प. बंगाल : त्रिशंकु विधानसभा के आसार
समाचार चैनलों के कवरेज को देखें तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बल्ले-बल्ले है। एक तो सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस के कई सिपहसालार ऐन चुनाव के वक्त पर पार्टी छोड़ कर मोदी-शाह की पनाह में जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ वाम-कांग्रेस भी सक्रिय हो चले हैं।
प. बंगाल : त्रिशंकु विधानसभा के आसार |
इससे तय है कि ममता बनर्जी को नुकसान उठाना पड़ सकता है, लेकिन राजनीति के जानकार इसे सीटों के कम होने वाला नुकसान ही मान रहे हैं। इधर जनमत समीक्षाओं में भी यह संकेत है। सी-वोटर की जनमत समीक्षा में तृणमूल कांग्रेस की सीटें घट तो रही हैं पर बढ़त उसे ही मिल रही है। उसे 154 से 162 सीटें मिल सकती हैं। 2016 में उसे 211 सीटें मिली थीं और वोट मिले थे कुल 45 फीसद। सर्वे के मुताबिक इस बार उसे दो फीसद का नुकसान उठाना पड़ सकता है। वाम दलों और कांग्रेस गठजोड़ को कुल 77 सीटें मिली थीं और वोट 40 फीसद के करीब। लेकिन इस बार उसके वोट और सीटें, दोनों कम जाएंगे। सर्वे की मानें तो इस गठजोड़ को 26 से 34 सीटें और 12 फीसद वोट मिलने जा रहा है। दूसरे नम्बर पर भाजपा को आते दिखाया गया है। पिछली बार तीन सीटें और 10 फीसद वोट पाने वाली भाजपा को 98 से 106 सीटें और 38 फीसद वोट मिलने की संभावना बताई गई है, लेकिन सवाल यही है कि क्या पिछले विधानसभा चुनाव में तीन सीटें जीतने वाली भाजपा को सचमुच सत्ता की चाबी मिल जाएगी और गठजोड़ की ताकत और कम हो जाएगी?
अमित शाह, जेपी नड्डा समेत पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं की राज्य में आमद बढ़ गई है। सत्ताधारी टीएमसी में टूट अपने शवाब पर है। टीएमसी प्रमुख एवं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कभी काफी करीब रहे राज्य के पूर्व मंत्री और मैदिनीपुर के कद्दावर नेता शुभेंदु अधिकारी भाजपा में शामिल हो चुके हैं। तृणमूल प्रमुख के भतीजे अभिषेक बनर्जी को तरजीह दिए जाने और दूसरे वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा का आरोप लगाकर पार्टी से अलग होने वाले इस नेता के सांसद भाई और पिता भी पाला बदल सकते हैं। भाजपा नेताओं का दावा है कि टीएमसी के कई विधायक उनके संपर्क में हैं। विष्णुपुर के सांसद सौमित्र खां ने दावा किया है कि जल्द ही तृणमूल कांग्रेस के सात-आठ सांसद और 40-42 विधायक अपनी पार्टी छोड़ कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे। भाजपा के राज्य अध्यक्ष दिलीप घोष दो कदम आगे बढ़ कर दावा कर रहे हैं कि तृणमूल जल्द ही खत्म हो जाएगी। मध्य प्रदेश से आकर बंगाल की राजनीति पर नजर रख रहे कैलाश विजयवर्गीय को भी हवा का रु ख कुछ ऐसा ही लग रहा है। तृणमूल और भाजपा दोनों की तरफ से दो सौ से अधिक सीटें जीतने का किया जा रहा है। ऐसे में सवाल लाजिमी है कि वामदल-कांग्रेस गठजोड़ कहां होगा? क्या उन्हें खत्म मान लेना चाहिए?
