मीडिया : बॉलीवुड, मीडिया और नशा
यही चैनल और एंकर हैं जो कल तक बॉलीवुड के हीरो-हीराइनों के आगे बिछ-बिछ जात थे और उनकी दो-दो कौड़ी की फिल्मों के प्रोमो कराते थे व फिल्म-समीक्षकों से उनको ‘दस’ में से ‘नौ’ नंबर दिलाते थे।
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एक वक्त ऐसा भी रहा जब कुछ खबर चैनलों ने चैनल ने तत्कालीन हीरो-हीराइनों से अपनी प्राइमटाइम की ‘न्यूज’ तक पढवाई। क्या ये फ्री में होता था? और यही वे चैनल थे जिनमें से एक ने, एक धंधई हीरो अचानक ‘समाज सुधारक’ एंकर बनकर दर्शकों को कई सोशल मुद्दों पर ‘एनजीओनुमा’ शिक्षा देकर उससे भी कमा लेता था।
‘कोरोनाकाल’ से पहले तक टीवी के खबर चैनल बॉलीवुड वालों के साथ हर शुक्र, शनि और रविवार को गलबहियां डांस करते दिखते थे। हीरो-हीराइनों की शादी हो या कोई हीरोइन मां बनने वाली हो, ये उनके जीवन के एक-एक पल को देवत्व प्रदान करते थे। एक बार तो इन चैनलों ने एक हीरोइन के ‘गर्भावस्था गाउन’ को ही बड़ी खबर बना डाला था। फिर उसी का पहला ‘बर्थडे’ जम के प्रसारित किया। जिस देश में करोड़ों बच्चे कुपोषण में जीते-मरते हों, वहां एक हीराइन के बच्चे की ऐसी नुमायश इन चैनलों की ‘क्लास’ को भी बताती है। क्या यह सब ‘फ्री’ में होता था? जी नहीं! शो बिजनेस में कुछ भी फ्री नहीं होता, लेकिन ये दिन चैनलों ओर बॉलीवुड के ‘रॉक डांस’ के दिन थे। एक दूसरे के ‘ग्लैमर’ का लेन-देन और कमाई की कमाई। दोनों खुश। तब मीडिया और बॉलीवुड का ‘संयुक्त मोरचा’ था। फिर ऐसा अचानक क्या हुआ कि कई खबर चैनल बॉलीवुड के पीछे पड़ते नजर आने लगे। चैनलों ने सुशांत की मौत को शुरू से ही बॉलीवुड के नामी माफिया का नाम ले लेकर जोड़ा।
एक हीरोइन ने बॉलीवुड में सक्रिय माफिया के नाम लिये और उनको सुशांत की मौत का जिम्मेदार ठहराया। लगभग तभी से अधिकांश खबर चैनल बॉलीवुड के माफिया और उसके ड्रग माफिया को निशाना बनाने लगे। और अब, तब ‘खतरनाक नशा कराने वालों’ को सुशांत की मौत का जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, फिर कुछ चैनलों द्वारा इन ‘नशा कराने वालों’ को बॉलीवुड के ड्रग मफिया से, दुबई के दाऊद से और पाकिस्तान व आईएसआई से कनेक्ट करके देशविरोधी साजिश का जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, उससे कहानी सीधे ‘डाउन विद बॉलीवुड’ की दिशा में मोड़ दी गई है। इतना ही नहीं, अब तो कुछ चैनल यह भी कहने लगे हैं कि सुशांत की मौत का मामला नशे से जुड़े न जुड़े, लेकिन बॉलीवुड का ‘नशा’ उतर जाना है।
सब जानते हैं कि बॉलीवुड में नशा उसकी ‘अकूत ब्लैकमनी’ की कल्चर से जुड़ा है। ग्लैमर की दुनिया ‘महंगे नशे’ के बिना नहीं चलती। जब बिना बहुत कुछ किए हजारों करोड़ कमाए जाएंगे तो उसी तरह खर्च भी तो किए जाएंगे। बड़े लोग क्या ठर्रा लेंगे? उनको चाहिए र्वल्ड लेवल का नशा। और इसे संभव करता है, यह ‘अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफिया’। यही बॉलीवुड की फिल्मों के ग्लोबल अधिकार रखता है और डॉलर कमाके देता है। एक वक्त में तो यह माफिया बॉलीवुड इंडस्ट्री को सीधे चलाता था। वही फिल्म की कहानी से लेकर हीरो हीरोइन व म्यूजिक व आइटम-सांग तक तय किया करता था। जो नहीं मानता था, उसे रास्ते से हटा दिया जाता था। ‘सत्या’ व ‘डी कंपनी’ जैसी फिल्में इस कनेक्शन को अच्छी तरह से बताती हैं। तब के कई ‘गॉड फादर’ अपने ‘रीयल लाइफ’ के रोल को फिल्म में यथावत डलवाते थे।
ये जो दो सौ करोड़, तीन सौ करोड़ रुपयों की कमाइयां करने वाली फिल्में रही हैं, उनके तार भी माफिया से जुड़े बताए जाते रहे हैं, लेकिन अब अचानक ऐसा क्या हुआ कि ‘मीडिया और बॉलीवुड’ का अश्लील ‘लव अफेअर’ बॉलीवुड विरोध में बदल गया? और उसकी ‘सफाई’ के लिए ‘हल्ला’ मचाया जा रहा है। ध्यान से देखें तो इस हल्ले के पीछे फिल्मी दुनिया में हो रहे कुछ नये ‘परिवर्तन’ हैं : डिजिटल क्रांति ने फिल्मों के निर्माण-प्रदर्शन की प्रक्रिया एकदम बदल दी है। ‘ओवर द टॉप स्ट्रीमिंग’ वाली सीरियल फिल्मों को न बड़े बजट की जरूरत है, न किसी सिनेमाघर या मल्टीप्लेक्स की। ऐसी सीरियल फिल्में सीधे डीटीएच, ‘यूट्यूब’ और स्मार्टफोन पर बहुत कम पैसों में दिन-रात उपलब्ध हैं। मीडिया जानता है कि बॉलीवुड नहीं ‘ओटीटी क्रांति’ के दिन हैं। यही नहीं, इस नैतिक हल्ले के जरिए मीडिया अपने उस पिछवाड़े को छिपाना चाहता है, जहां बहुत से मीडिया वाले, मौके ब मौके, ‘गांजे’ के धुएं के छल्ले उड़ाते रहते हैं। यकीन न हो तो आप इनके स्टूडियोज के पिछवाड़े की सीढ़ियों पर ठहरे हुए धुओं का नारको टेस्ट ही करवा लें! एक मानी में यह लड़ाई छोटे नशेबाज की बड़े नशेबाज से ईष्र्या की लड़ाई भी है।
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