भारत-ईरान संबंध : खेला जा रहा इस्लामिक कार्ड

Last Updated 24 Sep 2024 11:27:40 AM IST

भारत में मुसलमानों की स्थिति पर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई द्वारा दिया गया बयान इन दिनों चर्चा में है।


भारत-ईरान संबंध : खेला जा रहा इस्लामिक कार्ड

भारत-ईरान संबंधों में जहर घोलने वाले इस बयान में खामेनेई ने कहा है कि ‘हम खुद को मुसलमान नहीं मान सकते, अगर हम म्यांमार, गाजा, भारत या किसी अन्य स्थान पर मुसलमानों द्वारा झेली जा रही पीड़ा के बारे में जानकारी नहीं रखते हैं।’ एक्स पर डाली गई इस पोस्ट के जरिए खामेनेई विश्व समुदाय खासकार इस्लामिक जगत को यह बताना चाहते हैं कि भारत में मुसलमानों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ रही है। हालांकि, भारत ने खामेनेई की बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि भारत की आलोचना करने वाले देशों को किसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करने से पहले अपने स्वयं के गिरेबान में झांक लेना चाहिए।

भारत के ईरान के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं। अब जब कि ईरान विश्व समुदाय में अलग-थलग पड़ा है, भारत आज भी ईरान के साथ खड़ा है। अमेरिकी प्रतिबंधों की परवाह किए बिना न केवल भारत ने ईरान के साथ व्यापारिक रिश्ते कायम रखे बल्कि उन्हें और अधिक मजबूत किया है। ऐसे में सवाल यह है कि खामेनेई भारत-ईरान संबंधों में पलीता क्यों लगा रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस्लामिक जगत के पैरोकार बनने की चाह में खामेनेई ने भारत को उन देशों के साथ जोड़ दिया है, जहां मुस्लिम उत्पीड़न की घटनाएं होती रही हैं।

अहम बात यह है कि उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया जहां उइगुर मुसलमानों को नमाज पढ़ने और रोजे रखने तक की इजाजत नहीं है। साल 2021 में ब्रिटेन के एक ट्रिब्यूनल ने कहा था कि चीन अपने पश्चिमी प्रांत में उइगुर मुस्लिमों का नरसंहार कर रहा है। ट्रिब्यूनल ने उइगुर मुस्लिमों को लेकर चीन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि चीन की सरकार द्वारा उइगुर मुस्लिमों की आबादी को कम करने के लिए उनकी जबरन नसबंदी की जा रही है, जो एक नरसंहार है।

इससे पहले अक्टूबर 2021 में ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित होने वाले प्रमुख अंग्रेजी दैनिक ‘द हेराल्ड सन’ ने ऑगर्न ट्रैफिकिंग (मानवीय अंगों का व्यापार) का खुलासा किया था। अखबार ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि चीन उइगुर मुसलमानों के अंगों को सेना तथा दूसरे बड़े अधिकारियों को बेच रहा है। रिपोर्ट में कहा गया था चीन ने 2017 से 2019 के बीच तकरीबरन एक लाख से अधिक उइगुर मुसलमानों के अंगों का व्यापार किया था।

अखबार के अनुसार चीन ने इस अमानवीय व्यापार के जरिए एक बिलियन डॉलर से अधिक की कमाई की है। चीन के शिनजियांग प्रांत में आज भी हजारों डिटेंशन कैंप काम कर रहे हैं। इन कैपों में बंद लाखों उइगुरों के साथ अमानवीय अत्याचार हो रहे हैं। मुस्लिम महिलाओं के साथ दुराचार, अंग प्रत्यारोपण और कठोर यातनाएं आम बात हो गई है, इसके बावजूद खामेनेई मुंह में दही जमाए बैठे हैं। उइगुरों के उत्पीड़न पर न सऊदी बोल रहा है और न ही पाकिस्तान।

