सामयिक : ओबामा का कुतर्की बयान
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के बयान पर आम भारतीयों का गुस्सा स्वाभाविक है।
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हालांकि जिस तरह के वैचारिक विभाजन की तीखी सीमा रेखा बनाने की कोशिश हुई है, उसमें देश का एक वर्ग ओबामा के बयानों को आधार बनाकर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहा है। वैसे ओबामा ने साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की। कहा कि भारत एक अविसनीय रूप से बहुलतावादी देश है। वह हर चुनाव में लोकतंत्र के लिए लड़ता है, उसमें जीतता है। किंतु उन्होंने यह भी कहा कि भारत यदि अपने जातीय अल्पसंख्यकों का ध्यान नहीं रखा, उनकी शिकायतें दूर नहीं कीं तो वह बिखर सकता है। राष्ट्रपति के रूप में प्रधानमंत्री मोदी, सरकार और भारत को लेकर ओबामा की भूमिका को ध्यान में रखने वाले आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं। भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों ही नहीं, अनेक अंतरराष्ट्रीय मुद्दों और जटिल समस्याओं को लेकर भी मोदी और ओबामा के बीच सहज संवाद एवं अपने- अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप सहयोग दिखता था। यह बयान उससे अलग है। पर जिन लोगों ने हाल के समय में नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान आ रहे बदलावों तथा इसे लेकर देश और दुनिया भर में दुष्प्रचारों और उनके आधार पर हो रही प्रतिक्रियाओं पर दृष्टि रखी है, उनके लिए ओबामा का बयान आश्चर्य का कारण नहीं है।
पिछले कुछ समय से अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं, सांसदों, बुद्धिजीवियों सहित थिंक टैंक द्वारा मोदी सरकार, हिंदुत्व और हिंदुओं को लेकर किया जा रहा दुष्प्रचार छिपा नहीं है। स्वयं अमेरिकी रिपोर्ट इसको प्रमाणित करती है कि हिंदुओं के विरु द्ध घृणाजनक दुष्प्रचार एवं हिंसा में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। अमेरिका में सक्रिय हिंदू संगठनों के आय-व्यय के जांच की मांग हुई। दो डेमोक्रेट सांसदों को एक क्षेत्र में जांच के लिए कहा भी गया। पता नहीं उसका क्या हुआ। कहने का तात्पर्य कि बराक हुसैन ओबामा के कार्यकाल में भारत के साथ अच्छे संबंध रहे, अनेक महत्त्वपूर्ण साझेदारियां हुई इस कारण उनका बयान हमें असहज लग सकता है किंतु ऐसा है नहीं। सच कहें तो प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान डेमोक्रेटिक पार्टी, वहां के वामपंथी लिबरल थिंक टैंकों, बुद्धिजीवियों, मीडिया के पुरोधाओं आदि की ओर से भारत में अल्पसंख्यकों के धार्मिंक अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि पर प्रश्न न उठाने से ही आश्चर्य पैदा हो रहा था। माहौल बनाया गया है कि संघ और उनसे जुड़े संगठन तथा सरकारें अल्पसंख्यक विरोधी नीतियों को पूरी प्रखरता से लागू कर रही हैं। अमेरिकी विदेश विभाग की धार्मिंक स्वतंत्रता संबंधी वैश्विक रिपोर्ट में अल्पसंख्यकों को लेकर भारत की निंदा की गई और उसे चिंताजनक देशों की सूची में डालने की अनुशंसा भी हुई। एक आयोग ने भारत पर कार्रवाई तक की मांग कर दी थी।
