महाकुंभ : परंपरा की टेक और सांस्कृतिक विरासत
प्रयागराज महाकुंभ 2025 की तैयारियां और प्रचार दोनों जोरों पर है। यह मकर संक्रांति से शिवरात्रि तक चलना है। इस बीच जहां इस महाआयोजन की तैयारियों की खबर चर्चा में है, वहीं कुछ अप्रिय बयान भी आए हैं।
महाकुंभ : परंपरा की टेक और सांस्कृतिक विरासत |
आलम यह है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद जहां दो गुटों में विभक्त है, वहीं शैव एवं वैष्णव अखाड़ों में भी मनभेद महसूस किया जा सकता है। इसी नाते कुंभ से जुड़ी परंपराओं के नामकरण में भी विभेद दिख रहा है। संतों के पर्व स्नान एवं शोभायात्रा को अब शाही स्नान और पेशवाई जैसे नामों से नहीं जाना जाएगा।
दरअसल, ये शब्द मुसलमानी शासन के दौर की याद दिलाते हैं। अतएव इनकी जगह सार्थक सुसंस्कृत किंतु सरल नाम को प्रचलन में लाया जाना है। इसको लेकर एक पक्ष ने कुंभ अमृत स्नान एवं मेला छावनी प्रवेश यात्रा रखा है तो दूसरे ने राजसी स्नान और छावनी प्रवेश चुना है। अगर यह विवाद नहीं थमता है, तो फिर पूरे कुंभ उत्सव कई द्वंद्व देखने को मिलेंगे। इस संबंध में कुंभ को लेकर दो प्रकार की राय सामने है। एक पक्ष के अनुसार मेला क्षेत्र में गैर हिन्दुओं द्वारा व्यवसाय कतई उचित नहीं है। इसके पीछे अलग खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज और पृथक धार्मिंक मान्यताओं का मसला है।
इस्लामिक मान्यताओं का गैर मुस्लिम विचारों से असहमति संग इसका असहिष्णु एवं आक्रामक होना भी एक कारण है। पर यह बात सबको समझनी होगी कि इस पूरे आयोजन के लिए विशुद्ध सांस्कृतिक और पारंपरिक है। अत: आवश्यकता व्यवसाय के स्थान पर मान्यताओं तथा जन अपेक्षा को महत्त्व दिए जाने की है। लिहाजा, किसी तरह के सांप्रदायिक या सांस्कृतिक टकराव की बात कुंभ को लेकर अगर होती है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है, भले ऐसे बयान देने वाले बड़े-से-बड़े कथित धर्माचार्य ही क्यों न हों। कुंभ सनातन संस्कृति का सबसे बड़ा और लंबी अवधि उपरांत होने वाला एक उत्सव एवं आयोजन है। मोदी सरकार के प्रयत्नों के नाते कुंभ अब यूनेस्को की सूची में शामिल है।
विश्व के अमूर्त धरोहर के रूप में दुनिया भर में कुंभ प्रचार का कार्य चल रहा है। इस कुंभ उत्सव हेतु भारत सरकार की ओर से दुनिया के 194 देशों में निमंतण्रपत्र भेजा जा रहा है। ऐसे में यह चर्चा निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा भी हो सकता है कि इसके पीछे कोई षड्यंत्र हो। वैसे कुंभ कई मायनों में दूसरे आयोजनों से सर्वथा भिन्न है। यह परंपराओं से पूर्णतया ओतप्रोत एक पुरातन आयोजन है। मान्यताएं इसे सनातन और चिर पुरातन मानती है। प्रमाण भी कुछ ऐसे ही हैं क्योंकि वेदों में भी इसका जिक्र है। यह भारत विद्या, भारतीय जीवनशैली और यहां के उत्सवों का सुंदर समन्वय है। गौरतलब है कि सनातन संस्कृति की विशेषताओं से अवगत हो कर अनेक गैर हिंदू भी कुंभ स्नान को आते रहे हैं।
कभी मोहम्मद फजल की तरह व्यक्तिगत तो कभी प्रभुपाद से किसी हिन्दू गुरु के प्रभाव नाते पूरा का पूरा हुजूम आता रहा है। मोहम्मद फजल महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल थे, जबकि श्रील प्रभुपाद इस्कॉन नामक आध्यात्मिक हिन्दू संस्था के संस्थापक रहे है। एक स्वयं की प्रेरणा से कुंभ में आए थे तो दूसरे ने अगनित लोगों को इसके लिए प्रेरित किया है। इसलिए यहां गैर हिन्दुओं के प्रवेश को अनावश्यक रूप से मुद्दा बनाना कतई उचित नहीं है। बात कुंभ के तैयारियों की करें तो यह अभूतपूर्व और अद्वितीय है।
यहां निश्चित समय सीमा के अंदर पूर्ण होने वाले द्रुतगति से चल रहे कार्यों को देखकर भी शासकीय प्राथमिकताओं का पता चलता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा तैयारियों की अंतिम तिथि तय सीमा भी मंशा बताने को पर्याप्त है। इस दौरान महाकुंभ को लेकर उत्तर प्रदेश शासन की तैयारियां न केवल चाक चौबंद एवं दुरुस्त है बल्कि व्यापक जन सहभागिता वाली भी है। प्रदेश भर में कुंभ समिति सम्मेलन जारी है। कवि गोष्ठी एवं अन्यान्य आयोजनों द्वारा बड़ी संख्या में स्थापित नाम संग नवोदित कलाकार साहित्यकारों को भी इससे जोड़ा जा रहा है। उधर, केंद्र सरकार द्वारा दूसरे देशों में जो प्रचार अभियान चलना है उसमें अभी बेहतरी की बहुत गुंजाइश हैं।
प्रधानमंत्री की सोच के अनुरूप इसको सफलीभूत बनाने के लिए इसमें बदलावों की जरूरत है। हर कुंभ में संतों से जुड़े कई सारे मुद्दे भी विवाद का विषय बनते रहे हैं। इनमें संतों को मिलने वाली पदवी उपाधियों के साथ ही इनके स्नान अखाड़ा पेशवाई और महंथई के मसले होते हैं। इन विषयों में शासन को भी पहल करनी चाहिए। बात परंपराओं की करें तो ये मौखिक नहीं, बल्कि लिखित विधान के रूप में उपलब्ध है। ऐसे में सभी अनैतिक अधार्मिंक गतिविधियों के बंद होने की पहल भी कुंभ आयोजनों के द्वारा ही होना चाहिए। इसके साथ ही मेला क्षेत्र में अहिन्दुओं द्वारा व्यावसायिक गतिविधि पर भी संतों को आगे आना होगा। कई बार मेला प्रशासन के अतिरिक्त संतों द्वारा भी कई वेंडरों को भूमि दी जाती है। इसमें भी उसके सनातनी होने तथा शुद्ध सात्विक वस्तुओं के बेचे जाने आासन हो। तभी कुंभ उत्सव दिव्य भव्य,सार्थक सदुपयोगी और संदेशप्रद होगा।
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