वैश्विकी : अमेरिका में आतंकी हमलों के संकेत
अमेरिका में नया साल हादसों के साथ शुरू हुआ। इसे आतंकवाद, हिंसा और प्रतिरोध की घटनाओं के रूप में भी जब समझ जा सकता है।
वैश्विकी : अमेरिका में आतंकी हमलों के संकेत |
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के पहले अमेरिका में अजीबो-गरीब घटनाएं हो रही हैं। यह भी हो सकता है कि एक सुनियोजित योजना के तहत हो रहा हो। कुछ शक्तियां ट्रंप पर निश्चित नीतियां अपनाने के लिए दबाव बना रही हैं।
नव वर्ष की पहली घटना न्यू ऑरलियन्स में हुई जिसे निश्चित रूप से जेहादी आतंकवाद कहा जा सकता है। दूसरी घटना लास वेगास में ट्रंप होटल के मुख्य द्वार पर वाहन विस्फोट के जरिए अंजाम दी गई। न्यू ऑरलियन्स का हमलावर शमसुद्दीन जब्बार अमेरिकी सेवा में सूचना प्रौद्योगिकी सहायक के रूप में सेवाएं दे चुका था। सेना में उसका कार्यकाल करीब एक दशक का था। दूसरी ओर ट्रंप होटल की घटना का हमलावर मैथ्यू लिवेहसबर्गर वर्तमान में भी सेना में कार्य था। यह दोनों ही अपनी सेवाओं के लिए विभिन्न मेडल से सम्मानित किया जा चुके थे।
इन हमलों की गंभीरता के बावजूद अमेरिका में इनके कारणों की गंभीरता और ईमानदारी से समीक्षा नहीं की जा रही है। ये घटनाएं अमेरिका की युद्ध परस्त नीतियों और फिलिस्तीन में मानव त्रासदी को नजरअंदाज करने का नतीजा हो सकती हैं इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वास्तव में पिछले वर्ष फरवरी महीने में एक-एक कार्यरत वायु सैनिक बुसनेल ने वाशिंगटन में इस्रइल के दूतावास के सामने आत्मदाह का अपनी जान दे दी थी। आग की लपटों से झुलसते हुए वह फिलिस्तीन की आजादी के पक्ष में नारे लगा रहा था।
अपने इस अतिवादी कदम के पहले उसने कहा था कि वह फिलिस्तीन के नरसंहार में शामिल नहीं हो सकता। यह अमेरिकी सरकार के लिए खतरे की घंटी थी। लेकिन अमेरिका के राजनीतिक तंत्र और मीडिया ने बुसनेल के बलिदान के प्रति आंखें मूंद ली। यदि एक सैनिक फिलिस्तीन में हजारों बच्चों और महिलाओं की मौत से क्षुब्ध हो सकता है तो आम नागरिक के दिलो-दिमाग पर कितना असर हो रहा है, इस पर गौर नहीं किया गया। इतना ही नहीं अमेरिका के शहरों में पंद्रह महीनों से चल रहे युद्ध-विरोधी प्रदर्शनों को भी नजरअंदाज किया गया।
आंकड़ों के लिहाज से गाजा, लेबनान और सीरिया में जनहानि दुनिया में पहले की घटनाओं दे शायद कम रही है, लेकिन यह पहली बार है कि सोशल मीडिया की पूरी निगरानी में यह मानव त्रासदी सामने आ रही है। हर रोज करोड़ों लोग निर्दोष बच्चों और महिलाओं के क्षत-विक्षत शव देख रहे हैं। पूरा गाजा खंडहर में तब्दील हो चुका है। एक सैन्य विशेषज्ञ के अनुसार फिलिस्तीन में जितने बम गिराए गए हैं उससे हुई तबाही 5-6 परमाणु बम जितनी है। आत्मरक्षा के नाम पर मौत के तांडव से आमजन आहत है। साथ ही वह बेबस है। इसी परिप्रेक्ष्य में अमेरिका में हुई घटनाओं को समझा जाना चाहिए।
अमेरिका और पश्चिमी देशों में फिर से जेहादी आतंकवाद के खतरे का ढिंढोरा पीटा जा रहा है, लेकिन यह आत्म-चिंतन नहीं हो रहा है कि अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, सीरिया और लेबनान में मजहबी कट्टरवाद को किसने बढ़ावा दिया। इन देशों में क्यों एकतरफा और मनमाने तरीके से सैन्य हस्तक्षेप किया गया। अभी हाल में बांग्लादेश और सीरिया में धर्मनिरपेक्ष सरकारों को सत्ता से बेदखल किया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें अमेरिका और पश्चिमी देशों की निश्चित भूमिका थी।
सीरिया में बशर अल-असद के स्थान पर जिहादी नेता अबू मोहम्मद अल जोलानी सत्ता पर काबिज है। पश्चिमी देशों की मीडिया इन दिनों उसकी छवि सुधारने में लगी हुई है। लेकिन आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा कि पश्चिमी देशों ने कैसे भस्मासुर को तैयार किया है। कुछ ऐसे ही हालात पड़ोसी बांग्लादेश में दिखाई देते हैं।
शेख हसीना के स्थान पर सेना और इस्लामी तत्वों की कठपुतली के रूप में मोहम्मद युनूस सत्तारूढ़ है। वहां इस्लामी तत्वों का तांडव चल रहा है जिसका शिकार मुख्य रूप से हिन्दू अल्पसंख्यक बन रहे हैं। तात्कालिक रूप से बांग्लादेश का घटनाक्रम पश्चिमी देशों के भू-रणनीतिक हितों के अनुकूल हो लेकिन इसके दूरगामी परिणाम भयावह होंगे। केवल भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों पर भी इसका असर हो सकता है?
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