प्रधानमंत्री की यात्रा के पूर्व कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की यात्रा के दौरान भी ऐसा माहौल बनाने की कोशिशें देखी गई। फिर असदुद्दीन ओवैसी की यात्रा हुई। इन दो यात्राओं की सार्वजनिक चर्चा हुई। इसके अलावा, भारत के अनेक एक्टिविस्ट चेहरे अमेरिका गए। राहुल जी की यात्रा के समय भी ये वहां थे और ओवैसी की यात्रा में भी कुछ लोग थे। राहुल गांधी से जब एक भारतीय मूल के मुस्लिम ने प्रश्न किया तो उन्होंने कहा कि केवल मुसलमान नहीं दलित, आदिवासी सभी झेल रहे हैं और दबाव में हैं।
हालांकि प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के कुछ ही दिनों पूर्व पहली बार अमेरिकी संसद के अंदर अमेरिकी हिंदुओं का दो दिवसीय सम्मेलन हुआ जिनमें डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों के सांसद और नेता आए। उन्होंने हिंदुओं के योगदान की प्रशंसा करते हुए उन्हें राजनीतिक रूप से आगे आने का आह्वान किया। इसमें भी दुष्प्रचार किया गया कि सारे संगठन संघ से जुड़े हैं। बावजूद आयोजन सफल रहा। वहां सक्रिय हिंदू संगठनों ने कहा कि हम अमेरिका के हर क्षेत्र में निष्ठापूर्वक योगदान देकर इसकी प्रगति के वाहक रहे हैं, पर हमने कभी राजनीतिक रूप से स्वयं को संगठित करके सत्ता में प्रभावी होने का काम नहीं किया था। इसलिए यह भी नहीं मानना चाहिए कि हिंदुत्व और भारत विरोधी दुष्प्रचार के समानांतर वहां सही दिशा में प्रचार और प्रयास नहीं हो रहा है। ऐसा नहीं होता तो जॉर्जिया की असेंबली हिंदुओं और हिंदुत्व के पक्ष में प्रस्ताव पारित करते हुए दुष्प्रचार करने वालों के विरु द्ध कार्रवाई की अनुशंसा नहीं करती। ह्वाइट हाउस से लेकर कई राज्यों के गवर्नरों ने हिंदू पर्व त्योहारों को सरकारी स्तर पर मनाना शुरू किया है। बावजूद दुष्प्रचार करने वालों का सत्ता में प्रभाव तथा संसाधन इतना प्रबल है कि वे बार-बार सफल हो जाते हैं।
कायदे से देश के विरुद्ध किसी भी बयान पर अंदर एकता होनी चाहिए। सभी राजनीतिक दल, एनजीओ, एक्टिविस्ट, मीडिया एक स्वर में प्रतिरोध करें तो संदेश स्पष्ट जाएगा। दुर्भाग्य से संघ तथा भाजपा से वैचारिक असहमति या मतभेद सीमा से बाहर निकलकर घृणा की चरम अवस्था तक पहुंची है। ऐसे बयानों को वे भारत विरोधी मानने की बजाय केवल सरकार विरोधी मानते हैं और इसे आधार बनाकर हमला करते हैं। इसमें इस प्रकार के दुष्प्रचारों का सामना करना कठिन होता है। चूंकि विरोधियों के एक बड़े समूह का वैिक संपर्क और संवाद रहा है इसलिए एक संपूर्ण समूह भारत सहित विश्व भर में इसके विरुद्ध खराब हो चुका है।
ओबामा का वक्तव्य बता रहा है कि आने वाला समय ज्यादा चुनौतियों भरा है। आगामी विधानसभा चुनावों एवं लोकसभा चुनाव तक भाजपा की केंद्र एवं राज्य सरकारों तथा संगठन समूह को संपूर्ण विश्व में अल्पसंख्यक विरोधी साबित करने का अभियान पूरी शक्ति के साथ चलाया जाएगा। हालांकि भारत संबंधी नीतियों में अमेरिका का जो बाइडेन प्रशासन इन सबसे अप्रभावित रहा। बाइडेन और ओबामा की विचारधारा समान है, पर बाइडेन के सामने अमेरिका के दूरगामी हित हैं और भारत जैसी विश्व की सर्वाधिक आबादी एवं तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था से प्रगाढ़ संबंध और साझेदारी के बगैर उसकी पूर्ति संभव नहीं। बाइडेन ने कहा कि भारत-अमेरिका के डीएनए में लोकतंत्र है। मिस्र जैसे प्रमुख मुस्लिम देश में भी प्रधानमंत्री को सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया गया। दोनों जगह प्रधानमंत्री को जिस तरह का सम्मान मिला उससे भी विरोधी वर्ग निराश हैं।
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