सामयिक : जल रहा है सीरिया

Last Updated 20 Mar 2025 01:28:55 PM IST

राजनीतिक अस्थिरता, धार्मिंक हिंसा, चरमपंथ, आतंकवाद और विदेशी हस्तक्षेप सीरिया की प्रमुख समस्या रही हैं, और लगता है कि असद के पतन के बाद भी मध्य-पूर्व के इस देश में शांति लौटती हुई दिखाई नहीं दे रही है।


सामयिक : जल रहा है सीरिया

असद के समर्थकों को मोहम्मद अल-जुलानी पर भरोसा नहीं है, और उनकी आशंका सच भी साबित हुई है। अल्पसंख्यक अलावी समुदाय के हजारों लोगों को मार दिया गया है। ऐसे तथ्य सामने आए हैं कि हयात तहरीर अल-शाम के सुरक्षा बलों को पूर्व राष्ट्रपति असद के समर्थकों से लड़ने के लिए भेजा गया है। 

सीरियाई सुरक्षा बलों द्वारा सीरियाई तट के गांवों और इलाके के लोगों की हत्या, कब्जा और यातना के कई वीडियो सामने आ रहे हैं, जिन्हें लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गहरी चिंता जताई जा रही है। सीरिया की अंतरिम सरकार ने देश के तटीय इलाकों लताकिया और टार्टस में बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया है। लताकिया में अलावाइट्स, सुन्नी मुस्लिम और ईसाई जैसे जातीय और धार्मिंक समूह रहते हैं। लाताकिया सीरिया का अलावाइट बहुल क्षेत्र है, और यहां अलावाइट समुदाय का विशेष प्रभाव है। टार्टस सीरिया के पश्चिमी तट पर स्थित है, और यहां अलावाइट समुदाय की अधिकता है। यह इलाका बशर अल-असद का  प्रमुख गढ़ माना जाता है। देश के तटीय इलाकों में अलावी और ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय पर सुरक्षा बलों के हमलों का असर देश के दूसरे कई इलाकों पर पड़ रहा है, और इससे तनाव गहरा गया है।  

मोहम्मद अल-जुलानी देश में बाहरी हस्तक्षेप रोकने की बात कह रहे थे लेकिन उनके कदम ठीक इससे उलट दिखाई दे रहे हैं। सीरिया की सरकार ने देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने और पेशेवर सेना तैयार करने के लिए देश के सशस्त्र बलों में उइगर, जॉर्डनियन और तुर्क सहित कुछ विदेशी लड़ाकों को प्रमुख जिम्मेदारियां सौंपी हैं। उनका यह कदम अन्य जातीय-धार्मिंक समूहों के लिए विचलित करने वाला है। जुलानी का आईएस से गहरा संबंध रहा है, और दुनिया के इस सबसे दुर्दात आतंकी संगठन का किसी देश में सीमा पर कोई विश्वास नहीं है, आईएस को विदेशी लड़ाकों की सुस्थापित सैन्य इकाई माना जाता है। जुलानी ने  आईएस से अलग होकर ही हयात तहरीर अल-शाम नामक गुट बनाया था और वे खुद को उदार नेता के रूप में प्रस्तुत कर सीरिया के कई जातीय समूहों का विश्वास जीतने में सफल भी हो सके।  लेकिन अब जब देश की कमान उनके हाथ में आई तो उन्हें लेकर आशंकाएं भी कम नहीं हैं।

एचटीएस की स्थापना 2011 में एक अलग नाम, जबात अल-नुसरा के तहत अल-कायदा के प्रत्यक्ष सहयोगी के रूप में की गई थी। स्वयंभू इस्लामिक स्टेट का नेता अबू बक्र अल-बगदादी भी इसके गठन में शामिल था। अल-जुलानी ने सार्वजनिक रूप से अल कायदा और इस्लामिक स्टेट से नाता तोड़ लिया है, लेकिन वे सुन्नी मुसलमान हैं, जो खलीफाओं के प्रभुत्व को स्वीकार करते हैं।
खलीफा अरबी भाषा में ऐसे शासक को कहते हैं, जो किसी इस्लामी राज्य या अन्य शरिया से चलने वाली राजकीय व्यवस्था का शासक हो। यह इस्लाम की पारंपरिक और प्राचीन विचारधारा है, जिस पर बहुसंख्यक सुन्नी भरोसा करते हैं। दुनिया में आईएस के उभार के केंद्र में इस विचारधारा को रखा गया जब एक दशक पहले इस्लामी चरमपंथी संगठन आईएस ने इराक और सीरिया में अपने कब्जे वाले इलाकों में खिलाफत यानी इस्लामी राज्य का ऐलान किया। शिया मुसलमान इतिहास की इस व्याख्या को स्वीकार नहीं करते।

