सामरिक नीति : रूस का इस्लामी चक्रव्यूह

Last Updated 22 Dec 2020 03:15:51 AM IST

रूस की सामरिक नीतियों में अब इस्लामिक देशों के नेतृत्व की अग्रगामी नीति प्रभावशील है और पुतिन की वैश्विक रणनीति में यह प्रतिबिम्बित भी हो रहा है।


सामरिक नीति : रूस का इस्लामी चक्रव्यूह

यूरोप और एशिया के कई देशों को छूने वाले दुर्गम कॉकेशस में अजरबेजान और आर्मेनिया के बीच नागोर्नो-काराबाख पर आधिपत्य को लेकर कड़े संघर्ष के बाद रूस के हस्तक्षेप से शांति वार्ता आर्मेनिया के लिए अप्रत्याशित रही, लेकिन उसे जमीन खोकर भी शांति संधि मानने को मजबूर होना पड़ा।
रूस के अजरबैजान और आर्मेनिया, दोनों ही देशों से बेहतर संबंध हैं, लेकिन आर्मेनिया में उसका सैन्य अड्डा है तथा दोनों देशों के बीच सुरक्षा और सहयोग संधि भी है। इसके बाद भी रूस ने अजरबैजान के हित में कदम उठाए। अजरबैजान के पक्ष में तुर्की, पाकिस्तान और सीरिया के लड़ाके युद्ध मैदान में थे, जबकि रूस ने आर्मेनिया के पक्ष में युद्ध में भाग नहीं लिया। दरअसल, नागोर्नो-काराबाख का परिणाम पुतिन की इस्लामिक देशों से संबंध मजबूत करने की वह रणनीति है, जिससे उन्होंने अमेरिका समेत सभी देशों को चकित कर दिया। अजरबैजान मुस्लिम बाहुल्य होकर ईरान और तुर्की का मित्र देश है, इन दोनों देशों से अमेरिका के संबंध खराब हैं जबकि रूस इन मुस्लिम देशों का सामरिक साझेदार बन गया है। अजरबैजान युद्ध में तुर्की की भूमिका किसी से छुपी नहीं है। सोवियत संघ के विभाजन के बाद अस्तित्व में आए अजरबैजान को तुर्की ने 1991 में स्वतंत्र देश के रूप में स्वीकार करते हुए उसे अपना भाई बताया था जबकि आर्मेनिया के साथ तुर्की के कोई आधिकारिक संबंध नहीं हैं। 1993 में जब आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच सीमा विवाद बढ़ा तो अजरबैजान का समर्थन करते हुए तुर्की ने आर्मेनिया के साथ सटी अपनी सीमा बंद कर दी थी। आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच भीषण युद्ध में तुर्की ने अजरबैजान का खुलकर समर्थन किया।

