वैश्विकी : मुलाकात ने जगाई उम्मीद

Last Updated 06 Sep 2020 01:31:06 AM IST

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री वेई फेंगहीं के बीच मास्कों में हुई लंबी बातचीत से पूर्वी लद्दाख में सैन्य संघर्ष और तनाव का माहौल खत्म करने की दिशा में एक आशा जगी है।


वैश्विकी : मुलाकात ने जगाई उम्मीद

दोनों रक्षा मंत्रियों ने अपने-अपने प्रतिनिधिमंडलों के साथ करीब ढाई घंटे बातचीत की। इतने लंबे समय तक चली बैठक से जाहिर है कि दोनों नेताओं ने पूर्वी लद्दाख और भारत-चीन सीमा से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की होगी।
बैठक के बाद जारी आधिकारिक विज्ञप्ति में दोनों देशों की ओर से मोटे तौर पर अपने पुराने पक्ष को दोहराया गया। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने पूर्वी लद्दाख में यथास्थिति बनाए रखने और चीनी सैनिकों को तेजी से हटाने पर जोर दिया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सीमा पर स्थिति को सामान्य रखने के लिए भारतीय सैनिकों का रवैया जिम्मेदारी भरा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि एलएसी के नजदीक बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों की तैनाती, उनका आक्रामक रवैया और इस क्षेत्र की यथास्थिति को एकतरफा बदलने की कोशिश  दोनों देशों के बीच बनी सहमति का उल्लंघन है। राजनाथ सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि मौजूदा स्थिति को समझदारी से संभाला जाना चाहिए और किसी भी पक्ष को आगे ऐसी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए, जो स्थिति को जटिल बनाए। दूसरी ओर चीनी रक्षा मंत्री ने कहा कि दोनों पक्षों को प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग के बीच बनी सहमति को लागू करना चाहिए और किसी भी आपसी मतभेदों को संवाद के जरिये सुलझाना चाहिए।

पूर्वी लद्दाख में सैन्य संघर्ष और तनाव पैदा करने का पूरा दोष चीनी सेना पर है। पहले उसकी ओर से गलवान घाटी में बड़ी संख्या में सैनिकों का जमाव किया गया और फिर आक्रामक तेवर अपनाते हुए सीमा की यथास्थिति में बदलाव करने की कोशिश की गई। भूटान में डोकलाम की तरह पूर्वी लद्दाख में चीन की कार्रवाइयों का भारत की ओर से करारा जवाब दिया गया। चीनी सेना और नेताओं को यह अनुमान नहीं था कि भारत की ओर से इस तरह की दृढ़ता प्रदर्शित की जाएगी। सीमा पर ही नहीं बल्कि द्विपक्षीय संबंधों के अन्य क्षेत्रों में भी मोदी सरकार ने चीनी कंपनियों पर दबाव बनाया। धीरे-धीरे चीन को यह स्पष्ट होने लगा कि सीमा पर उसका दु:स्साहस उसके लिए कितना भारी पड़ सकता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की रूस यात्रा से पहले भारत ने शंघाई सहयोग संगठन के सैन्य अभ्यास में अपनी सैनिक टुकड़ी भेजने से इनकार कर दिया था। संदेश साफ था कि भारत के जवान चीन के उन सैनिक कर्मियों के साथ कंधे-से-कंधा नहीं मिला सकते जिन्होंने गलवान घाटी में हमारा खून बहाया है। मास्को में चीन के रक्षा मंत्रालय की ओर से भारतीय रक्षा मंत्री से मिलने का समय मांगा गया, लगता है कि चीनी पक्ष पूरे मामले को उच्चस्तरीय वार्तालाप के जरिये सुलझाने के लिए आतुर था। दक्षिण चीन सागर, हांगकांग और ताइवान के कारण पहले से दबाव महसूस कर रहा चीन भारत की सीमा पर मनमानी करने की स्थिति में नहीं रहा। चीन के रुख में बदलाव का यही कारण है।
भारत और चीन के रक्षा मंत्रियों ने सीमा पर हालात को काबू में रखने की जो पहल की है, वह विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच 10 सितम्बर को होने वाली बातचीत से और पुख्ता हो सकती है। जयशंकर ने हाल में भारत चीन संबंधों का जो दूरगामी खाता पेश किया है, वह चीन के नेताओं के लिए कूटनीति का एक सबक साबित हो सकता है। जयशंकर ने कहा था कि भारत और चीन दुनिया की दो ऐसी प्राचीन सभ्यताएं हैं, जिन्होंने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। हजारों वर्षो के कालखंड में दोनों देशों के बीच संबंध अधिकतर समय अच्छे रहे हैं, कभी दोनों देश एक-दूसरे के प्रति उदासीन रहे तथा कई बार टकराव की स्थिति पैदा हुई। दुर्भाग्य से हाल के दिनों में द्विपक्षीय संबंध टकराव की स्थिति से गुजर रहे हैं।
जयशंकर ने चीन के नेताओं को याद दिलाया कि दुनिया में केवल दो ही (भारत और चीन) प्राचीन सभ्यता वाले देश हैं जो चौथी औद्योगिक क्रांति में प्रदेश कर रहे हैं। एक अरब से अधिक आबादी वाले उन दोनों देशों के लिए यह जरूरी है कि वे आपसी समझदारी पैदा करें और एक दूसरे के हितों को स्वीकार करें। विदेश मंत्री की यह सारगर्भित उद्गार भारत-चीन संबंधों को पटरी पर ला सकते हैं। दुनिया की इन दो महाशक्तियों के बीच सकारात्मक संबंध एशिया ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए आवश्यक है।

डॉ. दिलीप चौबे


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