ईडी और सरकार : न्यायपालिका की है नजर

Last Updated 17 Jul 2023 01:30:29 PM IST

प्रवर्तन निदेशालय (ED) के मौजूदा निदेशक संजय कुमार मिश्रा (Sanjay Kumar Mishra) के कार्यकाल विस्तार को सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने अवैध ठहराया है क्योंकि उनको तीन बार जो सेवा विस्तार दिया गया वो सर्वोच्च न्यायालय के 1997 के आदेश, ‘विनीत नारायण बनाम भारत सरकार, सीवीसी एक्ट, दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट (Delhi Special Police Establishment Act) व कॉमन कॉज’ (Common Cause) के फैसले के विरुद्ध था।


ईडी और सरकार : न्यायपालिका की है नजर

इन सब फैसलों के अनुसार ईडी निदेशक का कार्यकाल केवल दो वर्ष का ही होना चाहिए।

इस तरह लगातार सेवा विस्तार देने का उद्देश्य क्या था? इस सवाल के जवाब में भारत सरकार का पक्ष था कि मिश्रा ‘वित्तीय कार्रवाई कार्य बल’ (एफएटीएफ) में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, इसलिए इनको सेवा विस्तार दिया जा रहा है जबकि एफएटीएफ की वेबसाइट पर ईडी निदेशक का कोई उल्लेख नहीं है। इस पर न्यायाधीशों की टिप्पणी थी कि क्या भारत में कोई दूसरा व्यक्ति इतना योग्य नहीं है, जो यह काम कर सके? मिश्रा की कार्यप्रणाली पर लगातार उंगलियां उठती रही हैं। उन्होंने जितने नोटिस भेजे, छापे डाले, गिरफ्तारियां कीं या संपत्तियां जब्त कीं, वो सब विपक्ष के नेताओं के खिलाफ थीं। इससे भी ज्यादा विवाद का विषय यह था कि विपक्ष के जिन नेताओं ने ईडी की कार्रवाई से डर कर भाजपा का दामन थाम लिया, उनके विरुद्ध कार्रवाई फौरन रोक दी गई। यह निहायत अनैतिक कृत्य था जिसका विपक्षी नेताओं ने तो विरोध किया ही, देश-विदेश में भी गलत संदेश गया। सोशल मीडिया पर भाजपा को ‘वॉशिंग पाउडर’ कह कर मजाक बनाया गया।

अगर मिश्रा निष्पक्ष व्यवहार करते तो भी उनके कार्यकाल का विस्तार अवैध ही था, पर फिर इतनी उंगलियां नहीं उठतीं। इन्हीं सब कारणों से सुप्रीम कोर्ट ने उनके सेवा विस्तार को अवैध करार दिया और भारत सरकार को निर्देश दिया कि वो 31 जुलाई, 2023 तक ईडी के नये निदेशक को नियुक्त कर दें। इसे देश-विदेश में एक बड़ा फैसला माना गया है। हालांकि सेवा विस्तार के सरकारी अध्यादेश को निर्धारित प्रक्रिया के तहत पालन करने की छूट भी भारत सरकार को दी गई है। मनमाने ढंग से अब सरकार यह सेवा विस्तार नहीं दे सकती।

सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का देश की नौकरशाही ने स्वागत किया है। उनकी इस भावना का वैध कारण भी है। कोई भी व्यक्ति जब आईएएस, आईपीएस या आईआरएस की नौकरी शुरू करता है, तो उसे इस बात उम्मीद होती है कि अपने सेवा काल के अंत में, वरिष्ठता के क्रम से, अगर संभव हुआ तो वो सर्वोच्च पद तक पहुंचेगा। परंतु जब एक ही व्यक्ति को इस तरह बार-बार सेवा विस्तार दिया जाता है, तो उसके बाद के बैच के अधिकारी ऐसे पदों पर पहुंचने से वंचित रह जाते हैं जिससे पूरी नौकरशाही में हताशा फैलती है। यह सही है कि ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर किस व्यक्ति को तैनात करना है, यह फैसला प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय नियुक्ति समिति करती है। पर इसके लिए भी कुछ नियम-प्रक्रिया निर्धारित हैं।  

