Assembly Election : क्षेत्रीय दलों के लिए सीख-संदेश

Last Updated 22 Oct 2024 01:09:09 PM IST

हरियाणा एवं जम्मू-कश्मीर के चुनावी नतीजे घोषित हो चुके हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान कॉंग्रेस के पक्ष में चर्चित लहर और भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी जनभावना के बावजूद भाजपा तीसरी दफा जनादेश हासिल करने में सफल रही है।


बेहद दिलचस्प बात है कि लोक सभा चुनाव में भाजपा अपनी गिरी साख को हरियाणा जनादेश से राहत की सांस लेने की कोशिश कर रही है वहीं कांग्रेस के बढ़े हौसलों को अप्रत्याशित आहत मिला है। हालांकि दोनों के वोट फीसद में मामूली अंतर है। वहीं जम्मू-कश्मीर की जनता ने भाजपा की तमाम चुनावी रणनीति को खारिज करते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को 48 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत दिया है। दोनों राज्यों के चुनाव पर नजर रखने वाले धुरंधरों को चुनावी जनादेश ने चौंका दिया है। एक चीज और हुई है। दोनों राज्यों में क्षेत्रीय दलों का लगभग सफाया हो गया है। हरियाणा में आईएनएलडी और जेजेपी का प्रदशर्न दयनीय रहा। दोनों दल महज पांच फीसद मत व तीन सीट पर सिमट गए हैं। ज्ञात हो कि दुष्यंत चौटाला ने 2018 में आईएनएलडी से अलग होकर जेजेपी का गठन किया था।

मात्र एक साल बाद विधानसभा चुनाव 2019 में जेजेपी का प्रदशर्न अभूतपूर्व था जब उसे 10 सीट पर जीत मिली थी। उसके समर्थन से ही भाजपा वहां पर सरकार बना पाई थी। खंडित जनादेश आने बाद सरकार गठन के दौरान जेजेपी ने एनडीए गठबंधन में शामिल होने का निर्णय लिया था। जनविमर्श में इस निर्णय को जनता के साथ विश्वासघात की नजर से देखा गया। जेजेपी के उभार में किसान मतदाताओं का अपार समर्थन मिला था, लेकिन किसान आंदोलन के दौरान वे भाजपा के साथ रहे। यह निर्णय महंगा साबित हुआ। लोक सभा चुनाव से पूर्व ही भाजपा ने भी इनसे नाता तोड़ लिया था। राष्ट्रीय दल के बरक्स क्षेत्रीय दलों के प्रासंगिक होने के तत्व-बिंदु कुछ अलग हैं। क्षेत्रीय दलों को इस पर विचार करना अतिआवश्यक है। ज्ञात हो कि पीडीपी ओर जेजेपी दोनों ही दल वैचारिक भिन्नता के बावजूद सियासी फायदे के लिए भाजपा के साथ सरकार में रह चुके हैं। क्या इन दलों ने अपने वैचारिकी से समझौता किया।

क्या अपने सियासी निर्णय से आधार वोट समूह को संतुष्ट कर पाए? क्या क्षेत्रीय दलों के लिए इस जनादेश में कोई सीख संदेश छिपी है? ऐसे कुछ बुनियादी सवालों के नजरिए से इस जनादेश को देखना दिलचस्प होगा। जम्मू कश्मीर में पीडीपी का 28 सीट से घटकर तीन सीट पर सिमटना और हरियाणा में दुष्यंत चौटाला समेत लगभग सभी उम्मीदवारों का जमानत जब्त होना बेहद चौंकाने वाली घटना है। किसी भी दल और नेतृत्व के जनपसंद होने में उसकी वैचारिकी एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। जेजेपी के उदय में किसानों का अपार समर्थन मिला, लेकिन किसान आंदोलन के साथ नहीं खड़ा होना घातक साबित हुआ। सभी क्षेत्रीय दलों के लिए यह विचारणीय पाठ है। यूपी में सपा/बसपा, बिहार में राजद/जदयू/लोजपा और महाराष्ट्र में शिवसेना/रांकपा जैसी पार्टयिां अपनी वैचारिकी और नेतृत्व की बदौलत ही बरकरार है।

बिहार में विगत दो दशक से सत्ता के बाहर रहने के बावजूद राजद अभी भी सबसे बड़े दल के रूप में जनता की पसंद बनी हुई है। वैचारिक तौर पर सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और समावेशी विकास राजद की पूंजी रही है। ओबीसी के लिए मंडल आयोग की सिफारिश लागू कराने में लालू प्रसाद यादव की भूमिका निभाने से लेकर आडवाणी के रथयात्रा को सांप्रदायिक बताकर उन्हें समस्तीपुर में गिरफ्तार कर क्रमश: सामाजिक न्याय और धर्मनिपेक्षता के प्रति वैचारिक स्पष्टता ही राजद को एक समय ऐतिहासिक जनस्वीकृति प्रदान किया था। उसी प्रकार दूसरी पीढ़ी के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव के ख़्िालाफ भी नौवीं फेल और परिवारवाद का नैरेटिव ध्वस्त होता नजर आया। उनके कार्यों का जिक्र ‘सत्रह महीना बनाम सत्रह साल’ लोकविमर्श में आ चुका है। यह एनडीए के लिए आज भी यक्ष प्रश्न बना हुआ है। केंद्र में तीसरी बार शासन में रहने के बावजूद भाजपा बिहार की राजनीति में जद (यू) के पीछे चलने को बाध्य है।

पिछले तीन दशक से कांग्रेस अपने आधार वोट को वापस नहीं ला पा रही है। कहीं-न-कहीं वैचारिक स्पष्टता राज्य की राजनीति में मायने रखती है। यही कारण है कई क्षेत्रीय पार्टयिां अपना जलवा कायम रखने में सफल रही है। राज्यों की मनोदशा को जमीनी स्तर पर समझने एवं उसकी समस्याओं का समुचित निष्पादन करने में क्षेत्रीय दलों की भूमिका प्रबल होती है। क्षेत्रीय पार्टयिां बुनियादी स्तर पर ‘धरती पुत्र’ की भावना से ओतप्रोत हुआ करती हैं। उनका दर्शन है कि जब प्रत्येक राज्य मजबूत होगा तो स्वाभाविक रूप से भारतवर्ष को मजबूती मिलेगी। ऐसे में दीवार पर लिखी इबादत स्पष्ट कह रही है कि क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टयिां अपने मूल संरचना एवं वैचारिकी से समझौता न करें। यह उनके अपनी पार्टी एवं राज्य दोनों के ही हित में है। अंतत: भारतवर्ष की विविधता के मद्देनजर क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टयिों का भविष्य उज्जवल प्रतीत होता है।

प्रो. नवल किशोर


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