विरोध के स्वर

Last Updated 04 Feb 2021 01:49:31 AM IST

आर्थिक क्षेत्र में काम कर रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के दो प्रमुख संगठनों ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को बढ़ाने तथा सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण और विनिवेशीकरण जैसे फैसलों पर गहरी चिंता जताई है।


विरोध के स्वर

गौरतलब है कि इस बाबत बातें वित्त मंत्री द्वारा पेश केंद्रीय बजट में कही गई हैं। संघ के संगठनों-भारतीय मजदूर संघ और स्वदेशी जागरण मंच-सरकार से इस प्रस्ताव पर फिर से विचार करने की मांग की है। उनका मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र दो बैंकों और एक बीमा कंपनी के विनिवेशीकरण से आत्मनिर्भर भारत जैसी महत्त्वाकांक्षी योजना अपनी महत्ता खो बैठेगी। विनिवेश और एफडीआई को मिलाना भारतीय मजदूर संघ को अखरा है।

यदि सरकार इस दिशा में बढ़ती है, तो देश के बीमा और आर्थिक क्षेत्र पर विदेशी प्रभुत्व स्थापित होगा। इसलिए इन फैसलों को दूरगामी सोच वाले कदम नहीं कहा जा सकता। सरकार बीपीसीएल, एयर इंडिया, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, पवन हंस, बीईएमएल आदि का विनिवेश करना चाहती है। दरअसल, काफी पहले देश में लागू किए गए उदारीकरण के दिनों में कहे जाने वाले जुमले-सरकार का काम बिजनेस करना नहीं है-को मूर्ताकार करने की तरफ अग्रसर है। हालांकि बीच-बीच में इस तरफ पूर्ववर्ती सरकारें बढ़ी जरूर थीं, लेकिन या तो हिम्मत नहीं कर सकीं या कोई सक्षम खरीदार नहीं मिला। केंद्र सरकार के बजट को लेकर संघ से जुड़े संगठन ही चिंतित नहीं हैं, बल्कि अनेक श्रमिक संगठन भी खुश नहीं हैं।

उनने इसे किसान-मजदूर विरोधी करार देते हुए बजट के प्रावधानों के आलोक में सरकार के निकट भविष्य में होने वाले फैसलों का विरोध करने के लिए कमर कस ली है। तीन फरवरी को देश के दस मजदूर संगठनों के संयुक्त मंच के आह्वान पर देशव्यापी प्रदर्शन हुआ। श्रमिक संगठन न केवल बजटगत प्रावधानों का विरोध कर रहे हैं, बल्कि श्रम संहिता और बिजली बिल-2020 को खत्म करने, सभी के लिए भोजन की मांग आदि को लेकर भी वे उद्वेलित हैं। बेशक, मजदूर संगठन किसी न किसी राजनीतिक दल की विचारधारा से जुड़े होते हैं। सरकार निहित स्वार्थ का नाम देकर उनकी मांगों को खारिज कर सकती है। लेकिन संघ की विचारधारा के संगठनों का विरोध अनदेखा नहीं किया जा सकता।



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