राजनीतिक प्रेक्षकों की राय और वाम दलों की बढ़ती गतिविधियों पर नजर रखें तो ऐसा लगता नहीं है। जिस वाम मोर्चे को राज्य के लोगों ने सात-सात बार चुना हो, उसे एक-दो चुनावों में हारने या उसके वोट घटने की वजह से समाप्त मान लेना गलत होगा। कांग्रेस के साथ वह तीसरी ताकत के रूप में सामने है। गौरतलब है कि पिछले चुनाव में कांग्रेस-वामदल को 77 सीटें मिली थीं और भाजपा को तीन सीटें। 2019 के लोक सभा चुनाव में भाजपा को 18 सीटें जरूर मिली थीं पर राज्य के चुनाव के मसले वही नहीं होते जो लोक सभा के होते हैं। अभी-अभी हुए बिहार के चुनाव ने भी इसे साबित किया है। लोक सभा में बहुत बुरी तरह हारने वाले महागठबंधन ने अच्छी टक्कर दी है। पड़ोसी राज्य में वाम दलों का अच्छा प्रदशर्न रहा है। इससे वाम हलके में उत्साह पैदा हुआ है। केरल समेत कई राज्यों के स्थानीय निकायों के चुनाव परिणामों ने वाम-कांग्रेस के हौसले को बढ़ाया है। वाम दलों को भरोसा है कि उसके वोटर आगामी विधानसभा चुनाव में उनके पास लौटेंगे। कांग्रेस-वाम गठजोड़ अपनी मजबूत स्थिति दर्ज करा पाएंगे। इसकी खास वजह केंद्र और राज्य सरकार की जनविरोधी नीतियों, बढ़ती महंगाई-बेकारी, भ्रष्टाचार, अपराध, सांप्रदायिक विभाजन-तनाव से लोगों में ऊब, डर और असंतोष मानते हैं। गठबंधन के नेता अपने भाषणों-बयानों में लगातार देश की आर्थिक बदहाली, बेकारी, किसानों की समस्या और राज्य में सांद्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के लिए भाजपा और तृणमूल, दोनों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सिंगूर से टाटा की विदाई के लिए तृणमूल से भाजपा में गए नेता इस भूल के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांग रहे हैं, और वहां फिर से टाटा को न्यौतने का वादा कर रहे हैं। एक तरफ ममता भाजपा को माओवादियों से ज्यादा खतरनाक बता रही हैं, तो भाजपा नेता तृणमूल को ही उनका करीबी करार दे रही है।
दरअसल, वाम दलों की मौजूदगी को न तो टीएमसी नकार पा रही है, और ना ही भाजपा। तभी तो दोनों दलों के नेता वाम समर्थकों से अपने दल के उम्मीदवारों के पक्ष में वोट देने की अपील कर रहे हैं। भाजपा टीएमसी के भ्रष्टाचार और अराजकता से मुक्ति दिलाने के लिए तो तृणमूल सांप्रदायिक खतरे से राज्य को बचाने के लिए। टीएमसी पर मुसलमानों के पक्ष में तुष्टिकरण का आरोप लगाती रही है। इधर, असउद्दीन ओवैसी की मिम ने राज्य में चुनाव लड़ने का ऐलान कर मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कवायद शुरू कर दी है। इसके साथ ही राज्य में इंडियन सेक्युलर फ्रंट का गठन हो गया है। इसके अध्यक्ष अब्बास सिद्दीकी ने 40 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में ध्रुवीकरण का खतरा पैदा होगा जो भाजपा के लिए सुअवसर पैदा होगा। ऐसा राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है।
भाजपा में भी सब ठीक-ठाक नहीं है। पुराने बनाम नयों का विवाद मारपीट, हमले तक पहुंच गया है। दल में दूसरे दल से आए लोगों को सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं पुराने लोग। सौमित्र खां ने दिलीप घोष को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग कर पार्टी नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। इस बीच वाम दल अपने साथ राजद, एनसीपी जैसे दलों को भी साथ लेने जा रहे हैं। वाम और कांग्रेस के मोहम्मद सलीम, अधीर रंजन जैसे नेता दावा कर रहे हैं कि केंद्र, राज्य सरकारों के कामकाज से, दलबदल, मौकापरस्ती आदि से नाराज लोग हमारी तरफ उम्मीद की नजर से देख रहे हैं। दरअसल, राजनीतिक परिदृश्य ऐसा बन गया है, जिसमें किसी भी दल या मोर्चे की जीत का दावा संदिग्ध है। वाम की तरफ उनके समर्थक और दूसरे दलों से नाराज लोग लौटते हैं, तो त्रिशंकु विधानसभा की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
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