रिफाइंड कच्चा तेल निर्यात : भारत के लिए ’आपदा में अवसर‘
रूस -यूक्रेन युद्ध जहां दुनिया भर के देशों के लिए खासकर राजनीतिक-आर्थिक रूप से समस्या साबित हो रहा है, वहीं भारत के लिए यह आपदा में अवसर लेकर आया है।
रिफाइंड कच्चा तेल निर्यात : भारत के लिए ’आपदा में अवसर‘ |
विविध कमोडिटीज और उनके परिवहन के लिए सब्सक्रिप्शन आधारित डाटा और एनालिटिक्स मार्केट इंटेलिजेंस प्रदान करने वाले प्लेटफॉर्म केपलर की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत की रिफाइनरी कंपनियों से यूरोपीय देशों को रिफाइंड कच्चे तेल के निर्यात का आंकड़ा बढ़ कर प्रति दिन 3.60 लाख बैरल पहुंच गया है और भारत सऊदी अरब को पीछे छोड़ते हुए यूरोप को रिफाइंड यानी परिष्कृत कच्चे तेल का निर्यात करने वाला सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है।
केपलर की रिपोर्ट के अनुसार, पूरी संभावना है कि 2025 के अप्रैल महीने तक यह संख्या 20 लाख बैरल से भी अधिक हो जाएगी। जहां तक भारत के पेट्रोलियम उत्पादों के यूरोपीय देशों में निर्यात का सवाल है, तो अप्रैल-मई, 2024 के दौरान यह 4.4 बिलियन डॉलर रहा जबकि इससे एक वर्ष पहले यह 2.8 बिलियन डॉलर का ही था। यरोपीय देशों में भारत के पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात का सबसे बड़ा गंतव्य नीदरलैंड रहा है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 के आरंभिक दो महीनों में ही भारत ने नीदरलैंड को 3.09 पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात कर दिया था जबकि पिछले पूरे वित्त वर्ष के दौरान यह आंकड़ा 14.29 बिलियन डॉलर का था। अप्रैल, 2024 में भारत के पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में नीदरलैंड की हिस्सेदारी 1.74 बिलियन डॉलर के साथ लगभग 25 प्रतिशत की थी जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 73.6 प्रतिशत अधिक थी। भारत के पेट्रोलियम उत्पादों के दूसरे प्रमुख निर्यात गंतव्य देशों में यूएई, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और मलयेशिया शामिल हैं।
गौरतलब है कि अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देशों ने रूस से कच्चे तेल से आयात को लेकर भारत से खासी नाराजगी दिखाई थी लेकिन भारत ने इन सबके विरोध के बावजूद रूस से कच्चे तेल का आयात जारी रखा। भारत की रिफाइनरी कंपनियों ने इस आयातित कच्चे तेल को रिफाइन कर इसे रिफाइंड कच्चे तेल तथा मूल्यवान और परिष्कृत पेट्रो में तबदील किया और फिर इसका यूरोपीय देशों समेत विश्व भर के कई देशों में निर्यात कर बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सफल रहा।
भारत में 23 प्रमुख रिफाइनरियां हैं, जिनकी सालाना लगभग 250 मिलियन टन की संस्थापित क्षमता है, और इसी की बदौलत भारत एशिया में प्रमुख रिफाइनिंग हब बन गया है। रूस-यूक्रेन युद्ध आरंभ होने के समय से ही आर्थिक प्रतिबंधों से प्रभावित रूस से कच्चे तेल की कम कीमत पर खरीद के कारण भारत ने अपने रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पादों के लिए बड़ा निर्यात बाजार विकसित कर लिया है। उल्लेखनीय है कि भारत के स्वच्छ तेल-उत्पाद निर्यात में मार्च, 2022 के बाद से काफी तेजी से इजाफा हुआ जिसकी मुख्य वजह पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूस से कच्चे तेल के सीधे आयात पर रोक लग जाना रही। यूरोप की रिफाइनरियां बंद हो जाने और मार्जिन घट जाने के कारण अन्य देशों खासकर अफ्रीका से मांग में बढ़ोतरी रही। सितम्बर में भारत से डीजल, गैसोलीन और जेट ईधन जैसे पेट्रो उत्पादों का निर्यात साल दर साल की वृद्धि के आधार पर 1.5 मिलियन डॉलर तक जा पहुंचा।
