इस उपलब्धि से ईर्ष्या क्यों है पाकिस्तान को
60 की उम्र पार कर चुके लोगों के जेहन में 1971 की कुछ यादें अभी भी ताजा होंगी। जब रोज सुबह आनेवाले अखबारों में खबरें छपती थीं कि पाकिस्तान (Pakistan) के समर्थन में अमेरिका (America) का सातवां बेड़ा निकल चुका है, या यहां-वहां पहुंच गया है।
![]() इस उपलब्धि से ईर्ष्या क्यों |
आज उसी अमेरिका की संसद में भारतीय प्रधानमंत्री के लगभग एक घंटे के भाषण पर 79 बार तालियां बजना और 15 बार स्टैंडिंग ओवेशन मिलना आश्चर्यजनक नहीं है क्या? है। दुनिया मान भी रही है। लेकिन भारत के कुछ लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं।
आज के युग में दुनिया के किसी भी देश के लिए विदेश नीति के मोर्चे सफल होना सबसे बड़ी जरूरत होती है। इसी से उसकी आर्थिक-सामाजिक प्रगति जुड़ी होती है। विदेश नीति कोई एक दिन में परवान चढ़नेवाली चीज नहीं होती। इसके लिए कई मोर्चों पर सतत प्रयास करने पड़ते हैं। अलग-अलग देशों के साथ बड़ी सावधानी से कदम बढ़ाने पड़ते हैं। खासतौर से तब जब रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी स्थिति चल रही हो। ऐसे में आप रूस से कच्चा तेल भी खरीद रहे हों, यूक्रेन से बात भी कर रहे हों, और अमेरिका की संसद में तालियां बटोरकर स्टैंडिंग ओवेशन भी ले रहे हों, तो यह आश्चर्यजनक नहीं लगता क्या? ये आश्चर्यजनक उन्हीं को नहीं लगता, जिनकी आंखों पर मोदी विरोध की पट्टी बंधी हुई हो। भारत जैसा दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का देश आज तब तक प्रगति नहीं कर सकता, जब तक कि उसे साधनों-संसाधनों के मोर्चे पर अन्य सक्षम देशों से तकनीकी मदद न मिल पाए। ये मदद कोई यों ही तो नहीं कर देता।
विदेश नीति सीधा लेन-देन का विषय है। सामनेवाले को हम ताकतवर दिखाई देंगे, तो ही वह हमसे हाथ मिलाने को तैयार होगा। वरना मेहरबानी का लाल गेहूं तो 1960 में भी अमेरिका से हम पाते ही रहे हैं। आज हाथ मिलाना तो बहुत पीछे छूट चुका है। अब तो पैर छुए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री की सलाह पर सिडनी में लखनऊ की चाट और जयपुर की जलेबियां खाई जा रही हैं, और अमेरिकी संसद में उनके भाषण पर तालियां पीटी जा रही हैं, ऑटोग्राफ लिए जा रहे हैं। आज हम इस स्थिति में पहुंचे हैं, तभी भारत और अमेरिका एक साथ मिलकर पाकिस्तान को आतंकी गतिविधियां रोकने के लिए सख्त हिदायत देने की स्थिति में आ सके हैं।
ओबामा ने नहीं लिया था आतंकी देश पाकिस्तान का नाम
याद है, कुछ वर्ष पहले हुआ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा (Barak Obama) का भारत दौरा। मुंबई (Mumbai) के सेंट जेवियर्स कॉलेज में प्रेस कान्फ्रेंस के दौरान ओबामा से पाकिस्तानी आतंकवाद (Pakistan Terorism) के बारे में बार-बार कोई टिप्पणी करवाने की कोशिश पर भी ओबामा ने पाकिस्तान के विरोध में एक शब्द नहीं बोला था। यहां तक कि 2021 में हुई मोदी और बाइडन की पहली द्विपक्षीय वार्ता के बाद जारी संयुक्त बयान में भी पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया था। लेकिन गुरुवार को जारी संयुक्त बयान में पाकिस्तान का सीधे तौर पर नाम लिया गया। भारत-अमेरिका के इस बदले हुए साझा रुख से पाकिस्तान की शहबाज सरकार (Shebaz Government) की नींद उड़ गई है। दोनों नेताओं ने सीमा पर आतंकवाद की कड़े शब्दों में निंदा की है, और पाकिस्तान से साफ कहा है कि वह सुनिश्चित करे कि उसकी जमीन का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए न हो। भारत-अमेरिका की इस दोस्ती ने विश्व मंच पर पाकिस्तान को अप्रासंगिक बना दिया है।
