अनुकरणीय दिन
राज्यसभा से जम्मू-कश्मीर के चार सांसदों का कार्यकाल समाप्त होने पर संसद से उनकी विदाई का दिन सदन में अभूतपूर्व दृश्य उपस्थित कर रहा था।
अनुकरणीय दिन |
कई वर्षो से जो सदन एक दूसरे के प्रति बेहद तल्ख टिप्पणियों, अभद्र नोक-झोंक और अनावश्यक रोक-टोक का शिकार बना हुआ था, वह सदन विदाई वाले दिन अनोखे रूप में सामने आया। सभी पार्टी के नेताओं ने गुलाम नबी आजाद, शमशेर सिंह, मीर मोहम्मद फैयाज और नादिर अहमद की प्रशंसा की।
इनके योगदान का स्मरण किया और इन्हें शुभकामनाएं दीं। किंतु जब प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य सभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद के बारे में बोलना शुरू किया तो सदन स्तब्ध था। जब भी प्रधानमंत्री मोदी आजाद की प्रशंसा में कुछ कहते थे तो सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों की थपथपाहट सदन में गूंजने लगती थी। एक अवसर तो ऐसा आया जब प्रधानमंत्री आजाद की नम्रता, विनम्रता और मित्रता का जिक्र करते हुए अत्यधिक भावुक हो गए और उनके आंसू छलक पड़े।
उन्होंने अपनी सर्वाधिक कटु आलोचक कांग्रेस पार्टी के इस कद्दावर नेता का हाथ उठा कर अभिवादन किया जिसका जवाब आजाद ने दोनों हाथ जोड़कर दिया। यह ऐसा दृश्य था जो संकेत कर रहा था मानो संसद के उच्च सदन में किसी भी तरह की कोई कटुता और वैमनस्य नहीं है। सच कहा जाए तो यह दिन सभी सांसदों के लिए अनुकरणीय उदाहरण बनकर उपस्थित हुआ कि वे चाहें तो मतभेद होने के बावजूद सदन को बिना किसी दुर्भावना के शांति और समझदारी से चला सकते हैं। विदाई के इस आयोजन में प्रधानमंत्री ने जो गरिमा दिखाई और विपक्षी दलों के साथ जिस तरह की आत्मीयता प्रदर्शित की उसे अनुकरणीय मानक के रूप में लिया जाना चाहिए।
लेकिन दूसरी ओर यह भी सच है कि राजनीतिक अखाड़ेबाजों ने इसमें भी प्रधानमंत्री की कोई कार्ययोजना तलाश ली। प्रधानमंत्री ने आजाद की जिस तरह प्रशंसा की उससे तुरंत अटकलों का बाजार गर्म हो गया कि प्रधानमंत्री मोदी आजाद को लेकर कुछ बड़ा कर सकते हैं। क्या होगा यह तो भविष्य बताएगा, लेकिन हाल-फिलहाल कांग्रेस के कान जरूर खड़े हो गए हैं और उसके सामने एक विकट दुविधा भी खड़ी हो गई है। कांग्रेस के असंतुष्ट खेमे का प्रतिनिधित्व करने वाले आजाद को कांग्रेस दोबारा सदन में नहीं लाती है, तो इसका लाभ भाजपा ले सकती है। देखना यह होगा कि कांग्रेस अपनी दुविधा का निराकरण कैसे करेगी।
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