अमेरिकी टैरिफ : भारत भी नहीं रहेगा बेअसर
वैश्विक व्यापार में संरक्षणवाद का दौर एक बार फिर से उभर रहा है। अप्रैल, 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित पारस्परिक टैरिफ (रेसिप्रोकल टैरिफ) नीति ने वैिक अर्थव्यवस्था को हिला दिया है।
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यह नीति अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करने और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लागू की गई है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम भारत और विश्व की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहे हैं।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार इस नीति के प्रभावों का विश्लेषण करते हुए बताते हैं कि अमेरिका ने अपनी टैरिफ नीति को पारस्परिक करार देते हुए कहा है कि यह अन्य देशों द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर लगाए गए टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं (जैसे मुद्रा हेरफेर और नियामक अंतर) के जवाब में उठाया गया कड़ा कदम है। ट्रंप प्रशासन का दावा है कि भारत अमेरिकी वस्तुओं पर 52: का प्रभावी टैरिफ लगाता है, जिसके जवाब में भारत से आयात पर 27: का टैरिफ लगाया गया है। हालांकि, इस गणना की सटीकता पर सवाल उठाए गए हैं।
समिट की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका ने व्यापार घाटे और आयात मूल्य के आधार पर टैरिफ दरें तय कीं जो विश्व व्यापार संगठन के डेटा से मेल नहीं खातीं। भारत का अमेरिकी वस्तुओं पर औसत टैरिफ दर 2023 में केवल 9.6: था, जो अमेरिकी दावों से काफी कम है। इस नीति में दो स्तर के टैरिफ शामिल हैं: 5 अप्रैल से सभी देशों पर 10: का आधारभूत टैरिफ और 9 अप्रैल से देश-विशिष्ट टैरिफ। कुछ वस्तुओं जैसे फार्मास्यूटिकल्स और ऊर्जा उत्पादों को टैरिफ से छूट दी गई है, जिससे भारत के कुछ क्षेत्रों को राहत मिली है।
भारत, जो अमेरिका का प्रमुख व्यापारिक साझेदार है, 2024 में 80.7 बिलियन डलर का माल अमेरिका को निर्यात करता था। 27: टैरिफ से भारत के कई क्षेत्र प्रभावित होंगे, लेकिन कुछ क्षेत्रों को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ भी मिल सकता है। प्रो. अरुण कुमार के अनुसार, इस नीति का प्रभाव अल्पकालिक और दीर्घकालिक, दोनों रूपों में देखा जाएगा। उल्लेखनीय है कि भारत के 14 बिलियन डलर के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात और 9 बिलियन डलर के रत्न-आभूषण निर्यात पर टैरिफ का भारी असर पड़ेगा। ये क्षेत्र अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं और लागत में वृद्धि से उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है।
इसके साथ ही मछली, झींगा और प्रसंस्कृत समुद्री खाद्य उद्योग, जो 2.58 बिलियन डलर का है, पर 27.83: का टैरिफ अंतर भारत की प्रतिस्पर्धा को कम करेगा खासकर जब पहले से ही अमेरिका में एंटी-डं¨पग शुल्क लागू हैं। भारतीय वस्त्र उद्योग को मिश्रित प्रभाव का सामना करना पड़ेगा। हालांकि भारत पर टैरिफ वियतनाम (46:) और बांग्लादेश (37:) की तुलना में कम है, फिर भी बाजार और मुनाफे में कमी का जोखिम बना रहेगा। वहीं भारत के 9 बिलियन डलर के फार्मास्यूटिकल निर्यात को टैरिफ से छूट दी गई है, जिससे इस क्षेत्र को राहत मिली है। भारतीय फार्मा कंपनियों के शेयरों में 5: की वृद्धि देखी गई। हालांकि सॉफ्टवेयर सेवाएं प्रत्यक्ष रूप से टैरिफ से प्रभावित नहीं हैं, लेकिन वीजा प्रतिबंध और व्यापार तनाव भारतीय आईटी कंपनियों जैसे टीसीएस और इन्फोसिस के लिए चुनौतियां पैदा कर सकते हैं।
प्रो. कुमार का मानना है कि भारत को कुछ क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिल सकता है, क्योंकि चीन और वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्धी देशों पर अधिक टैरिफ लगाए गए हैं। उदाहरण के लिए परिधान और जूते जैसे क्षेत्रों में भारत अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है। टैरिफ के कारण भारत के निर्यात में 30-33 बिलियन डलर की कमी आ सकती है। अर्थशास्त्रियों ने भारत की 2025-26 की विकास दर को 20-40 आधार पर कम करके 6.1: कर दिया है। हालांकि, भारत सरकार का दावा है कि तेल की कीमतें 70 डलर प्रति बैरल से नीचे रहती हैं, तो 6.3-6.8: की विकास दर हासिल की जा सकती है।
अमेरिकी टैरिफ नीति का वैिक अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। प्रो. कुमार के अनुसार, यह नीति वैश्विक व्यापार प्रणाली में 1930 के स्मूट-हले टैरिफ एक्ट के समान व्यवधान पैदा कर सकती है। टैरिफ से वैिक व्यापार की गति धीमी होगी, जिससे आर्थिक विकास प्रभावित होगा। जेपी मार्गन ने चेतावनी दी है कि यदि यही टैरिफ नीति लागू रहती है, तो अमेरिका और वैिक अर्थव्यवस्था मंदी में आ सकती है। इससे आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। बोस्टन फेडरल रिजर्व बैंक का अनुमान है कि टैरिफ से कोर पीसीई मुद्रास्फीति में 0.5-2.2: की वृद्धि हो सकती है। वैिक शेयर बाजारों में गिरावट और मुद्रा अस्थिरता पहले ही देखी जा चुकी है। चीन, यूरोपीय संघ और अन्य देशों ने अमेरिकी वस्तुओं पर जवाबी टैरिफ की घोषणा की है, जिससे वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका बढ़ गई है। इससे आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित होंगी और व्यवसायों को लागत बढ़ने का सामना करना पड़ेगा। कम प्रति व्यक्ति आय वाले देश जैसे कंबोडिया (50: टैरिफ) सबसे अधिक प्रभावित होंगे। इससे अमेरिका की विकासशील देशों में साख को नुकसान हो सकता है।
प्रो. कुमार का सुझाव है कि भारत को इस संकट को अवसर में बदलने के लिए रणनीतिक कदम उठाने चाहिए। अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर तेजी से काम करना चाहिए। 23 बिलियन डॉलर के अमेरिकी आयात पर टैरिफ कम करना एक शुरुआत हो सकती है। यूरोपीय संघ, आसियान और मध्य-पूर्व जैसे वैकल्पिक बाजारों पर ध्यान देना चाहिए। भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते को तेज करना महत्त्वपूर्ण होगा। घरेलू उत्पादन और खपत को बढ़ावा देना चाहिए। छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए सब्सिडी, कर राहत और निर्यात प्रोत्साहन जैसी योजनाओं को लागू करना चाहिए।
अमेरिकी टैरिफ नीति ने वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता का माहौल पैदा किया है। भारत के लिए यह चुनौती होने के साथ-साथ अवसर भी है। भारत रणनीतिक रूप से कार्य करे, तो न केवल इन टैरिफों के नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकता है, बल्कि वैिक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति को भी मजबूत कर सकता है। दीर्घकालिक दृष्टिकोण और सुधारों के साथ, भारत इस संकट को एक नये आर्थिक युग की शुरुआत में बदल सकता है।
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)
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