विश्व राजनीति : पुतिन की चाल से विरोधी चित
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) की बेजोड़ कूटनीति से येवगेनी प्रिगोनिन (Yevgeny Prigozhin) की निजी सेना 12 घण्टे में ही बैरकों में लौटने लगी। इससे पुतिन के सभी ज्ञात-अज्ञात विरोधी परास्त हैं।
![]() रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन |
देश-विदेश में उन्हें जानने वाले आश्चर्यचकित हैं। पुतिन के विश्वासपात्र एवं कभी सज़ायाफ्ता रहे येवेगेनी ने 2014 में उन्हीं के सहयोग से निजी सेना ‘वैगनर आर्मी’ (Wagner Coup) गठित की थी। पुतिन की मदद से पली, बढ़ी इस आर्मी ने क़रीब 9 सालों में येवगेनी की छवि दुनिया में सबसे ‘बर्बर योद्धा’ की बना दी। यों वह कभी सैनिक भी नहीं रहा। प्रिगोनिनी की सेनाओं ने 24 जून को जब ‘रूस में बगावत का बिगुल’ फूंकते हुए रूसी शहर रोस्तोव पर कब्ज़ा कर लिया तो अन्तरराष्ट्रीय मीडिया में तरह-तरह के कयास शुरू हो गये।
दरअसल, पुतिन शुरू से विश्व में सबसे तेज़ कूटनीतिक दिमाग व अन्दाज़ वाले नेता माने जाते हैं। अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के जानकारों में कमोबेश सब ने एक-चौथाई शतक से यह अनुभव किया है। विशेषज्ञ सूत्रों का कहना है कि पुतिन को कुछ महीनों से यह आशंका थी कि रूस में ही सियासत और सेना के कतिपय लोग उनसे असन्तुष्ट हैं। बावज़ूद इसके कि उनकी कार्रवाइयों से ‘रूसी लोगों में राष्ट्रवाद’ की भावना हाल के वर्षो में प्रबल हुई है। अघोषित रूप से रूस में उनके ‘बेमिसाल बादशाह’ बने रहने की यह मुख्य वज़ह है।
पुतिन देश के एक छोर सेण्ट पीटर्सबर्ग से हैं जबकि देश में क्रमश: दूसरे, तीसरे ताक़तवर माने जाने वाले रक्षामंत्री सरगेई सोइगू तथा सेनाध्यक्ष जनरल गेरासिमोव मास्को से हैं। इससे रूसी सैन्य प्रशासन में दो धड़े बन गये हैं। यूक्रेन से क़रीब 16 महीने से ज़ारी युद्ध ने इस बात की तरफ़ अन्तरराष्ट्रीय जगत का भी ध्यान खींचा है। बेशक, पुतिन रूस के सर्वेसर्वा हैं। लिहाज़ा आरोप उनपर लगने लगा कि वे युद्ध नीति का संचालन सही से नहीं कर पा रहे। इससे कमजोर हो रहे हैं। हालाँकि हकीक़त इसके उलट है। पुतिन अनेक विश्व नेताओं के मुक़ाबले अभी काफी युवा (मात्र 71 वर्ष के) हैं। इससे पर्याप्त चुस्त-दुरु स्त नज़र आते हैं। उन्होंने ‘नाटो’ से गठबन्धन को लालायित यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमिर जेलेंस्की की भारी मान-मनौती की फि़र भी उनके अड़े रहने पर पिछले साल 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला बोल दिया था।
