युद्धविराम और शांति
इस्राइल और हमास के बीच करीब 15 महीना से जारी युद्ध के बाद आखिरकार शांति समझौता हो गया जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।
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इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने जब तक इस शांति समझौते का अनुमोदन नहीं किया था तब तक विश्व समुदाय में असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। ऐसी अफवाहें थी कि इस्रइल के कुछ धुर दक्षिणपंथी नेता इस समझौते का विरोध कर रहे थे और प्रधानमंत्री नेतन्याहू इस दबाव में शांति समझौते का अनुमोदन करने के लिए कैबिनेट वोट में देरी की। खुशी की बात है कि उन्होंने समझौते का अनुमोदन कर दिया है और अब कैबिनेट से पारित हो जाएगा।
हालांकि इस क्षेत्र की भू-रणनीति की स्थिति इतनी जटिल है जिसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि शांति समझौते की जमीन बहुत भुर-भुरी है। आने वाला समय ही बता पाएगा कि क्या इस शांति समझौते से अस्थाई शांति का रास्ता निकल पाएगा या नहीं। अमेरिका और कतर की मध्यस्थता में यह शांति समझौता संभव हो सका है, लेकिन विश्व समुदाय के नेताओं को इस समझौते को सफलतापूर्वक लागू करवाने के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है।
दोनों युद्धरत देश के बीच युद्ध विराम के कई प्रयास पहले भी हुए हैं, लेकिन समझौते पर पारस्परिक सहमति न बनने के लिए जितना हमास के नेता जिम्मेदार हैं उससे कहीं अधिक प्रधानमंत्री नेतन्याहू है। समझौते के प्रावधानों के तहत शुरु आती छह सप्ताह तक युद्ध विराम रहेगा। इस दौरान हमास 33 इस्रइली बंधकों को रिहा करेगा। दूसरे चरण में सभी बंधकों की रिहाई हो जाएगी और अस्थाई शांति समझौता लागू हो जाएगा। इस दौरान गाजा से सभी इस्रइली सैनिकों की वापसी हो जाएगी।
इस शांति समझौते को जमीन पर उतरने में अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप की बड़ी भूमिका है जिन्होंने चेतावनी दी थी कि उनके पद ग्रहण (20 जनवरी) से पहले बंधकों की रिहाई हो जानी चाहिए। गौरतलब है कि गाजा पर इस्रइल की सैनिक कार्रवाई में 46 हजार से ज्यादा लोग मारे गए। बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए की इस शांति समझौते के बाद विश्व समुदाय गाजा के पुनर्निर्माण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे और स्थाई शांति का हर संभव प्रयास करेंगे।
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