रक्षा क्षेत्र : समुद्री सुरक्षा को मजबूती देगा ‘विक्रांत’

Last Updated 01 Aug 2022 12:07:33 PM IST

स्वदेश निर्मित भारत के पहले विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत को कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) ने 28 जुलाई को कोच्चि में भारतीय नौसेना को सौंप दिया।


रक्षा क्षेत्र : समुद्री सुरक्षा को मजबूती देगा ‘विक्रांत’

इस पोत को 15 अगस्त को नौसैनिक बेड़े में शामिल किए जाने की संभावना है। देश की आजादी की 75वीं वषर्गांठ पर मिलने वाला यह स्वदेशी पोत हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की नौसैनिक ताकत को बढ़ाएगा। आईएनएस विक्रांत के नौसेना में शामिल किए जाने के बाद भारत उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो गया है, जिनके पास स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए विमान वाहक पोत बनाने की विशिष्ट क्षमता है। इस उपलब्धि के बाद भारतीय नौसेना दुनिया की शीर्ष तीन नौसेनाओं में शुमार हो गई है। इस तरह स्वदेशी विमान वाहक पोत ने नौसैन्य बल का एक नया समुद्री इतिहास बना दिया है।

स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत के निर्माण की शुरुआत 28 फरवरी, 2009 को कोच्चि के कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में की गई थी। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इसे 12 अगस्त, 2013 को लॉन्च किया गया। दिसम्बर, 2020 में इसका बेसिन ट्रायल किया गया जिसमें यह खरा उतरा। सामुद्रिक परीक्षणों के लिए इसे 4 अगस्त, 2021को समुद्र की लहरों पर उतारा गया था जो इसके परीक्षण का पहला चरण था। दूसरा चरण अक्टूबर, 2021 और तीसरा चरण 22 जनवरी, 2022 को पूरा हुआ। अंतिम और चौथा समुद्री परीक्षण मई, 2022 में शुरू किया गया जो 10 जुलाई, 2022 को पूरा हुआ। चौथे परीक्षण में समुद्र के करीब और दूरी पर रक्षा संबंधी उपकरणों के साथ इसकी रणनीतिक क्षमता को नौसेना द्वारा व्यापक रूप से जांचा-परखा गया। इस भारी-भरकम युद्धपोत के निर्माण में लगभग 75 प्रतिशत स्वदेशी उपकरणों का प्रयोग किया गया है।

आईएनएस विक्रांत भारत का पहला स्टेट-ऑफ-द-आर्ट विमान वाहक पोत है। इसे बनाने में तकरीबन 23000 करोड़ रुपये की लागत आई है। इसके कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम को टाटा पावर स्ट्रैटेजिक इंजीनियर डिवीजन ने रूस की वैपन एंड इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजीनियरिंग और मार्स के साथ मिलकर बनाया है। इसे बनाने में कोचीन शिपयार्ड के साथ-साथ 550 भारतीय कंपनियों ने मदद की है। इसके निर्माण में 100 एमएसएमई कंपनियां भी शामिल थीं। मेक इन इंडिया का यह बेहतरीन उदाहरण है। इस पर पहले  हल्के तेजस लड़ाकू विमान तैनात किए जाने की बात तय हुई थी परन्तु यह निर्णय इसके कैरियर के हिसाब से भारी हो रहा था। इसके बाद रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने प्लान बनाकर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को दे दिया जिसके तहत वह ट्विन इंजन डेक बेस्ड फाइटर विकसित कर रहा है। तब तक इस पर मिग-29 लड़ाकू विमानों को तैनात किया जाएगा।

आईएनएस विक्रांत का इस्पात नगरी से भी गहरा नाता है। यह सेल के ध्वजवाहक भिलाई इस्पात संयंत्र के फौलाद से बना है। इस संयंत्र ने युद्धपोत के लिए विशेष क्वालिटी की प्लेट आपूर्ति की है। पूर्व में ये प्लेटें रूस से मंगाई जाती रही हैं। उल्लेखनीय है कि यह संयंत्र एंटी सबमरीन युद्धपोत, आईएनएस किलतान युद्धपोत, आईएनएस कमोर्ता युद्धपोत एवं आईएनएस कदमत युद्धपोत के लिए भी मजबूत प्लेटों की आपूर्ति कर चुका है। इस विमान वाहक पोत की फ्लाइट डेक काफी बड़ी अर्थात 1.10 लाख वर्ग फुट एरिया वाली है, जिस पर से बड़ी संख्या में लड़ाकू विमान आराम से टेक-ऑफ व लैंडिंग कर सकते हैं। इस पर एक बार में 36 से लेकर 40 की संख्या में लड़ाकू विमान तैनात किए जा सकते हैं। इस पर 26 मिग-29 के और 10 लड़ाकू विमानों में कामोव केए-31, वेस्टलैंड सी किंग या बहुउद्देशीय भूमिका वाले ध्रुव हेलीकॉप्टर तैनात किए जा सकते हैं। इस विमान वाहक पोत की स्ट्राइक फोर्स की रेंज 1500 किमी. तक है। इस पर जमीन से हवा में मार करने में सक्षम 64 बराक मिसाइलें लगी होंगी। आईएनएस विक्रांत में जनरल इलेक्ट्रिक के ताकतवर टरबाइन लगे हैं, जो इसको 1.10 लाख हॉर्स पावर की ताकत देंगे। इस तरह यह काफी ताकत वाला विमान वाहक पोत है।
इस युद्धपोत को सर्वश्रेठ ऑटोमेटेड मशीनों, ऑपरेशन, शिप नेविगेशन एवं सुरक्षा प्रणलियों से लैस किया गया है। इसकी लंबाई 860 फुट, इसकी बीम 203 फुट, गहराई 84 फुट ओर चौड़ाई 203 फुट है। इस पोत का कुल क्षेत्रफल 2.5 एकड़ है। यह 52 किमी. प्रति घंटे की गति से समुद्र की लहरों को चीरता हुआ तेजी से बढ़ने की क्षमता रखता है। समुद्र में निकलने पर यह एक बार में 15000 किमी. की यात्रा कर सकता है। इसमें एक बार में 196 नौसेना अधिकारी, 1149 सेलर्स व एयरक्रू तैनात रह सकते हैं। इसमें चार आटोब्रेडा 76 मिमी. की ड्यूल पर्पज कैनन तथा चार एके-630 प्वाइंट डिफेंस सिस्टम गन लगी होंगी। इन खूबियों वाला यह पोत हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों के मद्देनजर भारतीय नौसेना की ताकत काफी बढ़ा देगा।

डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव


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