सख्ती और जोर-जबरदस्ती
शंभ और खनौरी बॉर्डर से किसानों को हटा कर पुलिस ने तेरह महीनों से अवरोधित अमृतसर-अंबाला-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग खुलवा दिया।
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सीमा पर लगे सीमेंट के ब्लॉक, लोहे की कीलें, कंटीले तारों से लगाए गए ये अवरोधक हटाने में कड़ी मशक्कत की गई। किसानों के टेंट भी हटा दिए गए। पंजाब में अभी भी एक हजार से ज्यादा किसान हिरासत में हैं। सौ से ज्यादा प्रदर्शनकारी किसानों पर केस दर्ज कर उन्हें पटियाला जेल भेजा गया। सरकार की कार्रवाई से नाराज किसानों का पुलिस से टकराव भी हुआ। हालांकि पंजाब सरकार ने किसान नेताओं को बैठक के लिए बुलाया है।
ता रहे हैं, बॉर्डर बंद होने का सीधा असर कारोबार पर पड़ रहा था। तेरह महीनों में कारोबारियों को दस हजार करोड़ रुपये का नुकसान होने का अंदाजा है। पिछले काफी समय से व्यापारी और उद्योगपति सरकार पर बॉर्डर खोलने का दबाव बना रहे थे। लुधियाना पश्चिम सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर भी राज्य सरकार पर दबाव था। यहां तमाम औद्योगिक इकाइयों में ताला पड़ा है और धंधा पूरी तरह ठप है।
स्थानीय लोगों की आवाजाही पर तो असर है ही, बॉर्डर अवरोधकों के कारण लोगों को लंबी दूरी घूम कर संकरे रास्तों का इस्तेमाल करना पड़ रहा था जिससे आसपास के इलाकों का यातायात प्रभावित हो रहा था। ट्रांसपोर्टरों ने सीमा खुलने पर राहत की सांस ली है क्योंकि किराया बढ़ाने के बावजूद लागत निकालने में उन्हें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। नाराज किसान इस कार्रवाई को केंद्र की मिलीभगत से हुई कार्रवाई बताते हुए इसे विश्वासघात कह रहे हैं।
राज्य में बंदी के चलते सरकार को हर बार नब्बे करोड़ से अधिक के राजस्व से भी हाथ धोना पड़ा। बावजूद इसके तकरीबन चार सौ दिनों तक सीमा पर बसे प्रदर्शनकारी किसानों ने अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को लेकर ढाई किमी. तक अस्थाई व्यवस्था कर ली थी जिसमें रिहाइश से लेकर दफ्तर, शौचालय, स्टोर, रसोई और लंगर स्थल सब चल रहे थे।
बहरहाल, अभी उनकी कोई रणनीति सामने नहीं आई है परंतु उनका रोष और हताशा समझी जा सकती है। वे कह रहे हैं कि उनका आंदोलन समाप्त नहीं हुआ है। सरकार को ऐसा कड़ा कदम उठाने से पहले उन्हें चेतावनी जरूर देनी चाहिए थी। विरोध या प्रदर्शन करना जनता का अधिकार है। सरकार का दायित्व है, बगैर जोर-जबरदस्ती के किसानों की बात सुने और कोई दरम्याना रास्ता निकाले।
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