स्मरण : रामानुजन जैसे गणितज्ञों की जरूरत

Last Updated 22 Dec 2020 03:12:43 AM IST

आज पूरे विश्व में जब भी गणित की या गणित में योगदान की बात की जाती है तो श्रीनिवास रामानुजन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।


स्मरण : रामानुजन जैसे गणितज्ञों की जरूरत

प्राचीन समय से भारत गणितज्ञों की सरजमीं रही है। आर्यभट, भास्कर, भास्कर-द्वितीय और माधव सहित दुनिया के कई मशहूर गणितज्ञ भारत में पैदा हुए। उन्नीसवीं शताब्दी और उसके बाद में रामानुजन, चंद्रशेखर सुब्रमण्यम और हरीश चंद्र जैसे गणितज्ञ विश्व पटल पर उभरकर सामने आए। आर्यभट्ट ने ही दुनिया को दशमलव का महत्त्व समझाया।  

रामानुजन की पारिवारिक पृष्ठभूमि गणित की नहीं थी। ऐसे में अपनी क्षमता को दुनिया के सामने लाने के लिए उन्हें अत्यधिक परिश्रम करना पड़ा। रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर, 1887 को तमिलनाडु के इरोड में हुआ था। वह पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। 1897 में रामानुजन ने प्राथमिक परीक्षा में जिले में अव्वल स्थान हासिल किया। इसके बाद अपर प्राइमरी की परीक्षा में अंकगणित में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर अपने अध्यापकों को चौंका दिया। 1903 में रामानुजन ने दसवीं पास की। इसी साल उन्होंने घन (क्यूब) और चतुर्घात समीकरण (बायक्वाडरेटिक इक्वेशन) हल करने का सूत्र खोज निकाला। लेकिन 12वीं की परीक्षा में गणित को छोड़कर वह अन्य सभी विषयों में फेल हो गए। दिसम्बर, 1906 में उन्होंने स्वतंत्र परीक्षार्थी के रूप में 12वीं की परीक्षा पास करने की कोशिश की लेकिन विफल रहे। इसके बाद पढ़ाई छोड़ दी। बिना डिग्री लिए ही उन्हें औपचारिक अध्ययन छोड़ना पड़ा। अध्ययन के बल पर वह कभी भी डिग्री प्राप्त नहीं कर सके। लेकिन उनके कार्यों और योग्यता को देखते हुए ब्रिटेन ने उन्हें बीए की मानद उपाधि दी और बाद में उन्हें पीएचडी की भी उपाधि दी। सवाल उठता है कि क्या यह भारत में संभव था।     

1911 में रामानुजन का सम प्रोपर्टीज ऑफ बारनालीज नंबर्स शीषर्क से प्रथम शोध पत्र जनरल ऑफ मैथमेटिक्स सोसायटी में प्रकाशित हुआ। मद्रास के इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रो. सीएलओ ग्रिफिक्स ने रामानुजन के शोध पत्र गणित विद्वानों को भिजवाए। प्रो. ग्रिफिक्स की सलाह पर रामानुजन ने 1913 में तत्कालीन विख्यात गणितज्ञ एवं ट्रिनिटी कॉलेज के फैलो प्रो. हार्डी को पत्र लिखा, जिसमें 120 प्रमेय और सूत्र शामिल थे। प्रो. हार्डी पत्र से इतने प्रभावित हुए कि रामानुजन को कैंब्रिज आने का न्योता दे डाला। मार्च, 1914 को रामानुजन लंदन पहुंचे तो जल्द ही उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज में प्रवेश मिल गया। यहां प्रो. लिटिलवुड के साथ मिलकर शोध कार्य में लग गए। प्रो. हार्डी के निर्देशन में अध्ययन करते हुए गणित संबंधी अनेक स्थापनाएं दीं जो 1914 से 1916 के मध्य विभिन्न शोध पत्रों में प्रकाशित हुई।

उनकी योग्यता को देखते हुए 28 फरवरी, 1918 को रॉयल सोसायटी ने उन्हें अपना सदस्य बना कर सम्मानित किया। कुछ समय बाद ट्रिनिटी कॉलेज ने भी उन्हें अपना फैलो चुन लिया। हाईली कम्पोजिट नंबर शीषर्क के अनुसंधान कार्य के आधार पर 1916 में रामानुजन को बीए की उपाधि प्रदान की गई। प्रो. हार्डी की सदाशयता ने रामानुजन के जीवन की बड़ी कमी को दूर कर दिया। यह उपाधि वह चाबी थी जिसने आगे की सफलता के सभी द्वार खोल दिए थे। बाद में उसी उपाधि को पी.एचडी में बदल दिया गया था। रामानुजन के शोध प्रबंध का सार जनरल ऑफ लंदन मैथेमेटीकल सोसाइटी में 50 पृष्ठ के विस्तार से छपा था। रामानुजन 1903 से 1914 के बीच कैम्ब्रिज जाने से पहले गणित की 3542 प्रमेय लिख चुके थे।

उनकी इन तमाम नोटबुकों को बाद में ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च बाम्बे’ (मुंबई) ने प्रकाशित किया। इन नोट्स पर इलिनॉय विश्वविद्यालय के गणितज्ञ प्रो. ब्रूस सी. बर्नाड्ट ने 20 वर्षो तक शोध किया और अपने शोध पत्र को पांच खंडों में प्रकाशित कराया।
रामानुजन का निधन 33 वर्ष की अल्पायु में 26 अप्रैल, 1920 को कावेरी नदी के तट पर स्थित कोडुमंडी गांव में हो गया। फिर भी उन्होंने इतनी कम उम्र में भी गणित के क्षेत्र में बड़ा काम किया था। उनकी गणितीय प्रतिभा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके निधन के लगभग 93 वर्ष व्यतीत जाने के बाद भी उनकी बहुत सी प्रमेय अनसुलझी बनी हुई हैं। उनकी विलक्षण प्रतिभा के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए भारत सरकार ने प्रत्येक वर्ष उनका जन्म दिवस 22 दिसम्बर को  ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया है।

शशांक द्विवेदी


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