असद के जाने के बाद शिया गहरे दबाव में हैं। अलावी, इस्माइलिस और अन्य शिया सीरिया की आबादी का करीब तेरह  फीसद हिस्सा हैं। बशर अल-असद सरकार के  पतन से पहले उनकी शासन व्यवस्था में सकारात्मक स्थिति मौजूद थी। हयात अल-शाम को सुन्नियों का संगठन माना जाता है, यदि इस विद्रोही संगठन ने शियाओं को निशाना बनाने की कोशिश की तो सीरिया में ईरान और तुर्की के हित भी टकराएंगे। सीरिया में तुर्की ईरान की जगह ले सकता है। 

सीरिया की  बाईस  मिलियन आबादी में से दसवां हिस्सा ईसाइयों का है। रूस खुद को बीजान्टिन साम्राज्य और उसकी रूढ़िवादी ईसाई धार्मिंक विरासत के प्राकृतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखता है, जो सीरियाई रूढ़िवादी ईसाई चर्च से बहुत जुड़ा हुआ है। वहीं अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करने के लिए भी रूस सीरिया में बने रहना चाहता है, जिससे वह पूर्वी भूमध्य सागर, दक्षिणी यूरोप और उत्तरी अफ्रीका तक अपनी मौजूदगी को बढ़ा सके। भूमध्य सागर में रूस की रणनीति तीन प्रमुख लक्ष्यों पर केंद्रित है, भूमध्य सागर की भौगोलिक स्थिति का लाभ उठा कर अपनी सुरक्षा में सुधार करना, भूमध्य सागर में अपनी स्थिति का उपयोग करके अमेरिका के लिए एक वैकल्पिक विश्व शक्ति के रूप में रूस की स्थिति को बढ़ाना और सीरिया में अपनी उपस्थिति को मजबूत करना। रूस का काला सागर बेड़े के लिए एकमात्र भूमध्यसागरीय नौसैनिक अड्डा सीरिया के बंदरगाह शहर टार्टस में स्थित है। टार्टस सीरिया के पश्चिमी तट पर स्थित है, और यहां अलावाइट समुदाय की अधिकता है। अब अलावी समुदाय के लोग रूस से सुरक्षा की गुहार लगा रहे हैं। सीरिया में रूस, तुर्की, ईरान, सऊदी अरब और अमेरिका का गहरा दखल है। तुर्की सीरिया की वर्तमान सुन्नी सरकार को समर्थन देकर कुदरे पर दबाव बढ़ा रहा है।

सीरिया में तुर्की की प्राथमिक रुचि उत्तरी सीरिया में कुर्द समूहों से लड़ने के लिए एक बफर जोन और एक पुलहेड बनाने की रही है। उत्तरी सीरिया के कुर्द बल में कुर्दिश पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स मिलीशिया का दबदबा है। तुर्की इसे अपनी सीमा पर मौजूद खतरे की तरह देखता है। तुर्की कुदरे के एक हिस्से को आतंकवादी समूह बताता है। असद को ईरान का समर्थन हासिल था लेकिन अब तुर्की समर्थक सरकार बनने से मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक परिदृश्य बदल  गया है।  मोहम्मद अल-जुलानी को अपने देश में शांति की स्थापना के लिए विदेशी हस्तक्षेप को रोकना होगा और सभी वगरे से बातचीत कर सर्वमान्य सरकार बनाना होगा। फिलहाल, जुलानी आर्दोआन के हितों को आगे बढ़ा रहे हैं, और यह स्थिति सीरिया में गृह युद्ध की आशंका को बढ़ा रही है।  
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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