रेवड़ी संस्कृति पर सवाल

Last Updated 11 Oct 2023 01:44:23 PM IST

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने सोमवार को कहा कि राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों द्वारा मुफ्त में सुविधाएं देने वाली घोषणाओं में लोक-लुभावन वादों का ‘तड़का’ होता है, और चुनाव जीतने वालों के लिए इन रियायतों को लागू करना या फिर इस परिपाटी को रोकना मुश्किल होता है।


रेवड़ी संस्कृति पर सवाल

मुख्य चुनाव आयुक्त ने राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने के लिए बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है, और इस बाबत स्पष्टता और निर्णय मिलते ही चुनाव आयोग कार्रवाई करेगा।

अलबत्ता, आयोग ने हाल में सभी राजनीतिक दलों को एक परिपत्र जरूर जारी किया था, जिसमें उनसे पूछा गया था कि उनके चुनाव घोषणापत्र में किए गए वादों को वे कैसे और कब लागू करेंगे? हालांकि ऐसी घोषणाएं करना सरकारों के अधिकार क्षेत्र में है, लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त का यह पूछना महत्त्वपूर्ण है कि राजनीतिक दलों को सत्ता में आने के बाद पांच साल में अपने वादों कितने याद रहते हैं। लोकतंत्र में मतदाता का समर्थन हासिल करने के लिए राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी ऐड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं।

उन्हें लुभाने के लिए तमाम वादे और गारंटियां देते हैं, लेकिन चुनाव बाद सत्ता पर काबिज होने पर इन्हीं मतदाताओं से बेरुख हो जाते हैं। मतदाता ठगा-सा महसूस करता है, और अगले चुनाव का बेसब्री से इंतजार करने लगता है, जब वह ललचाने वाले वादों से उसका समर्थन हासिल करने वालों को सबक सिखाने की ठाने रहता है, मगर अगले चुनाव पर फिर उसे ललचाने की कवायद होती है, लोक-लुभावन वादों के नए पैकेज से उसे फिर से फंसा लिया जाता है।

ऐसा होता आया है, और आज सोशल मीडिया के दौर में मतदाताओं को झूठे वादों से भरमाकर फंसाने का खेल पहले से कहीं ज्यादा आसानी से खेला जा रहा है। झूठे वादों और चुनाव से ऐन पहले तमाम रियायतों की घोषणा को ‘मुफ्त की रेवड़ियां’ कहा गया तो इस शब्द पर ही काफी राजनीतिक दलों ने ऐतराज किया। जरूरी है कि मुफ्त रेवड़ियां बांटकर नागरिकों को ‘मुफ्तखोर’ बनने-बनाने से बचाया जाए।

मतदान नागरिक कर्त्तव्य है, लोगों की राय को झूठ-फरेब से प्रभावित करना अस्वीकार्य है। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि राजनीतिक दल ऐसा न करने पाएं। वे मतदाताओं से मुद्दों पर बेबाक बात करें, उनके वोट मांगें पर झूठ बोलकर उन्हें छले नहीं।



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