यह पहला अवसर नहीं जब खामेनेई का भारतीय मुसलमानों के प्रति प्रेम उमड़ा है। 2020 के दिल्ली दंगों के बाद भी उन्होंने कहा था कि भारत में मुसलमानों का नरसंहार हुआ है। कश्मीर मुद्दे पर भी खामेनेई कई बार विवादित बयान दे चुके हैं। साल 2017 में खामेनेई ने कश्मीर की तुलना गाजा, यमन और बहरीन से की थी। अगस्त 2019 में अनु. 370 हटाने के कुछ दिन बाद खामेनेई ने लिखा था कि हम कश्मीर में मुस्लिमों की स्थिति को लेकर चिंतित हैं।

अब रही बात भारत-ईरान संबंधों की तो ईरान के साथ भारत के संबंध हमेशा से ही अच्छे रहे हैं। 15 मार्च, 1950 से ही दोनों देशों के बीच राजनियक संबंध हैं। 1983 में भारत-ईरान संयुक्त आयोग की स्थापना के बाद दोनों देशों के बीच सैन्य संबंध और रक्षा सहयोग की नींव पड़ी। ईरान न केवल हमारी तेल और गैस जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि मध्य एशिया में कनेक्टिविटी में भारत का मददगार है। हाल ही में दोनों देशों के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर महत्त्वपूर्ण डील हुई है। चाबहार के जरिए भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों तक पहुंचने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग मिल सकेगा। चाबहार को अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण व्यापार गलियारे (आईएनएसटीसी) के साथ भी जोड़ने की योजना है।

साल 2003 में भारत और ईरान ने ईरान और मध्य एशियाई देशों से खाड़ी और फिर भारत और अन्य देशों में तेल पहुंचाने की रणनीति के तहत चाबहार को विकसित करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, लेकिन अतीत में अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र द्वारा तेहरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर प्रतिबंध लगा दिए जाने के कारण अगले कई सालों तक इस परियोजना को शुरू नहीं किया जा सका।

वर्ष 2015 के परमाणु समझौते के बाद अमेकिरन प्रतिबंधों में ढील दी गई और उसी साल भारत ने इस संबंध में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। 2016 में पीएम मोदी की ईरान यात्रा के दौरान समझौते को अमली जामा पहनाया गया, लेकिन वर्ष 2018 में ट्रंप  प्रशासन द्वारा ईरान पर दोबारा प्रतिबंध लगा दिए जाने के कारण भारत के सहयोग पर सवाल खड़े हो गए। हालांकि, साल 2019 में भारत को चाबहार बंदरगाह के प्रयोग का अधिकार मिल गया था लेकिन प्रत्येक वर्ष नवीनीकरण करवाने की शर्त के कारण भारत चाबहार को लेकर कोई दीर्घकालिक रणनीति बनाने एवं उसके प्रयोग के लिए आस्त नहीं था।

अगस्त 2023 में जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स के 15 वें शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी से चाबहार पर दीर्घकालिक अनुबंध के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करने पर चर्चा की। चर्चा के दौरान दोनों नेता मध्यस्थता खंड को हटाने पर सहमत हुए। इस सहमति के बाद 13 मई, 2024 को दीर्घकालिक अनुबंध का मार्ग प्रशस्त हुआ। कुल मिलाकर कहा जाए तो भारत ने ईरान के साथ अपने व्यापारिक और कूटनीतिक रिश्तों को ध्यान में रखते हुए आपसी संबंध बेहतर बनाने पर ही जोर दिया है, लेकिन अब सर्वोच्च नेता खामेनेई एक बार फिर भारत के विरुद्ध जहर उगलकर भारत-ईरान रिश्तों में खटास पैदा करते दिख रहे हैं। खामेनेई को इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि इस्लामिक दुनिया के खैरख्वाह बनने की लालसा में भारत के साथ संबंधों को ताक पर रखना उचित नहीं होगा।
(लेखक के निजी विचार हैं)

डॉ. एन.के. सोमानी


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