कश्मीर में जमीन खरीदना अब भी आसान नहीं
विशेष दर्जे वाले सम्पूर्ण राज्य जम्मू-कश्मीर से बीती 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 व 35ए को हटाए जाने के बाद अब केंद्रीय गृह मंत्रालय नवगठित संघ शासित जम्मू-कश्मीर में नौकरी व जमीन खरीदने को लेकर मसौदा तैयार करने में लगा है।
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सूत्रों का कहना है कि भले ही सूबा-ए-जम्मू-कश्मीर से उक्त विवादित प्रावधान हटा लिए गए हों, लेकिन बाहरी राज्यों के लोगों के लिए अब भी यहां जमीन व नौकरी पाना सहज नहीं लगता। इसके लिए अब संघ शासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर तथा केंद्रीय गृह मंत्रालय की उच्च स्तरीय टीम लगातार बैठकें कर यहां के मूल बाशिंदों के हित में जमीन व नौकरी की सुरक्षा की बावत गाईड लाईस तैयार करने में लगी है।
गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने के समय यहां के निवासियों में यह आशंका तेजी से फैल गई कि अब बाहरी राज्य का कोई भी व्यक्ति यहां जमीन तथा नौकरी हासिल कर सकता है। सूत्रों का कहना है कि संघ शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जहां विकास को गति देने की कोशिश में है, वहीं अब नई व्यवस्था में विशेषकर यहां की जमीन व नौकरियों को लेकर गहन सोच-विचार के बाद दिशा-निर्देश निधारित करने की कोशिश में है।
बाहरी राज्यों से यहां आकर उद्योग लगाने वालों व उनके स्टाफ के अलावा यहां तैनात आईएएस, आईपीएस व अन्य केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों को यहां जमीन खरीदने का तत्काल लाभ मिल सकता है। परंतु बाहरी राज्यों के अन्य लोगों के लिए यहां 15 साल तक निरंतर रहने की शर्त लगाई जा सकती है। इस मसौदे को पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में लागू नियमों को मद्देनजर रखकर भी तैयार किया जा रहा है, क्योंकि वहां भी 15 साल तक नियमित रूप रहने वाले व्यक्ति को स्थाई निवासी के तौर पर लाभ मिलता है।
सूत्रों का कहना है कि इस बावत जो मसौदा तैयार किया जा रहा है, उसमें पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों, पंजाब से यहां लाकर बसाए गए बाल्मीकि समाज के लोगों के साथ-साथ बरसों से रह रहे गोरखा समुदाय के लोगों को तत्काल प्रभाव से यहां का स्थाई निवासी प्रमाण पत्र जारी किया जा सकता है। ये लोग लंबे अरसे से यहां की नागरिकता के लिए जद्दोजहद करते रहे हैं। यहां के स्टेट सब्जेक्ट प्रमाण पत्र यानि नागरिकता के अभाव में इन्हें न तो यहां जमीन खरीदने का हक मिला और न ही यहां की सरकारी नौकरियों में मौका मिला। ये लोग यहां की विधानसभा से लेकर स्थानीय निकाय तथा पंचायत चुनाव में भी भाग नहीं ले सकते थे। विवादित अनुच्छेदों के हटने के बाद इनमें व्यापक उम्मीद जगी है।
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