कहते तो हैं, करते नहीं
गुजरात में अपनी ही पार्टी के नेताओं पर राहुल गांधी का गुस्सा जताना कई सवाल खड़े करता है। राहुल शनिवार से दो दिवसीय गुजरात दौरे पर हैं और उन्होंने दूसरे दिन पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस के भीतर दो गुट नजर आ रहे।
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आधे लोग बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे लोगों को हटाने की सख्त कार्रवाई करनी पड़ी तो जरूर की जानी चाहिए। ऐसा कह कर राहुल ने उन नेताओं को भी सख्त संदेश देने की कोशिश की है जो हमेशा पार्टी हित के खिलाफ काम करते हैं, और पार्टी को गर्त में पहुंचाने में उनकी महती भूमिका है। दरअसल, राहुल गांधी का गुस्सा जायज है। पार्टी करीब 30 साल से गुजरात में सत्ता से बाहर है। उसके कई नेता पार्टी का साथ छोड़ कर भाजपा का दामन थाम चुके हैं।
पिछली बार (2022) के चुनाव में भाजपा ने जहां 156 सीट जीत कर अपना बेहतरीन प्रदर्शन किया था, वहीं कांग्रेस को महज 17 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। गौरतलब है कि साल 2027 में वहां विधानसभा के चुनाव होंगे। राहुल उसी के मद्देनजर दांव चल रहे हैं। यह मंशा उनके इस बयान से भी जुड़ती दिखती है, जब वो यह कहते हैं, ‘यहां विपक्ष के पास 40 फीसद वोट हैं। यहां विपक्ष छोटा नहीं है।
अगर गुजरात के किसी भी कोने में दो लोगों को आप खड़ा कर देंगे तो उनमें से एक बीजेपी का और दूसरा कांग्रेस का निकलेगा यानी दो में से एक हमारा, एक उनका होगा।’ ‘लेकिन हमारे मन में है कि कांग्रेस के पास दम नहीं है। अगर गुजरात में हमारा वोट पांच फीसद बढ़ जाएगा तो आप (बीजेपी) वहीं खत्म हो जाओगे।’ हालांकि, उनका ऐसा कहना पूरी तरह से सही भी नहीं कहा जा सकता है। पिछले साल संपन्न महाराष्ट्र, हरियाणा के चुनाव में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन दोनों ही जगह उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, बिहार, बंगाल सभी जगहों पर पार्टी कई गुटों में बंटी नजर आती है। इस वजह से उनका प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नजर नहीं आता। पार्टी में इस गुटबाजी से निपटने के लिए कांग्रेस नेतृत्व में कई बार मंथन हुआ। उदयपुर के चिंतन शिविर में इसे लेकर राज्य स्तर पर प्रदेश समन्वय कमेटी बनाने का फैसला किया गया था। हालांकि, इस पर कितना अमल हुआ यह पार्टी नेतृत्व को भी बखूबी पता है। दूसरी अहम बात यह कि आला कमान के स्तर पर भी अपने-अपने गुट हैं। राहुल गांधी का अलग तो प्रियंका का अलग। ऐसे में सिर्फ नेताओं को दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं है।
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