भारत हमेशा से अपनी घरेलू पेट्रोलियम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कच्चे तेल के आयात पर निर्भर रहा है, जिससे देश की जरूरतों की लगभग 80 प्रतिशत की पूर्ति होती है। अमेरिका जहां अपने प्रतिद्वंद्वी देशों-रूस, ईरान और वेनेजुएला के खिलाफ प्रतिबंधों को भू-राजनीतिक हथियारों के रूप में इस्तेमाल करता रहा है, वहीं भारत के लिए ये देश महत्त्वपूर्ण व्यापारिक साझीदारी रहे हैं। अमेरिका और उसके सहयोगी यूरोपीय देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध, 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में रूस की कथित संलिप्तता और सीरिया को दिए गए हथियारों और वहां मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए दंडित करना है।
भारत के लिए यह स्थिति दुविधा वाली रही है। रूस उसका लंबे समय से रणनीतिक साझीदार रहा है, और भविष्य में भी उसे रक्षा से जुड़े हथियारों तथा उपकरणों के लिए रूस से आपूर्ति और सहायता की दरकार रहेगी। रूस पर जो प्रतिबंध लगाए गए हैं, उनके हिसाब से भारत की जो कंपनियां रूस के रक्षा उत्पादों की आपूर्तिकर्ता कंपनियों के साथ व्यवसाय करती हैं, उन पर अमेरिका द्वारा नियंत्रित डॉलर आधारित वैश्विक वित्तीय प्रणाली का प्रभाव पड़ सकता है। भारत के लिए भी अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी बैंकों से जुड़े व्यवसायों पर असर हो सकता है। यही वजह है कि भारत ने रूस को उनके उत्पादों की अदायगी के लिए दूसरे और महत्त्वपूर्ण यूरोपीय बैंकों की ओर रु ख किया है जिनका अमेरिकी बाजार से ज्यादा लेना देना नहीं है।
बहरहाल, यूरोपीय रिफाइनरी कंपनियों को रूस के सस्ते कच्चे तेल की आपूर्ति नहीं हो रही है, और उन्हें भारत की रिफाइनरी कंपनियों के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है, जो ऊर्जा की असीम संभावना से भरे यूरोपीय देशों में पांव जमाने की पूरी कोशिश कर रही हैं। केपलर की रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि अप्रैल में रूस से भारत को होने वाला कच्चे तेल का आयात प्रति दिन 2 मिलियन डॉलर से भी अधिक हो जाएगा जो भारत के कुल तेल आयात का लगभग 44 प्रतिशत होगा। 2023 में भारत रूस के लिए प्रमुख बाजार बन कर उभरा। रूस ने पश्चिमी देशों द्वारा उस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों और यूरोप को निर्यात करने पर बैन को देखते हुए भारत को कीमतों में भारी छूट की पेशकश की। भारत ने भी पश्चिमी देशों की नाराजगी की परवाह न करते हुए रूस से तेल का आयात जारी रखा जो उसके लिए देश में महंगाई पर नियंत्रण रखने और रिफाइंड पेट्रो उत्पादों के निर्यात के जरिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सहायक साबित हुआ। 3.35 बिलियन डॉलर मूल्य के कच्चे तेल के आयात के साथ मूल्य के आधार पर रूस भारत को कच्चे तेल के सबसे बड़े निर्यातक देश के रूप में उभरा जबकि सऊदी अरब का स्थान इसके बाद रहा जिसने 2.30 बिलियन डॉलर के बराबर का आयात किया। 2.03 बिलियन डॉलर के आयात मूल्य के साथ इराक तीसरे स्थान पर रहा।
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)
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