ये तथ्य भी सामने आए हैं कि तुर्की के सहयोग से सीरिया में लड़ने वाले कई लड़ाके भी अजरबैजान की ओर से युद्ध के मैदान में झोंक दिए गए थे। नागार्नो काराबाख के इलाके में इस साल 27 सितम्बर को लड़ाई भड़की थी और पुतिन की मध्यस्थता के बाद नवम्बर में यह जंग उस वक्त खत्म हुई जब दोनों देश संघर्ष विराम के लिए तैयार हो गए थे। समझौते के तहत आर्मेनिया के नियंत्रण वाले सात इलाके अजरबैजान की दखल में आ गए। इन क्षेत्रों पर पहले आर्मेनिया का कब्जा हो गया था। अजरबैजान में इस लड़ाई को बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है जबकि आर्मेनिया में इसे कई लोग आत्मसमर्पण कह रहे हैं।
ाध्य-पूर्व में ईरान और इजराइल के संबंध नाजुक हैं, ईरान के परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की एक हमले में मौत को लेकर ईरान में बहुत गुस्सा है और उसने इजराइल को सबक सिखाने की धमकी भी दी है। फखरीजादेह की ईरान की राजधानी तेहरान के पास अज्ञात बंदूकधारियों ने हत्या कर दी थी। उनकी हत्या बेहद गोपनीय मिशन के तहत सुनियोजित रणनीति से की गई और ऐसे सनसनीखेज काम करने के लिए मोसाद कुख्यात रही है। इसके पहले इस साल की शुरु आत में बगदाद में एक अमेरिकी ड्रोन हमले में ईरान के टॉप मिलिटरी कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी मारे गए थे। सुलेमानी ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की कुद्स फोर्स के प्रमुख थे जो दुनिया भर में ईरान विरोधी ताकतों को निशाना बनाती रही है। सुलेमानी को पश्चिम एशिया में ईरानी गतिविधियों को चलाने का प्रमुख रणनीतिकार माना जाता था। ईरान इन हत्याओं को लेकर इजराइल और अमेरिका को जिम्मेदार ठहराता रहा है। अब ईरान के पक्ष में रूस खुलकर सामने आ गया है। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लैवरोव ने कहा है कि रूस ईरानी परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या के मामले में ईरान के साथ खड़ा है। उन्होंने साफ कहा कि  ये हत्याएं क्षेत्र में अशांति पैदा करने के मकसद से की गई हैं, और यह किसी भी देश के लिए अस्वीकार्य है। रूस  के ईरान के साथ आने से स्पष्ट है कि मध्य-पूर्व में तनाव और ज्यादा बढ़ सकता है।
ईरान और तुर्की से मजबूत संबंधों के बूते रूस ने मध्य-पूर्व और यूरोप में अमेरिकी प्रभुत्व को कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभाई है। रूस सीरिया की असद सरकार का बड़ा मददगार है और उसके सीरियाई संकट में असद के पक्ष में खड़ा होने के बाद सीरिया की सरकारी सेना मजबूत हुई है जबकि अमेरिका तथा  नाटो के प्रभाव में कमी आई है। सीरिया की सरकारी सेना ने रूस के समर्थन से सैन्य अभियान चला रखा है। सीरिया में सुन्नी मुस्लिम कुल जनसंख्या का 74 प्रतिशत हैं जबकि शिया करीब 13 प्रतिशत रहते हैं। अल्पसंख्यक शिया समुदाय से संबंधित असद का सुन्नी बहुल देश सीरिया में सत्ता में बने रहना सऊदी अरब जैसी इस्लामिक ताकतों को स्वीकार नहीं है, वहीं रूस के समर्थन से ईरान असद को सत्ता में बनाए रखने के लिए हथियारों की अबाधित आपूर्ति समेत सामरिक मदद करता रहा है। अमेरिका का पारंपरिक मित्र सऊदी अरब सीरिया के विद्रोही संगठनों को सहायता देकर असद की सरकार को सत्ता को उखाड़ फेंकना चाहता है लेकिन रूस और ईरान के समर्थन से असद मजबूत बने हुए हैं।  
रूस ने तुर्की से संबंध मजबूत करके मध्य-पूर्व के संघर्ष पर नियंत्रण और संतुलन का दांव खेला है, और यह सफल भी रहा है। अमेरिका ने तुर्की के खिलाफ रूस से खरीदे गए एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम को लेकर प्रतिबंध लगाए तो साफ हो गया कि पुतिन ने नाटो और यूरोप में भी सेंध लगाकर यूरोप के मुस्लिम देश तुर्की को अमेरिका के सामने खड़ा कर दिया है। नाटो के प्रभाव को लेकर रूस चौकन्ना रहा है जबकि तुर्की नाटो  का सदस्य देश है। एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम को दुनिया की उन्नत श्रेणी का सिस्टम माना जाता है। यह जमीन से हवा में मार करता है, और किसी भी हवाई हमले का पता लगाकर उसे हवा में ही नष्ट करने में सक्षम है। अमेरिका ने तुर्की के इस समझौते को नाटों देशों की सुरक्षा के लिए खतरनाक बताया है, लेकिन तुर्की ने अमेरिका की किसी भी मांग को मानने से इंकार कर दिया है।
बहरहाल, रूस ईरान और तुर्की के साथ पाकिस्तान से भी मजबूत संबंध बनाने की ओर अग्रसर है। ये सभी मुस्लिम देश अमेरिका के पारंपरिक और सामरिक मित्र सऊदी अरब की इस्लामिक देशों के नेतृत्व की क्षमता को चुनौती दे रहे हैं। जाहिर है कि अमेरिका और रूस की आपसी प्रतिद्वंद्विता का असर इस्लामिक देशों को भी प्रभावित करेगा, इस रणनीति में पुतिन ज्यादा ताकतवर बनकर इस्लामिक देशों पर अपना प्रभुत्व कायम करते दिखाई पड़ रहे हैं।

डा. ब्रह्मदीप अलूने


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