Sunita Williams Returns : सुनीता विलियम्स की वापसी पर अंतरिक्ष रणनीतिकार डॉ. पीके घोष बोले 'ये बड़ी उपलब्धि'

Last Updated 19 Mar 2025 11:36:07 AM IST

अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर नौ महीने के लंबे मिशन के बाद पृथ्वी पर वापस लौट आए हैं। उनकी वापसी पर अंतरिक्ष रणनीतिकार डॉ. पीके घोष ने आईएएनएस से खास बातचीत की। इस दौरान उन्होंने सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष से वापसी को लेकर कई सवालों का भी जवाब दिया।


अंतरिक्ष रणनीतिकार डॉ. पीके घोष ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "अंतरिक्ष से वापस आने वाली हर उड़ान एक बड़ी उपलब्धि है। मैं आपको बता सकता हूं कि इसके पीछे सैकड़ों-हजारों लोग काम करते हैं, जो सामने नहीं दिखते। सुनीता विलियम्स के मामले में यही कहूंगा कि वह 8-9 दिनों के लिए गई थीं और वहां 9 महीने तक रहीं। सब कुछ ठीक रहा और अब वे वापस आ गई हैं और मुझे लगता है कि यह इस बात का जश्न है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने इस अंतरिक्ष में आने वाली कई समस्याओं पर विजय प्राप्त कर ली है।"

सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर के पृथ्वी पर लौटने पर क्या अनुभव हो सकता है? इस पर उन्होंने कहा, "अगर आप मेडिकल समस्याओं की बात कर रहे हैं, तो अंतरिक्ष शरीर के लगभग हर हिस्से को प्रभावित करता है। वहां बेबी फूड (बच्चे का खाना) खाना पड़ता है, क्योंकि अंतरिक्ष में चल नहीं सकते। दिल पर असर पड़ता है, किडनी पर असर पड़ता है। पथरी की समस्या बढ़ जाती है। सबसे बड़ी दिक्कत रेडिएशन की है, जो आपके डीएनए को भी नुकसान पहुंचाता है। अंतरिक्ष में आपकी लंबाई बढ़ जाती है, लेकिन पृथ्वी पर वापस आने पर आप फिर छोटे हो जाते हैं।"

स्पेसएक्स के ड्रैगन को पृथ्वी पर लौटने में 17 घंटे का समय लगने के सवाल पर डॉ. पीके घोष ने कहा, "असली यात्रा सिर्फ 55 मिनट की होती है।"

तो फिर 17 घंटे क्यों लगते हैं? जब अंतरिक्ष यान अलग होता है, तब सारी जांच होती है। वे हर चीज चेक करते हैं और पृथ्वी स्टेशन से अंतिम मंजूरी मिलने के बाद ही नीचे की यात्रा शुरू होती है। जैसा मैंने बताया कि असली यात्रा 55 मिनट की है, लेकिन सारी प्रक्रियाएं पूरी करने में 17 घंटे लग जाते हैं।"

उन्होंने अंतरिक्ष यान की सुरक्षित और नियंत्रित स्प्लैशडाउन या जमीन पर लैंडिंग की महत्वपूर्ण बातों पर कहा, "अंतरिक्ष यान की लैंडिंग में हर सेकंड चुनौतियां हैं, लेकिन मैं कुछ खास बातें बताता हूं। सबसे पहला उतरने का कोण बहुत महत्वपूर्ण है, अगर कोण अंतरिक्ष यान से कम है, तो उसे बातचीत करनी चाहिए और कहीं और जाना चाहिए। अब यदि आप अवरोहण का कोण बनाते हैं, तो यह तेजी से नीचे आता है और टूट भी जाता है, इसलिए यह बिल्कुल सही होना चाहिए। जब अंतरिक्ष यान वायुमंडल में पृथ्वी पर आता है, तो तीव्र घर्षण होता है और बाहर का तापमान बढ़ता है और अंत में आपको गति कम करनी होती है, इसलिए ये तीन कारक हैं, जिन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए दूर करना होगा कि यह स्पलैश ठीक है।"

उन्होंने शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करने के सवाल पर कहा, "अंतरिक्ष यात्रियों को बहुत सख्त ट्रेनिंग दी जाती है। उन्हें हर तरह से तैयार किया जाता है। कुछ को आंखों पर पट्टी बांधकर टेस्ट देना पड़ता है। उन्हें अंधेरे में भी हर स्विच को पहचानना होता है, जो सैकड़ों की संख्या में होते हैं। इस तरह के ऊंचे मानक पर उनकी ट्रेनिंग होती है।"

क्या भारत के लिए भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों और पुनः प्रवेश और लैंडिंग प्रौद्योगिकियों पर अन्य देशों के साथ सहयोग करने के कोई अवसर हैं? इस सवाल पर उन्होंने कहा, "सबसे पहले सहयोग की बात करें तो हम बहुत सारे लोगों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। हम रॉस कॉसमॉस के साथ सहयोग कर रहे हैं। हम चांद पर मानवयुक्त यान भेज रहे हैं। हमने बहुत सारी तकनीक खुद विकसित की है, ज्यादातर तकनीक हमने ही बनाई है।"

आईएएनएस
नई दिल्ली


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