शोषणमुक्त हो भारत

Last Updated 22 Mar 2025 12:36:19 PM IST

केंद्र की वर्तमान सरकार का नक्सलमुक्त भारत अभियान अपनी गति पर है। छत्तीसगढ़ के बीजापुर और कांकेर में सुरक्षा बलों के दो अलग-अलग अभियानों में 30 नक्सली मारे गए।


गृह मंत्रालय के अनुसार 2025 के इन तीन महीनों में 90 नक्सली मारे जा चुके हैं, 204 को गिरफ्तार किया गया है और 164 ने आत्मसमर्पण किया है। 2024 में 290 नक्सलियों को मार गिराया गया था। 2004 से 2014 के दौरान नक्सली हिंसा की कुल 16,463 घटनाएं हुई थीं। अब मोदी सरकारा के कार्यकाल में 2014-24 के बीच नक्सली हिंसा की संख्या 53 फीसद घटकर 7,444 रह गई है।

इन आंकड़ों को देखकर लगता है कि गृह मंत्री अमित शाह 31 मार्च, 2026 तक देश से नक्सलवाद को खत्म करने का अपना संकल्प पूरा कर लेंगे। नक्सलवादी आंदोलन की भीतरी स्थिति क्या है, यह मालूम करने के स्रेत सूख गए हैं। अब जिस तरह का माहौल बन गया है, या सरकार ने बना दिया है, उसमें अब कोई भी न तो नक्सलवादियों की जमीनी हकीकत को सामने लाने की स्थिति में है और न उनके विचारधारात्मक पक्ष की वकालत करने की स्थिति में है।

सरकार प्राय: जिस अर्बन नक्सलवाद शब्द का प्रयोग करती है और जिन-जिन बौद्धिक या वैचारिक समूहों पर शहरी नक्सलवादी होने का आरोप लगाती है, वे भी वस्तुत: सरकार विरोधी हैं, नक्सलवाद समर्थक कम। यह इस दौर का ठोस यथार्थ है कि नक्सलवाद की जमीन अब खत्म हो गई है। मुख्य धारा का कोई भी राजनीतिक दल या क्षेत्रीय दल दलितों-आदिवासियों के शोषण को अपनी राजनीति के केंद्र में नहीं रखता।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के आदिवासी समूह न केवल बढ़-चढ़ कर चुनावी प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं, बल्कि नक्सलवाद को अपने लिए अवरोधक मानकर उसके प्रति तिरस्कार का रुख अपना रहे हैं। इन परिस्थितियों में नक्सलवादियों के लिए शायद यही श्रेष्ठ विकल्प है कि वे अपनी रणनीति बदलें और हथियार छोड़कर देश भर में व्याप्त शोषण और अन्याय के विरुद्ध वैचारिक विमर्श की रणनीति अपनाएं। इससे हो सकता है कि मौजूदा राजनीति को शोषण को समझने और उससे निपटने के लिए एक अधिक प्रभावी दृष्टि उपलब्ध हो।



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