महापंचायत से हुंकार
हरियाणा के जींद में आयोजित महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत की हुंकार बहुत कुछ कहते हैं।
महापंचायत से हुंकार |
50 से ज्यादा खापों की इस महापंचायत में एक बार फिर कृषि कानूनों की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं का आह्वान किया गया। कंडेली गांव में हुई महापंचायत में पांच प्रस्ताव पारित किए गए। इनमें से चार पर किसान संगठन शुरुआत से ही आंदोलन कर रहे हैं। मगर एक प्रस्ताव 26 जनवरी के दिन हुई हिंसा के बाद सतह पर आया है।
पांचवे प्रस्ताव में यह कहा गया है कि 26 जनवरी को पकड़े गए किसानों को रिहा किया जाए और उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लिये जाएं। साथ ही दिल्ली पुलिस द्वारा जब्त ट्रैक्टरों को छोड़ा जाए। मगर जो बात कंडेली के मंच से कही गई, वह थी गद्दी वापसी के मामले पर आगे की लड़ाई लड़ने की। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत को खापों का समर्थन मिलना स्वाभाविक रूप से आंदोलन को ने केवल मजबूत कर गया बल्कि खापों की एकजुटता में भी मददगार बना है। हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश व राजस्थान के विभिन्न खापों का किसानों का समर्थन करने से निश्चित तौर पर सियासी उठापटक भी तेज होगी। अभी तक खापों की भूमिका बेहद सीमित या नहीं के बराबर थी।
अब जबकि विभिन्न खाप सीधे तौर पर आंदोलन के साथ आ गई हैं तो यह समझने में परेशानी नहीं होनी चाहिए कि इसके राजनीतिक प्रतिफल क्या होंगे? गरीबों की बात कहकर, सरकार की जिद और किसानों पर अत्याचार की भावनात्मक बातें कहकर टिकैत ने एक तरह से सरकार को सवालों के घेरे में ला दिया है। आंदोलन को खत्म करने के सरकार के सख्त प्रयासों पर भी टिकैत की कड़ी आपत्ति उनका मनोबल बताने के लिए काफी है। खासतौर पर गद्दी वापसी की बात कहकर एक तरह से टिकैत ने खुलेआम सरकार को चेतावनी दे डाली कि किसानों की मांगों को मानना ही सरकार के लिए एकमात्र विकल्प है।
आंदोलन अक्टूबर तक जारी रखने की बात कहकर टिकैत ने एक तरह से गेंद सरकार के पाले में डाल दी है। देखना है, सरकार अब इससे कैसे निपटती है? हालांकि सर्वोच्च अदालत द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट आना बाकी है, किंतु इसका शांतिपूर्ण हल कैसे निकलेगा; इसके लिए सरकार को खुद आगे आने की जरूरत है। 73 दिन से आंदोलनरत किसानों को भी समझदारी दिखानी होगी। यही वक्त की मांग है।
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