बयानबाजी में तल्खी
वक्फ (संशोधन) अधिनियम के कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सवाल उठाए जाने पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शनिवार को तल्ख अंदाज में सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा कि कानून यदि शीर्ष अदालत ही बनाएगी को संसद भवन को बंद कर देना चाहिए।
![]() |
दुबे ने ‘एक्स’ कर अपने पोस्ट में अपने कथन की बिना व्याख्या किए यह सब लिखा है। इसी तरह का बयान भाजपा के राज्य सभा सदस्य दिनेश शर्मा ने भी दिया है। अपने नेताओं के बयानों से घिरी भाजपा ने औपचारिक रूप से खुद को इन बयानों से अलग कर लिया है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शब्द कहा कि दुबे या शर्मा के बयान उनके व्यक्तिगत विचार है, और पार्टी इनसे सहमत नहीं है।
भाजपा सांसदों के बयानों पर कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने पलटवार करते हुए इन बयानों को अपमानजनक बताया। दुबे और शर्मा की टिप्पणियां ऐसे समय आई हैं, जब वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत में सुनवाई चल रही है। यह अधिनियम इस महीने की शुरुआत में संसद ने पारित किया था। अदालत द्वारा इस कानून के कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर सवाल उठाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने अगली सुनवाई तक उन्हें लागू न करने पर सहमति व्यक्त की है।
इससे पहले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि देश में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे अैर कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे और ‘सुपर संसद’ के रूप में काम करेंगे। दरअसल, धनखड़ सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का जिक्र कर रहे थे जिसमें राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर विधेयक पर फैसला लेने की समय-सीमा तय की गई है। उनका कहना था कि पहली दफा है जब राष्ट्रपति को तय समय में फैसला लेने को कहा जा रहा है।
शीर्ष अदालत द्वारा कोई सवाल उठाने या मौखिक टिप्पणी करने पर असहज होना परिपक्वता की कमी का परिचायक है। वैसे भी ये सवाल किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति द्वारा नहीं उठाए थे कि इनमें राजनीतिक अर्थ खोजे जाएं। सुप्रीम कोर्ट और देश की तमाम अदालतें हमारे लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं। संविधान के संरक्षण का मजबूत आधार हैं। उत्पीड़ित महसूस कर रहा पक्ष अदालत का दरवाजा खटखटाता है। उसे विश्वास होता है कि उसका पक्ष अनसुना नहीं रहेगा। अदालतों पर उसका विश्वास है, जो किसी सूरत डमगमाना नहीं चाहिए। राजनीतिक मंतव्यवश हल्की बयानबाजी से बचा चाहिए।
Tweet![]() |