बच्ची से रेप और हत्या का मामला : हड़बड़ी का फैसला

Last Updated 23 Oct 2023 01:33:33 PM IST

तीन माह की बच्ची से बलात्कार और हत्या के आरोप में मृत्युदंड की सजा सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर खारिज कर दी कि मामला जल्दबाजी में सुना गया। अदालत ने दोषी को पर्याप्त अवसर न दिए जाने की बात करते हुए मामले को नये सिरे से सुनने का आदेश दिया।


हड़बड़ी का फैसला

मामला 2018 का है। आरोपपत्र दायर करने के महज 15 दिन में सजा सुना दी गई। निचली अदालत ने नवीन को कई अपराधों का दोषी ठहराया था। शीर्ष अदालत की पीठ ने दोषसिद्धि का फैसला और सजा को खारिज कर दिया। नये सिरे से इसको सुनवाई के लिए पुन: निचली अदालत को भेजा। अदालत ने याचिकाकर्ता को बचाव के लिए पर्याप्त अवसर दिए जाने की बात की। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इंदौर की निचली अदालत द्वारा तीन महीने की मासूम का बलात्कार और हत्या सहित पॉक्सो एक्ट के तहत सजा सुनाई थी।

हालांकि नन्ही मासूम के साथ वीभत्स कांड किसी दया के काबिल तो नहीं कहा जा सकता मगर सुबूतों और बयानों के अभाव में या अन्य किन्हीं कारणों से असली अपराधी के बच निकलने की आशंकाओं को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। अपने समाज में बच्चियों के साथ यौन अपराधों में तेजी से इजाफा होता जा रहा है। मासूमों को बलात्कार और यौन शोषण से बचाने और इनके खिलाफ सख्त सजाओं के प्रावधान के लिए यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण यानी पॉक्सो कानून बनाया गया।

यूनिसेफ के अनुसार, भारत में 42% लड़कियां उन्नीस की उम्र पूरी करने से पूर्व यौन शोषण का शिकार हो जाती हैं। 70% से ज्यादा मामलों में अपराधी करीबी या परिवारी होते हैं। बच्चों को यौन अपराधों से बचा पाना पालकों के लिए मुश्किल ही नहीं होता, बल्कि वे मासूमों साथ हुए हादसे के बारे में विस्तार से जानने में भी अक्षम होते हैं। खासकर जब बच्चा दुधमुंहा या अबोध हो तो यह और भी खौफनाक हो जाता है। इतनी कम उम्र के बच्चे को हवस का शिकार बनाने वाले की मानसिकता को समझना आसान नहीं है।

इन्हें जेहनी बीमार कहना, यौन अपराधियों के पक्ष में बोलना है। त्वरित सजा होना अच्छा है, मगर बलात्कारी को पहचाना जाना भी जरूरी है। आनन-फानन में न्याय देने में पूर्वाग्रहों के चलते पीड़ित परिवार के बयानों या आरोपों पर आश्रित होना भी उचित नहीं कहा जा सकता। याचिकाकर्ता की गुहार सुनने के साथ ही बलात्कारी हत्यारे को तलाशने का जिम्मा पुलिस के सुपुर्द किया जाना भी जरूरी है। तभी मृत मासूम और उसके परिवार को न्याय मिल सकेगा।



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