संसद में फिर हंगामे के आसार
शायद ही किसी को यह उम्मीद रही होगी कि इस बार की संसद सहज, सामान्य और सुव्यवस्थित तरीके से चलेगी। लेकिन यह अनुमान नहीं था कि पहले ही दिन दूध में खटाई पड़ जाएगी और संसद के भावी कार्यकाल का विद्रूप चेहरा शुरुआत में ही दिखाई देने लगेगा।
संसद में फिर हंगामे के आसार |
प्रधानमंत्री जब अपने उद्बोधन में यह अपेक्षा कर रहे थे कि विपक्षी दल सकारात्मक रुख अपनाएं, सार्थक बहस करें, जिम्मेदार रहें बजाय इसके कि वे अनावश्यक नाटक, शोरगुल या हंगामा करें, तो उन्हें पूरा भरोसा रहा होगा कि विपक्ष वही करेगा जो उसने पिछले सत्र में किया था। उनका सहयोग का आह्वान स्वयं उन्हें ही अपूरणीय लग रहा होगा।
विपक्ष ने पहले ही दिन प्रदर्शित कर दिया कि वह संसद को शांति से नहीं चलने देगा, किसी भी तरह का सहयोग का तो प्रश्न ही उठता। पहले प्रोटेम स्पीकर के नाम को लेकर विवाद खड़ा किया गया और उसके बाद लोकसभाध्यक्ष के चुनाव को लेकर भी चुनौती खड़ी कर दी गई। आजादी के बाद यह दूसरा मौका है जब लोकसभाध्यक्ष का निर्वाचन चुनाव के जरिए होने जा रहा है।
एनडीए के उम्मीदवार ओम बिरला के विरुद्ध विपक्ष के उम्मीदवार कांग्रेस के आठ बार के सांसद के. सुरेश होंगे। यह दीगर बात है कि ममता बनर्जी की पार्टी ने बिना उनसे पूछे के. सुरेश की उम्मीदवारी पर अपना ऐतराज दर्ज करा दिया है।
प्रधानमंत्री ने भी शायद भावी स्थितियों को भांप लिया है, इसलिए उन्होंने आपातकाल के पचास वर्ष होने का स्मरण करके विपक्ष विशेषकर कांग्रेस पर प्रहार करने का मौका हाथ से जाने नहीं दिया।
उधर, विपक्ष ने भी पेपर लीक घोटाले, रेल दुर्घटना, गर्मी के कारण हुई लोगों की मौतें आदि मुद्दों के साथ-साथ बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने का मन बना रखा है। इससे साफ संकेत मिलता है कि लोक सभा शांतिपूर्ण ढंग से नहीं चलेगी। विपक्ष जितना मजबूत हुआ है, सरकार पर विपक्ष का प्रहार भी उतना ही मजबूत होगा।
नहीं लगता कि प्रधानमंत्री मोदी सहित सत्ता पक्ष का कोई भी नेता अपनी बात बिना हंगामा झेले शांतिपूर्ण ढंग से कह पाएगा। यह वह स्थिति है जो देश के सामान्य नागरिक को चिंतित करती है। लेकिन इसका कोई समाधान उसके पास नहीं है।
आम आदमी चाहता है कि संसद में हंगामे की बजाय विचारपूर्ण बहस सुने। काश, आम आदमी की यह मंशा विपक्ष पहुंच पाती और संसद के व्यर्थ के हंगामों से थोड़ी सी राहत की सांसें ले पाती।
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