भारत-अमेरिका की इस शिखर वार्ता में चीन का खुलकर नाम भले न लिया गया हो, लेकिन संयुक्त बयान में कई ऐसे तथ्यों की ओर इशारा किया गया है, जो चीन की ओर ही इशारा करते हैं। बात रक्षा क्षेत्र में खरीदारी की हो, या संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली में सुधार की, हर मोर्चे पर भारत को सफलता मिल रही है, और वह साफगोई के साथ आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है। अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) एवं भारतीय कंपनी हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लि. (HAL) के बीच हुआ समझौता साफ संकेत है कि रक्षा क्षेत्र में अमेरिका अब भारत को अहम तकनीक देने को भी तैयार है। यह तकनीक भारतीय सेना के लिए लड़ाकू जेट इंजन बनाने के काम आएगी। अब तक खरीदार एवं विक्रेता के रिश्तों से आगे बढ़ते हुए तकनीक ट्रांसफर तक पहुंचना हमारी विदेशनीति की एक बड़ी उपलब्धि है, और मानी जानी चाहिए। 31 प्रिडेटर ड्रोन की खरीद सहित रक्षा क्षेत्र में हुए कई और सौदों के कारण भविष्य में भारत अपने चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों पर बढ़त बनाने में कामयाब होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) जब विदेश जाते हैं तो वहां रह रहे भारतवंशी उनका बड़े उत्साह से स्वागत करते हैं। इसका कारण है पिछले कुछ वर्षो में उनका वहां बढ़ा सम्मान। इस सम्मान के साथ-साथ उनकी सुविधाएं भी बढ़ रही हैं। पढ़ाई, नौकरी या व्यवसाय के लिए भारत से अमेरिका जाना आम बात है। इन उद्देश्यों से अमेरिका जानेवाले भारतवंशियों के लिए एच-1बी वीजा का नवीकरण एक बड़ा मुद्दा रहा है। एच-1बी वीजा अमेरिकी कंपनियां अपने विदेशी कर्मचारियों के लिए जारी करती हैं। ये वीजाधारक अपनी पत्नी-बच्चों के साथ अमेरिका में रह सकता है। अमेरिकी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक अमेजान, इंफोसिस, टाटा कंसलटेंसी, अल्फाबेट और मेटा कंपनियां एच-1बी वीजा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कर रही हैं। यह वीजा एक बार में तीन साल के लिए ही जारी किया जाता है। फिलहाल, इस वीजा के नवीकरण के लिए किसी दूसरे देश में स्थित अमेरिकी दूतावास की सेवाएं लेनी पड़ती हैं। लेकिन प्रधानमंत्री की इस यात्रा के बाद बाइडन प्रशासन कुशल भारतीय कामगारों को अमेरिका आने और वहां बने रहने में मदद करने के लिए एच-1बी के वीजा नियमों में बदलाव करने जा रहा है।
अमेरिका में रहनेवाले हजारों भारतीय अब वहां रहते हुए ही अपने एच-1बी वीजा का नवीकरण करवा सकेंगे। अमेरिकी प्रशासन की नीति में इस बदलाव के बाद यह लाभ भारतीयों के साथ-साथ अन्य देशों के निवासियों को भी मिलेगा। विदेश में रह रहे भारतवंशियों को मिलनेवाली इन्हीं सुविधाओं का नतीजा है कि अनेक देशों में प्रधानमंत्री मोदी अपनी इतनी बड़ी-बड़ी सभाएं कर डालते हैं, जितनी भारत के कई नेता भारत में भी नहीं कर पाते।
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