतंकी गुट उन इलाकों और लोगों को टारगेट कर रहे हैं जो ज्यादा चर्चित नहीं हैं।
हालांकि बाहर के राज्यों के लोगों को मारने (टारगेट किलिंग) का सिलसिला काफी दिनों से चल रहा है, मगर साल भर से यह थमा हुआ था। दरअसल, राज्य में लोकतंत्र की मजबूती से पाकिस्तान और दुश्मन देश बौखला गए हैं, उनमें इस बात को लेकर गहरी निराशा है कि राज्य में बिना किसी हंगामे और हिंसा के विधानसभा और इससे पहले लोक सभा के चुनाव संपन्न हो गए।
पाकिस्तान यह कभी नहीं चाहेगा कि कश्मीर में अमन बहाल हो। सीमा पार से आंतक फैलाना और राज्य की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने की उसकी करतूतों को पूरी दुनिया जान और समझ गई है। इसके बावजूद वह बाज नहीं आ रहा है।
वैसे देखा जाए तो केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से आतंकवादी गुटों पर सख्ती हुई है। मोदी सरकार तो यहां तक दावा करती है कि कश्मीर में आतंकवाद खत्म होने के कगार पर है।
हालांकि विपक्षी दलों का आरोप है कि राज्य में मोदी सरकार के बाद आतंकी घटनाएं कम होने के बजाय बढ़ी है, बहुत सारे निरपराध लोग मारे गए हैं और अनेक सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं।
दरअसल, राज्य के भूगोल और इतिहास पर दृष्टिपात करें तो तमाम प्रयासों और सख्ती के बावजूद यहां से आतंकवाद को समूल नष्ट करना बेहद दुष्कर है। इसकी वजह है स्थानीय लोगों का दहशतगदरे को खुला समर्थन।
इस बात को खुद दो वर्ष पहले सरकार ने भी माना था कि राज्य का दर्जा खत्म करने और कर्फ्यू के दौरान स्थानीय युवाओं की आतंकी समूहों में भर्ती बढ़ी है। हकीकत यह है कि जब तक युवाओं को रोजगार नहीं मिलेगा वो गलत रास्ते पर जाएंगे ही।
इन सब प्रतिकूल हालात के बीच अच्छी बात यह हुई कि जनता ने आतंकियों, उनके परिवार के लोगों को चुनाव में जबरदस्त चोट पहुंचाई है। फिर भी अभी बहुत कुछ करना शेष है।
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