जलवायु बदलाव : आघात से आहत होती सड़कें

Last Updated 24 Sep 2024 11:23:29 AM IST

इस समय एक ध्यान देने की बात यह है कि उत्तराखंड, हिमाचल व जम्मू-कश्मीर में अधिकांश राजमार्ग जो बाधित हैं या धंस रहे हैं अथवा जिन पर खण्ड-खण्ड हो भूखण्ड गिर जाते हैं उनमें व सड़कें भी हैं जिन्हें बारहमासी चालू रखना इसलिए भी आवश्यक हो जाता है क्योंकि वे सीमांतों को छूती हैं।


जलवायु बदलाव : आघात से आहत होती सड़कें

इनका ‘ऑल वेदर रोड’ यानी बारहमासी सड़क होना अपेक्षित है। निस्संदेह बनाई भी वे इसी लक्ष्य से बनाई गई होंगी। मौसमी आपदाओं को झेलने में समर्थ सड़कें आपदाओं में राहत, पुनर्वास व पुनर्निमाण कार्यों को भी आसान कर देती हैं। वैसे हर कोई चाहता है कि उसके आवागमन की राह चाहे वे पगडंडियां ही हों बारहमासी हों। समय असमय की चुनौतियों पर खरी उतरती रहीं पगडंडियां इसकी साक्षी हैं। आज की आल वेदर रोड या हर मौसम में खरी उतरने वाली सड़कों की चाहत भी उसी क्रम में है।

संयुक्त राष्ट्र संघ सतत विकास 2030 के लक्ष्यों (एसडीजी) में भी सड़क परिवहन व उससे जुड़े इनफ्रास्ट्रक्चर्स को महत्त्वपूर्ण मानते हुए सड़क परिवहन तथा पुल सड़कों जैसे इनफ्रास्ट्रक्चरों को जलवायु बदलाव के कुप्रभावों से बचाने और उनके अनुकूलन पर काम करने का आह्वान भी किया गया है, जिससे जलवायु बदलाव के आघात से सड़कें कम आहत होें। धरा का बढ़ता तापमान सड़कों पर भी असर डाल रहा है। गरम होती धरा में पिघलते ग्लेश्यिरों के साथ पिघलती सड़कों पर भी सचेत किया जा रहा है। यह सामयिक भी है। विश्व में अधिकांश पक्की सड़कें जो कोलतार से ही बनतीं रहीं हैं तेज गर्मी में पिघलने लगती हैं।

उधर ध्रुवीय प्रदेशों व सदैव बर्फ से ढके रहने वाले क्षेत्रों में जहां वाहन परिचालन बर्फ की सड़कों पर होता है बढ़ते तापक्रम में बर्फ की सड़कें गलने लगती हैं। बारहमासी सड़कों की राह में कई चुनौंतियां भी हैं। अति की गर्मी, अति की ठंड, अति की बरसात के साथ जहां बरसात नहीं होती थी वहां बरसात होने लगी है। अत: सड़कों को बारहमासी बनाने के डिजाइन और सामग्री चयन में भी अनिचितता आ गई है। जलवायु बदलाव के हंगामे के बीच पहले की बनी सड़कों के आसपास का भी मौसम वैसा नहीं रह गया है जैसा उनके बनने के समय था। अत: पहले से बनीं सड़कों को भी ऑल वेदर रोड बनाने के लिए उसी तरह काम किए जाने की जरूरत है।

जैसे हम उन भवनों को जो भूकम्प अवरोधी नहीं हैं; रिट्रोफिटिंग कर भूकम्प सहने लायक बनाते हैं। बारहमासी सड़कों के पुलों को भी बारहमासी होना है। बाढ़, नींव कटाव, पुलों के नजदीक अवैद्य खनन के अलावा जलवायु बदलाव के दौर में पुल के संदर्भ में एक अन्य तरह की चुनौती भी आ रही है। चूंकि नदियां अपनी राह बदल रहीं हैं इसलिए कई बार पुल निष्प्रयोजन भी हो रहे हैं। सच्चाई यह भी है कि हर मौसम पर खरी रहने वाली सड़क भी हर मौसम में यातायात की गारंटी नहीं हो सकती है। सड़कें भले ही मौसमी मार झेल ले उनका कुछ न बिगड़े परंतु विपरीत मौसम की मार वाहन या यात्री झेलने में असमर्थ रहते हैं। उन्हें आगे न बढ़ने की चेतावनियां भी देनी पड़ती है।

उदाहरण के लिए आयरलैंड में वाहन चालकों को तेज हवाओं की चेतावनी देते हुए सीमित गति रखने को कहा जाता है। समुद्रों के पास जो सड़कें हैं उनमें तूफानी हवाओं और लहरों में यातायात न जारी रखने की चेतावनियां दी जाती हैं। इसी प्रकार सुरंगों के मुहानों पर बर्फ जम जाती है तो सुरंगों का तो कोई नुकसान नहीं होता है किंतु यातायात बाधित हो जाता है। वैज्ञानिक राय है कि बारहमासी सड़कों के बगल से या भीतर से जो गैस पाइपें, सीवर लाइनें, बिजली की तारें पानी की पाइपें आदि गुजरती है या गुजरेंगी जलवायु बदलाव के बीच गिरते बढ़ते तापक्रम में वे कैसी प्रतिक्रियाएं पैदा करती हैं उनका भी असर निर्माण सामग्री चयन के दौरान संज्ञान में रखा जाना चाहिए। सतत विकास व जलवायु बदलाव के प्रत्युत्तर में सड़क इक्कीसवीं सदी में बनाई जा रहीं हो तो इन बातों पर भी ध्यान दिया जाना आपेक्षित है कि उनसे जलवायु बदलाव से जुड़ी समस्याएं और न बढ़ें, जैव विविधता पर संकट न आए और लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर न पड़े।

प्राकृतिक संसाधनों का कम-से-कम उपयोग हो पर्यावरण हानि कम से कम हो। शोर कम हो। ईधन की खपत कम हो आदि। विडंबना है कि जलवायु बदलाव अनुकूलन के प्रत्युत्त स्वरूप जो बारहमासी सड़के बनाई जा रहीं हैं आपेक्षित रूप से ग्रीन रोड होने के बजाय उनके निर्माण में कतिपय संवेदनशील क्षेत्रों में भी हजारों पेड़ काट दिए जाते हैं। भूमिगत जलस्रेत पण्रालियां ध्वस्त की जाती हैं। हजारों टन मलबा नदियों में डाल दिया जाता है। जैवविविधता के प्रति भी संवेदनशीलता नहीं बरती जाती है व निर्माण के दौरान कम-से-कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले ईधन पर ध्यान नहीं दिया जाता है। वास्तव में आल वेदर रोड से ज्यादा जरूरी आल टाइम उपयोग की सड़कों पर काम करने की जरूरत है। सड़कों पर पर्याप्त रोशनी के लक्ष्यों पर तो अभी बात ही नहीं हो रही है। राजनैतिक कारणों से कमजोर भूगर्भीय संरचनाओं पर सड़कों के बनाने के दबाव से भी उबरने की जरूरत है।

वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली


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