जैसे इस समिति को विचारार्थ संभावित उम्मीदवारों की जो सूची भेजी जाती है, उसे केंद्रीय सतर्कता आयोग छानबीन करके तैयार करता है। लेकिन हर सरकार अपने प्रति वफादार अफसरों को तैनात करने की लालसा में कभी-कभी इन नियमों की अवहेलना करने का प्रयास करती है। इसी तरह के संभावित हस्तक्षेप को रोकने के लिए दिसम्बर, 1997 में जैन हवाला कांड के मशहूर फैसले में विस्तृत निर्देश दिए गए  थे। इन निर्देशों की अवहेलना, जैसे अब मोदी सरकार ने की है वैसे ही, 2014 में मनमोहन सिंह सरकार ने भी की थी। उसने तमिलनाडु की पुलिस महानिदेशक अर्चना रामासुंदरम को पिछले दरवाजे से ला कर सीबीआई का विशेष निदेशक नियुक्त कर दिया था। इस बार की ही तरह 2014 में भी मैंने इस अवैध नियुक्ति को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। मेरी उस याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने अर्चना रामासुंदरम की नियुक्ति को खारिज कर दिया था। उधर गृह मंत्री अमित शाह ने ईडी वाले मामले में फैसला आते ही ट्विटर पर बयान दिया कि विपक्षी दल खुशी न मनाएं क्योंकि भ्रष्टाचार के विरु द्ध ईडी की मुहिम जारी रहेगी। उनका यह बयान स्वागत योग्य है यदि ईडी की यह मुहिम बिना भेदभाव के सत्ता पक्ष और विपक्ष के संदेहास्पद लोगों के फिलाफ जारी रहती है।

जहां तक मेरा प्रश्न है, मेरा कभी कोई राजनैतिक उद्देश्य नहीं रहता। चूंकि सीबीआई, सीवीसी, ईडी आदि को अधिकतम स्वायत्तता दिलवाने में मेरी भी अहम भूमिका रही थी। इसलिए जब भी कोई सरकार ऐसे मामलों में कानून के विरुद्ध कुछ करती है, तो मैं उसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देना अपना कर्त्तव्य समझता हूं। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से उत्साहित होकर देश के मीडिया में एक बहस चल पड़ी है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय ने संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल के विस्तार को अवैध माना है, तो मिश्रा द्वारा इस दौरान लिए गए सभी निर्णय भी अवैध क्यों न माने जाएं? इस तरह के सुझाव मुझे भी देश भर से मिल रहे हैं कि मैं  इस मामले में फिर से सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाऊं।

फिलहाल मुझे इसकी जरूरत महसूस नहीं हो रही। कारण, सर्वोच्च न्यायालय के ‘विनीत नारायण बनाम भारत सरकार’ फैसले में पहले से ही इस बात का सुझाव है कि ईडी व सीबीआई के कार्यकलाप की एक नोडल एजेंसी द्वारा हर महीने समीक्षा की जाएगी। इस समिति की अध्यक्षता भारत के गृह सचिव करेंगे। उनके अलावा इसमें सीबीडीटी के सदस्य (इंवेस्टीगेशन), महानिदेशक राजस्व इंटेलिजेंस, ईडी व सीबीआई के निदेशक रहेंगे, विशेषकर जिन मामलों में नेताओं और अफसरों के आपराधिक गठजोड़ के आरोप हों। यह नोडल एजेंसी हर महीने ऐसे मामलों का मूल्यांकन करेगी। अगर सर्वोच्च न्यायालय के इस सुझाव को सरकार अहमियत देती है, तो ऐसे विवाद खड़े ही नहीं होंगे। ईडी और सीबीआई दो सबसे महत्वपूर्ण जांच एजेंसियां हैं, जिनकी साख धूमिल नहीं होनी चाहिए। दुर्भाग्यपूर्ण है कि हर सरकार इन एजेंसियों का दुरुपयोग करने की कोशिश करती है पर इससे सरकार और ये एजेंसियां नाहक विवादों में घिरते रहते हैं, और हर अगली सरकार फिर पिछली सरकार के विरुद्ध बदले की भावना से काम करती है, जो नहीं होना चाहिए।

विनीत नारायण


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