ऑपरेशन विजय : दिलोदिमाग में जोश भरती जांबाजी

Last Updated 26 Jul 2023 01:37:33 PM IST

जुलाई 26, को देश कारगिल विजय दिवस की 24वीं वषर्गांठ मना रहा है। भारतीय सेना ने 26 जुलाई, 1999 को कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी फौज को धूल चटा दी थी।


ऑपरेशन विजय : दिलोदिमाग में जोश भरती जांबाजी

भारत-पाकिस्तान के बीच जम्मू कश्मीर के कारगिल जिले में हुआ युद्ध 60 दिनों चला था और पाकिस्तान फौज की शिकस्त के बाद 26 जुलाई, 1999 को समाप्त हुआ था। भारत की इस जीत की याद में 26 जुलाई को ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

पाकिस्तानी सैनिकों और भाड़े के आतंकवादियों को मारकर या खदेड़कर कारगिल की चोटियों पर कब्जा करने के लिए चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत तमाम बाधाओं को पार करते हुए हमारे वीर जांबाजों ने उन्हें कारगिल से खदेड़कर दुर्गम चोटियों पर जीत का परचम लहराया था लेकिन देश को इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ी थी। उस युद्ध में भारतीय सेना के सैकड़ों जवान शहीद हुए थे। युद्ध के दौरान 453 नागरिक भी मारे गए थे। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद कारगिल युद्ध में दोनों देश सीधे तौर पर सैन्य संघर्ष में शामिल हुए। यह युद्ध भारतीय सीमा में पाकिस्तानी सैनिकों और कश्मीरी आतंकवादियों की घुसपैठ का परिणाम था। युद्ध में वायु शक्ति, तोपखाने और पैदल सेना के संचालन का व्यापक उपयोग किया गया।

युद्ध की खास बात थी कि यह काफी ऊंचाई पर लड़ा गया था, जिसमें कुछ सैन्य चौकियां तो 18 हजार फुट से भी ज्यादा ऊंचाई पर स्थित थी। ऐसे में भारतीय सैनिकों के लिए लड़ाई बेहद चुनौतीपूर्ण थी लेकिन हमारे जांबाजों ने देश की आन-बान और शान के लिए  700 से भी ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। दुश्मन को रणनीतिक स्थानों से हटाने के लिए हवाई हमले करते हुए भारतीय वायुसेना ने युद्ध के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय सेना ने युद्ध के दौरान टोलोलिंग, टाइगर हिल, प्वाइंट 4875 सहित अन्य रणनीतिक चोटियों पर फिर से कब्जा कर लिया था। दरअसल, भारतीय सेना को 3 मई 1999 को कारगिल में स्थानीय चरवाहों ने पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों के बारे में सतर्क किया था और उसके दो ही दिन बाद 5 मई, 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के कम से कम 5 जवानों को मार डाला था। उसके बाद 10 मई 1999 को भारतीय सेना द्वारा ‘ऑपरेशन विजय’ की शुरुआत की गई। पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के गोला-बारूद भंडार को निशाना बनाया। 26 मई को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों पर हवाई हमला किया। 27 मई को भारतीय वायुसेना का एक मिग-27 गिर गया, जिसमें चार क्रू सदस्यों की मौत हो गई लेकिन विमान से बाहर निकलने वाले पायलट को पाकिस्तानी सैनिकों ने युद्धबंदी के रूप में पकड़ लिया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 31 मई, 1999 को घोषणा की कि कारगिल में युद्ध जैसी स्थिति है, जिसके बाद अमेरिका, फ्रांस सहित कुछ देशों ने अगले ही दिन भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। भारतीय सेना ने 9 जून, 1999 को कारगिल के बटालिक सेक्टर में दो ठिकानों पर कब्जा कर लिया। अगले ही दिन पाकिस्तान ने जाट रेजिमेंट के 6 सैनिकों के शव क्षत-विक्षत हालत में भारत को लौटाए। 13 जून, 1999 को भारत ने युद्ध की दिशा बदलते हुए टोलोलिंग चोटी पर भी कब्जा कर लिया और प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कारगिल का दौरा किया। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 15 जून, 1999 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे हटाने का आग्रह किया लेकिन पाकिस्तान ने उस अपील को अनसुना कर दिया। 11 घंटे के भीषण संघर्ष के बाद भारतीय सेना ने 20 जून, 1999 को टाइगर हिल के पास प्वॉइंट 5060 और प्वॉइंट 5100 पर भी पुन: कब्जा कर लिया।

बिल क्लिंटन ने 5 जुलाई, 1999 को नवाज शरीफ से मुलाकात की जिसके बाद पाकिस्तान ने कारगिल से पाकिस्तानी सैनिकों को हटाने की घोषणा की। 11 जुलाई, 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों ने पीछे हटना शुरू किया और भारतीय सेना ने बटालिक की प्रमुख चोटियों पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना ने 14 जुलाई, 1999 को ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता की घोषणा की। युद्ध के दौरान अपनी बहादुरी और साहसिक कार्यों के लिए कई सैन्य अधिकारी राष्ट्रीय नायक बन गए जिनमें 13 जेएके राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा, 18 ग्रेनेडियर्स के ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव, 1/11 गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, 18 ग्रेनेडियर्स के लेफ्टिनेंट बलवान सिंह, एएससी, 2 राज आरआईएफ के कैप्टन एन केंगुरु से प्रमुख रूप से शामिल हैं। युद्ध में शौर्य और पराक्रम के लिए ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव तथा लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे को परमवीर चक्र और लेफ्टिनेंट बलवान सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। कैप्टन एन केंगुरु से को मरणोपरांत महावीर चक्र और कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान कर उनकी शहादत का सम्मान किया गया। युद्ध के दौरान कैप्टन बत्रा के शब्द, ‘ये दिल मांगे मोर’ तो अब भी लोगों के कानों में गूंजते हैं। कारगिल युद्ध के ऐसे ही वीर नायकों की बहादुरी, साहस और जुनून की कहानियां आज भी देश के प्रत्येक नागरिक के दिलोदिमाग में जोश भर देती हैं।

योगेश कुमार गोयल


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