अनुमान था कि जेलेंस्की 10-15 दिनों में मान जाएंगे पर 15 महीने बीत गये। इसमें बज़रिये यूरोप अमेरिका भी पीछे से जेलेंस्की की सहायता में है। नतीजतन युद्ध खिंचता गया। ..और अब पश्चिमी मीडिया तथा राजनीतिज्ञों द्वारा इसका ठीकरा पुतिन पर फोड़ा जाने लगा है। कहा तो यहाँ तक जा रहा कि पुतिन की इसी युद्ध नीति से ना.खुश सोइगू (रक्षामंत्री) तथा रूसी सेना के प्रमुख जनरल गेरासिमोव कुछ और मन बनाने लगे थे। ज़ाहिर है इससे पुतिन भी बेचैन होंगे! यही कारण है कि वैगनर आर्मी के कमाण्डर येवगेनी को इस बात के लिए उकसाया गया कि वह रूस के खिलाफ़ ही विद्रोह का ऐलान कर दें।
जिन्होंने यूक्रेन में तो पुतिन की शय पर भारी तबाही मचायी ही, अफ्रीकन देशों और सीरिया में विद्रोह उकसाने में भी कुशलता का परिचय दिया। येवगेनी की सेना ने प्रोजेक्ट के तहत फ़ौरन ऐसा किया और उसके बख्तरबन्द सैनिकों ने मास्को से महज़ 1,100 किमी दूर रूसी शहर रोस्तोव पर कब्ज़ा कर राष्ट्रीय राजधानी से 380 किलोमीटर दूर तक आ गये। तभी बेलारूस के राष्ट्रपति जनरल लुकांशे की मध्यस्थता से अचानक बगावत थमने की .खबर चमकने लगी। बहरहाल, मीडिया यही अलाप रहा है कि रूस पर अब तक का सबसे बड़ा खतरा टल गया। येवगेनी ने अपने टैंकों को अपने कब्ज़े के रोस्तोव शहर, मास्को से 600 किमीमीटर दूर कब्ज़े वाले दूसरे शहर लिपेत्स्क से लौटने और रूसी राजधानी की तरफ़ आगे बढ़ने से मना करते हुए बैरकों में वापस पहुंचने का आदेश दिया। इस पर अमल अब मुकम्मल हो चुका है।
दूसरी ओर बगावत के बाद बने हालात की रोशनी में इलाके के गवर्नर ने मास्को में सभी कार्यक्रम पहली (1) जुलाई तक स्थगित करने के आदेश दिए हैं। सड़कों पर आवाजाही प्रतिबन्धित करने का ‘अलर्ट’ है। स्कूलों/कॉलेजों में सभी गतिविधियां 30 जून तक स्थगित रहेंगी। इसे यूक्रेन को लेकर राष्ट्रपति पुतिन के कुछ बहुत ठोस निर्णय करने का संकेत माना जा रहा है। यों, राष्ट्रपति मुख्यालय क्रेमलिन पर उनका नियंतण्रबना हुआ है और रूसी मामलों के तमाम विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि फिलहाल उन्हें अभी कहीं से चुनौती नहीं है।
फौज़ तथा उसके लगभग सारे प्रमुख कमाण्डर उन्हीं के साथ हैं। मास्को स्थित भारतीय पत्रकार रामेर सिंह का कहना है कि रूस में शुक्रवार से 24-36 घण्टों के भीतर जो कुछ हुआ है, उससे पुतिन की छवि और निखरी है। उनके प्रति रूसियों का भरोसा और बढ़ा है। वे येवगेनी से मास्को के ‘कथित समझौते’ को अपने राष्ट्रपति की विजय के रूप में देख रहे हैं। पूरी असलियत का खुलासा तो शायद भविष्य में कभी हो। समझा जाता है कि पुतिन अपने रक्षामंत्री, सेनाध्यक्ष तथा उनके कुछ अन्य सहयोगियों के विरु द्ध कार्रवाई का मौक़ा पा गये हैं। साथ ही उन्होंने यूक्रेनी राष्ट्रपति, उनके साथ खड़े यूरोप और उनके समर्थकों को तो साफ सन्देश दे ही दिया है। विशेषज्ञ यही मान रहे हैं कि पुतिन ‘गेम प्लान’ से उनके सभी विरोधी बेढाल हुए हैं।
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