कौन समझेगा महिला किसानों का दर्द

Last Updated 22 Oct 2023 01:20:36 PM IST

भोजन, जीवन से जुड़ी सबसे अहम आवश्यकता है। यह हमारी थाली तक कैसे पहुंचता है? इस पर भी विचार होना चाहिए।


कौन समझेगा महिला किसानों का दर्द

अन्न की उपज और विपणन तक की यात्रा पर बात होनी ही चाहिए पर आम तौर पर ऐसे विषय चर्चा में नहीं आ पाते।  विचार-विमर्श होता भी है तो महिला किसानों की भूमिका तक तो नहीं ही  पहुंचता। ऐसे में बीते दिनों अंतरराष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संगठन, जेंडर इम्पैक्ट प्लेटफॉर्म और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित वैश्विक सम्मेलन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने व्यावहारिक और  भावनात्मक, दोनों ही पक्षों पर भी महिला किसानों को लेकर बात की। हर मोर्चे पर आगे बढ़ती महिलाओं के आंकड़ों के बीच राष्ट्रपति मुर्मू ने न केवल खेती-किसानी से जुड़ी महिलाओं के योगदान पर प्रमुखता से बात की, बल्कि  उनके पीछे छूट जाने का विषय भी उठाया।

कृषि क्षेत्र में लैंगिक मुद्दों पर आयोजित इस वैश्विक सम्मेलन में उन्होंने कहा, ‘महिलाएं भोजन बोती हैं, उगाती हैं, फसल काटती हैं, संसाधित करती हैं, और उसका विपणन करती हैं। हर अनाज को खेत से थाली तक पहुंचाने में वे अपरिहार्य हैं। लेकिन अभी भी दुनिया भर में, भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंड और ज्ञान, स्वामित्व, संसाधनों और सामाजिक नेटवर्क की बाधाएं महिला किसानों के लिए अड़चन बनी हुई हैं।  उनके योगदान को मान्यता नहीं दी गई है। कृषि-खाद्य पण्रालियों की पूरी श्रृंखला में उनके अस्तित्व को नकार दिया गया है। इस कहानी को बदलने की जरूरत है, क्योंकि वे खेत से लेकर थाली तक भोजन पहुंचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।’

निस्संदेह अनगिनत बदलावों के बीच महिला किसानों की भूमिका, समस्याएं और असमानता की स्थितियां आज भी विमर्श का हिस्सा नहीं बन पाई हैं। यही वजह है कि भारत के हर हिस्से में खेत-खलिहान में नजर आती महिला किसान योजनाओं और नीतियों से नदारद हैं। हालांकि 2018 में शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ 3 लाख महिला किसानों को भी मिला है। पर महिला किसानों से जुड़े कई मुद्दों को गहन विमर्श की दरकार तो है ही। यों तो असमानता और उपेक्षा के दंश से महिलाओं का कोई वर्ग अछूता नहीं है पर महिला किसानों की भूमिका तो कमोबेश पूरी तरह हाशिए पर ही रही है। अधिकतर मोचरे पर उनकी स्थिति और परिस्थिति न्यायसंगत नहीं रही है।

राष्ट्रपति मुर्मू ने भी कहा है कि महिलाओं को कृषि ढांचे के ‘पिरामिड’ में सबसे नीचे रखा जाता है और उन्हें ऊपर आने तथा निर्णय लेने वालों की भूमिका निभाने के अवसर से वंचित किया जाता है। कृषि क्षेत्र में कुल श्रम  की 60 से 80  प्रतिशत तक हिस्सेदारी महिलाओं की होती है। बीज लगाने और निराई-गुड़ाई करने से लेकर कटाई तक खेती-किसानी से जुड़े 73 प्रतिशत काम महिला किसान ही करती हैं। इतना ही नहीं, खेती-किसानी के काम करने के साथ-साथ घर की दूसरी जिम्मेदारियों का निर्वहन भी उनके हिस्से होता है। बावजूद इसके उनकी समस्याओं को लेकर कोई चर्चा नहीं होती।

खेतों में अवैतनिक श्रमिक के रूप में काम करने या अपनी जमीन तक नहीं होने के चलते महिला किसानों के हालात तकलीफदेह हैं। ध्यातव्य है कि कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने, महिला किसानों को भी समान अधिकार दिलाने और आर्थिक लाभ के स्रोत खोलना इस स्कीम के मुख्य उद्देश्य हैं।

डॉ. मोनिका शर्मा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment