संभल में उकसावे की राजनीति
पश्चिमी उप्र के संभल जिले में शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा और तीन लोगों की मौत वाकई चिंता की बात है। पुलिस के आंसू गैस के गोले छोड़ने व लाठी चार्ज के बावजूद उग्र भीड़ ने कई गाड़ियों को फूंक डाला तथा पुलिस बल पर पथराव किया।
संभल में उकसावे की राजनीति |
इसमें पुलिस वालों समेत तकरीबन बीस लोग घायल भी हो गए। ज्ञात है कि स्थानीय अदालत के आदेश के बाद जामा मस्जिद के सर्वेक्षण का काम शुरू किया गया था। स्थानीय मंदिर के महंत का दावा है कि जिस जगह जामा मस्जिद है, वहां पहले हरिहर मंदिर था। उसी याचिका पर अदालत ने वीडियो व फोटोग्राफी समेत रिपोर्ट जमा कराने का आदेश दिया था। पथराव के आरोप में दो महिलाओं समेत पंद्रह लोगों को हिरासत में लिया गया।
मामले में याचिकाकर्ता के वकील ही वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में भी वकील हैं। इससे समझा जा सकता है, इन लोगों की मंशा लंबी कानूनी लड़ाई की है। हालांकि इन लोगों का दावा है कि सर्वे का काम पूरा हो चुका है।
दूसरे, सर्वे के दौरान मस्जिद कमेटी के सदस्यों समेत उनके वकील भी मौजूद थे। घटना से पहली रात में सारा सर्वे शांतिपूर्ण निपट चुका था। स्थानीय अधिकारियों को अंदेशा है, भीड़ किसी उकसावे के बाद जमा हुई। यह मस्जिद कब बनी, इसे लेकर भी विवाद है।
इतिहासकारों के अनुसार इसकी मरम्मत का काम बाबर द्वारा कराया गया था। क्योंकि इसकी निर्माण शैली मुगलकालीन नहीं है। संभावनाएं हैं कि यह तुगलक काल में बनी हो। फिलहाल यह संरक्षित इमारत पुरातत्व सर्वे की निगरानी में है पर यह विवादित स्थल है। कुछ समय पहले हिन्दू समुदाय यहां जबरन पूजा करने भी जा चुका है, परंतु पहली बार मामला अदालत में ले जाने को राजनीतिक विवाद बनाकर सुर्खियां समेटने का काम अधिक लगता है।
मस्जिद के सामने की तरफ हिन्दू तो पिछवाड़े मुसलमानों की बस्ती है। जहां हमेशा नियमित नमाज पढ़ी जाती रही है। मामूली विवाद बने रहने के बावजूद कभी इस तरह का कोई तनाव नहीं हुआ।
अयोध्या में विवादित स्थान पर मंदिर बनने के बाद से राजनीतिक लाभ के लोभ में इसे फॉमूले के तौर पर प्रयोग किए जाने की मंशा अधिक लग रही है। राज्य सरकार या विपक्ष को यह शोभा नहीं देता। शांति-व्यवस्था बनाए रखने और सभी नागरिकों को सुरक्षा देने का जिम्मा निभाने में उसे कोताही नहीं बरतनी चाहिए। इस तरह के धार्मिक विवादों से देश की छवि बिगड़ती है।
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