पानी में अमोनिया : गहराते संकट का समाधान कब?
नदियों के पानी को लेकर देश के कई राज्यों के बीच जब-तब तनातनी बनी रहती है। इसके बावजूद यह तल्ख सच्चाई है कि जो पानी इन राज्यों को मयस्सर है, उसकी भी कोई कदर नहीं है।
पानी में अमोनिया : गहराते संकट का समाधान कब? |
गत जनवरी माह में दिल्ली में यमुना के पानी में अमोनिया का खतरनाक स्तर तक पहुंचना तो इसकी एक नजीर भर है। इसकी वजह से वजीराबाद, चंद्रावल और ओखला जल उपचार संयंत्रों को सुबह-शाम के लिए बंद करना पड़ा था। नतीजतन, दिल्ली के कई इलाकों और वहां निवास करने वाली बड़ी आबादी को परेशानी का सामना करना पड़ा।
दरअसल, 0.9 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) अमोनिया की सतह शोधन योग्य है, लेकिन वजीराबाद तालाब में यह स्तर सात गुना से अधिक बढ़ गया था। ऐसा शायद इसलिए है कि सरकारें इससे संबंधित एजेंसियों और संस्थाओं से बेखौफ हैं, क्योंकि इससे महज चंद दिन पूर्व ही राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के जरिए गठित यमुना निगरानी समिति (वाईएमसी) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) का ध्यान इस ओर दिलाया था। इसके बावजूद इसके प्रति कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई।
इस मामले में चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने भी स्वत: संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली को नोटिस जारी किया था। हर बार दिसम्बर से लेकर फरवरी तक कई बार इस तरह की परिस्थितियां आती हैं, जब दिल्ली में यमुना में अमोनिया का स्तर तय मानक को पार कर जाता है। पिछले साल अमोनिया का स्तर अधिक होने की वजह से दिल्ली में पांच बार जल संयंत्रों को बंद करना पड़ा था। गत 25 दिसम्बर को इसका स्तर 13 पीपीएम तक पहुंच गया था। यही नहीं, यमुना में वर्ष 2020 में 33 दिन ऐसा हुआ जब इसके पानी में अमोनिया की मात्रा शोधन क्षमता से ज्यादा रही। इस तरह कुल मिलाकर यह साल भर में एक माह से अधिक समय तक तय मानक से ज्यादा रही।
जब भी इस तरह की स्थिति आती है, तो ऊपरी गंगा या मुनक नहर के कच्चे पानी के साथ इस प्रदूषित पानी को डाल्यूट करके शोधन योग्य बनाया जाता है। इन नहरों में पानी की उपलब्धता कम होने पर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की उत्पादन क्षमता को कम करना या अस्थायी रूप से बंद करना पड़ता है। असल में यमुना में अमोनिया (अमोनिकल नाइट्रोजन) के स्तर में बढ़ोतरी औद्योगिक अपशिष्ट और अनुपचारित घरेलू सीवेज की वजह से होती है। दिल्ली जल बोर्ड इसका दोष मुख्यत: हरियाणा पर मढ़ता रहा है। उसके अनुसार डीडी-1 और डीडी-2 नाले यमुना में प्रदूषित जल बहाते हैं। गौरतलब है कि इनमें औद्योगिक इकाइयों से डाई लेकर आने वाले डीडी-2 नाले को ‘डाई ड्रेन’ के तौर पर भी जाना जाता है। ये दोनों नाले हरियाणा के पानीपत जिले में शिमला गुजरान गांव में मिलते हैं, और खोजकीपुर गांव के पास यमुना में मिल जाते हैं। यहां यमुना में अमोनिया का स्तर 40 पीपीएम तक पहुंच जाता है। इसके अलावा, दिल्ली में यमुना में डीडी-8 और डीडी-6 से पानी आता है। इनमें डीडी-8 का पानी तो पीने योग्य माना जाता है, लेकिन हरियाणा के सोनीपत स्थित प्याऊ मनहारी गांव के पास डीडी-6 नाले से बड़ी मात्रा में औद्योगिक कचरा और घरेलू सीवेज प्रवाहित होता है। इन दोनों नहरों को रेत की बोरियों से अलग किया गया है, जो कई जगहों पर खराब हालत में हैं। इसके कारण डीडी-6 का दूषित पानी डीडी-8 के साथ मिश्रित होकर दिल्ली पहुंचता है। दिल्ली जल बोर्ड का आरोप है कि हरियाणा के अधिकतर जल संयंत्रों के काम न करने की वजह से दूषित पानी यमुना में प्रवाहित होता है, लेकिन हरियाणा ही अकेले कसूरवार नहीं है।
दिल्ली की कॉलोनियों से निकलने वाले घरेलू सीवेज भी बिना शोधन के यमुना में मिल रहे हैं। इस दूषित पानी को पीने से लोगों में एनीमिया, खांसी, आंखों में जलन, बेचैनी, कैंसर और दर्द जैसे रोगों के साथ-साथ फेफड़ों, दिमाग और दीगर अंदरूनी अंगों को नुकसान पहुंच सकता है। यही हाल देश की सबसे बड़ी जीवनदायिनी नदी गंगा का भी है। वर्ष 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के ‘गंगा एक्शन प्लान’ से लेकर मौजूदा सरकार के ‘नमामी गंगे’ जैसी बड़ी परियोजनाओं पर हजारों करोड़ रु पये पानी की तरह बहाने के बाद भी इसमें साफ पानी नहीं बहा।
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