राजनीति और परिवारवाद
गैरराजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों के एक लाख नौजवानों को राजनीति में लाने का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा ये देश की राजनीति की दिशा बदलेंगे।
राजनीति और परिवारवाद |
उन्होंने ‘परिवारवाद की राजनीति’ को देश के लिए बहुत बड़ा खतरा बताया। युवाओं से राजनीति में आने का आह्वान करते हुए मोदी ने कहा, आप खुले मन से नई राजनीति की धुरी बनें। जो हम कहते हैं, डंके की चोट पर कर दिखाते हैं।
मोदी ने ये बातें वाराणसी में कही। मोदी अपनी चुनावी रैलियों में भी वंशवाद पर करारा प्रहार करते रहे हैं। यह सच है कि उनके अपने परिवार से अब तक कोई भी सदस्य राजनीति में नहीं है। मगर यदि पूरे दल के लिहाज से देखा जाए तो यह भाजपा पर खुद भी पूरी तरह लागू होता नहीं नजर आ रहा। वंशवाद तथा परिवारवाद के खिलाफ तीखे तेवर रखने वाले मोदी भी इस सचाई से मुंह नहीं फेर सकते। भाजपा में ढेरों नेता परिवारवाद की ही देन हैं।
तमाम खींचतान के बावजूद युवा नेताओं की बड़ी संख्या के पीछे वंशवाद ही है। भाजपा हमेशा खुद को परिवारवादी दल होने से इनकार करती रही है। मगर दल के कुछ वरिष्ठ नेता पार्टी पर परिवार के कब्जे का तर्क देते हुए नेताओं के बच्चों को राजनीति में आने का रास्ता प्रशस्त करने सरीखी बातें करते हैं। देश में कोई भी राजनीतिक दल परिवारवादी होने के आरोपों से बचा नहीं है।
यह कहना गलत नहीं है कि कांग्रेस, सपा, राजद व एनसीपी जैसे तमाम क्षेत्रीय दल भी विरासत के तौर पर अपनी अगली पीढ़ी को मुखिया बनाने का काम बेधड़क करते हैं। वे तरह-तरह की दलीलों से तुष्टिकरण करना चाहते हैं। दरअसल, परिवारवाद से मुक्त रह पाना और राजनीतिक विरासत पर उचित उम्मीदवार या दावेदार को पदभार देने का जिगर रखना आसान नहीं है। नौजवानों को राजनीति में लाने का आह्वान सभी राजनीतिक दल समय-समय पर करते हैं।
कुछ ही दिन पहले भाजपा में नये सदस्य बनाने का जो सिलसिला चालू हुआ है, उसमें जनता को बरगला कर सदस्यता देने की खबरें खूब आ रही हैं। राजनीति के प्रति आमजन को आकषिर्त करने के लिए जरूरी है, इसे पारदर्शी बनाया जाए। अमूमन सफल राजनेताओं को नेतागिरी के इतर किसी अन्य पेशे में भी हाथ आजमाना पड़ता है।
फिलहाल देश की आधे से अधिक आबादी जवानों की है। दीगर है कि राजनीति में युवा आएंगे तो जोश और बदलाव खुद-ब-खुद नजर आता दिख सकता है।
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