पैदल पथ का हक

Last Updated 27 Jun 2024 01:23:58 PM IST

साफ फुटपाथ और चलने के लिए सुरक्षित स्थान हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। इसे मुहैय्या कराना राज्य प्राधिकरण का दायित्व है।


पैदल पथ का हक

बंबई उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने यह  कहा। फुटपाथ और सड़कों को प्रधानमंत्री और अति विशिष्ट व्यक्तियों के लिए एक दिन में खाली कराया जा सकता है, तो सभी लोगों के लिए रोज ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि नागरिक कर देते हैं, उन्हें साफ फुटपाथ और चलने की सुरक्षित जगह की जरूरत है। राज्य सरकार के सख्त कार्रवाई करने की आवश्यकता और बरसों से अधिकारियों द्वारा इस मुद्दे  पर काम करने की बातें बनाने पर भी अदालत ने नाराजगी जताई।

इस दिशा में कठोर कदम उठाने के साथ ही संबंधित अधिकारियों में इच्छाशक्ति की कमी की बात भी की। यह हालत केवल महानगरों की ही नहीं है। अव्वल तो फुटपाथ बमुश्किल नजर आते हैं। उन पर जबरदस्त कब्जा है। रेहड़ी-खोमचे वाले तो फुटपाथों को घेर ही लेते हैं। बड़े दूकानदार भी अपने माल के प्रदर्शन और फिजूल/रद्दी सामान रखने के लिए उसका अतिरिक्त स्थान की तरह धड़ल्ले से उपयोग करते हैं।

कई स्थानों पर फुटपाथों को पार्किग स्थल बना कर प्राधीकरण खुद वसूली के ठेके देता नजर आता है। अनधिकृत फेरी वालों और रेहड़ी वालों के लिए किसी भी सरकार और प्राधिकरण द्वारा कोई विशेष स्थान तय नहीं किया जाता।

यह सच है कि अपने यहां घूम-घूम कर तथा अस्थायी तौर पर बैठकर सामान बेचने वाले बहुसंख्य लोग हैं। यह उनकी रोजी-रोटी है। इन्हें उजाड़ा जाना कतई उचित नहीं कहा जा सकता। मगर आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों को मदद किया जाना भी जरूरी है।

भारतीय संविधान के अनुसार, 1950 के अनुच्छद 19(1)(छ) में कमजोर वर्ग को फुटपाथ पर काम करने से रोका नहीं जा सकता। जैसा कि अदालत ने कहा, प्रधानमंत्री और अन्य विशिष्टों के लिए मिनटों में खाली कराए  जाने वाले फुटपाथों को आम नागरिक के लिए मुहैया कराने का कोई प्रयास नहीं होता।

छोटे बच्चों, बुजुगरे तथा पैदल चलने वाले अन्य लोगों की सुविधा की अनदेखी पूरे देश में होती है जिसके लिए बेशक, राज्य सरकारें दोषी कही जा सकती हैं। यही कारण है कि सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वालों में पैदल यात्रियों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है।



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