सहकारी समितियां संस्कृति और जीवनशैली का आधार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) का यह कहना कि भारत के लिए सहकारी समितियां संस्कृति और जीवनशैली का आधार हैं, बिल्कुल न्यायसंगत है।
सहकारी समितियां संस्कृति और जीवनशैली का आधार |
वैश्विक सहकारिता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने सहकारिता आंदोलन को सकरुलर इकोनॉमी से जोड़ने की जरूरत पर जोर दिया। मोदी ने भारत के भविष्य के विकास में सहकारी समितियों की बड़ी भूमिका बताते हुए बीते दस सालों में सहकारी समितियों से संबंधित परिवेश को बदलने की चर्चा भी की। सहकारी बैंकों में इस वक्त तकरीबन बारह लाख करोड़ रुपए जमा हैं।
सहकारिता आंदोलन को आगे बढ़ाने में महिलाओं की बड़ी भूमिका की सराहना करते हुए मोदी ने बताया कि इन समितियों में साठ फीसद महिलाएं हैं। सहकारी समितियों का मतलब है जनता का वह संगठन जो सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक लाभ के लिए स्वेच्छा से मिलकर काम करता है। इसे साझा समृद्धि का बेहतरीन मॉडल माना जाता है। ये अपने सदस्यों व इर्द-गिर्द के समुदाय को लाभ प्रदान करती हैं। कुछ जगह सरकार भी सहकारी समितियों में सदस्य है।
राष्ट्रीय सहकारी व्यापार संघ के अनुसार दुनिया भर में तकरीबन तीन मिलियन सहकारी समितियां हैं। जिनकी विश्व की 12 फीसद आबादी सदस्य है। सहकारी समितियों के सदस्य त्वरित ऋण द्वारा स्वरोजगार चालू करने को स्वतंत्र होते हैं। हालांकि इन समितियों पर प्रबंधन अकुशलता के आरोप लगते रहते हैं। खासकर अपने यहां सहकारी समितियां पारस्परिक मतभेदों, आपसी झगड़ों और असहयोग की भेंट चढ़ जाती हैं।
उनमें होने वाले घपलों/ घोटालों से मुंह नहीं चुराया जा सकता। सहकारी बैंकों के खातों से लेकर उनमें हुई भर्तियों की धांधली पर सरकार खुद संदेह के घेरे में रही है। बात सिर्फ मंत्रालय बनाने या सहकारी समितियों से महिलाओं को जोड़ने भर तक ही सीमित नहीं है। प्रधानमंत्री की अपेक्षाओं पर तभी खरा उतरा जा सकता है, जब इन रुकावटों को सिरे से साफ किया जा सके।
हम तेजी से बढ़ती इकोनॉमी हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। फिर भी हकीकत तो यही है कि देश की कुल संपत्ति का आधे से अधिक हिस्सा अभी भी एक प्रतिशत अति समृद्धों की मुट्ठी में है। जिन्हें किसी सहकारिता के प्रति कोई सरोकार नहीं। धन प्रबंधन के महत्व तथा सहकारिता को जितनी गहराई से समझा जाएगा, आम जनता तक उसका लाभ खुद-ब-खुद पहुंचना शुरू हो जाएगा।
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