वैश्विकी : खराद पर देश की साख
नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को लेकर देश में चल रहे विरोध प्रदर्शन भारतीय विदेश नीति के लिए एक नई चुनौती के रूप में उभर कर सामने आए हैं।
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पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पश्चिमी देशों और मुस्लिम देशों में आलोचना का जो दौर शुरू हुआ, वह थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले कुछ दिनों से भारत में जारी विरोध प्रदर्शनों के बाद दूसरे देशों में हुई प्रतिक्रिया ने गंभीर रूप ले लिया है। इससे केवल दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत की छवि खराब ही नहीं हुई है, बल्कि देश का आर्थिक माहौल भी काफी प्रभावित हो रहा है।
हांगकांग में चीन विरोधी प्रदर्शनों के कारण यह संभावना बनी थी कि निवेशक हांगकांग को छोड़कर भारत समेत अन्य देशों की ओर रुख करेंगे। लेकिन भारत के हाल के घटनाक्रमों के कारण निवेशक निवेश करने से आशंकित हो सकते हैं। घरेलू मोर्चे पर यदि अव्यवस्था पैदा होती है तो अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध का अप्रत्यक्ष लाभ भारत नहीं उठा पाएगा। अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती के बाद यदि विदेशी निवेशक भारत में आने से कतराते हैं, तो यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए बुरी खबर होगी। भारत की विदेश नीति के लिए यह एक चुनौती है कि वह दुनिया में सरकार के फैसलों की सही तस्वीर पेश करे और निवेशकों को आश्वस्त करे कि हाल की घटनाएं सीमित क्षेत्रों में हुई हैं, और उनका असर कुछ ही दिनों के लिए है। दूरगामी दृष्टि से भारत में निवेश करना उनके लिए फायदे का सौदा है।
जहां तक भारत सरकार और विदेशी सरकारों के बीच संबंधों का सवाल है तो मोदी सरकार के पिछले फैसलों से उन पर कोई असर नहीं पड़ा है। अमेरिकी संसद और अमेरिकी मीडिया में मोदी सरकार की तीखी आलोचना के दौर में भी दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों को और मजबूत बनाने के प्रयास जारी हैं। हाल में टू प्लस टू वार्ता के संदर्भ में भारत और अमेरिका के रक्षा और विदेश मंत्रियों की संयुक्त बैठक संपन्न होना इसका एक उदाहरण है। सरकार के स्तर पर संबंधों के प्राय: सामान्य रहने के बावजूद इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि मीडिया और राजनीतिक स्तर पर पश्चिमी देशों में मोदी सरकार के खिलाफ अभियान चल रहा है। कश्मीर को लेकर अमेरिकी संसद में दो बार सुनवाई हुई है तथा मोदी सरकार के खिलाफ अमेरिकी कांग्रेस ने प्रस्ताव लाए जाने की कोशिश की जा रही है। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर अपने लंबे राजनयिक अनुभव और संपकरे के बावजूद सांसदों, मीडिया और बुद्धिजीवी तबकों को हाल के फैसलों के संबंध में भारत का पक्ष समझाने में सफल सिद्ध नहीं हुए हैं।
हाल में अमेरिकी कांग्रेस के निचले सदन प्रतिनिधि सभा की सदस्य प्रमिला जयपाल ने आरोप लगाया कि विदेश मंत्री जयशंकर ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया। भारतीय मूल के अन्य सदस्यों रोहित खन्ना और कमला हैरिसन ने भी मोदी सरकार के फैसलों की आलोचना की है। अमेरिकी संसद में पहली हिंदू सांसद तुलसी गबार्ड ने संयत रवैया अपनाया है। अमेरिकी कांग्रेस की एक स्वतंत्र शोध इकाई कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएएस) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत की नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून को राष्ट्रीय नागरिक पंजी के साथ लाने से भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों का दरजा प्रभावित हो सकता है। सीआरएएस का दावा है कि नागरिकता संशोधन कानून के मुख्य प्रावधान जैसे कि तीन देशों के मुस्लिमों को छोड़कर छह धर्मो के प्रवासियों को नागरिकता की अनुमति देना भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन कर सकता है।
जहां तक मुस्लिम देशों का सवाल है तो उनके संगठनों ने कश्मीर और मोदी सरकार के फैसलों का विरोध करने की औपचारिकता निभाई है। लेकिन प्रमुख इस्लामिक देशों सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने खुलकर कुछ नहीं कहा है। मलयेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने नागरिकता संशोधन कानून पर सवाल उठाते हुए कहा है कि जब भारत में सब लोग सत्तर साल से साथ रहते आए हैं, तो इस कानून की आवश्यकता ही क्या थी? भारतीय विदेश मंत्रालय ने उनके आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि उन्होंने भारत के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी की है।
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