13 साल से अनुत्तरित सवाल, पूछने वाला आखिर था कौन!

Last Updated 19 Sep 2017 11:25:24 AM IST

देश के लिए कानून बनाने वाली सबसे बड़ी पंचायत में फर्जीवाड़ा हो और दोषी का पता न चल पाए तो हैरानी होती है. लेकिन ये सब हुआ है. अपने ही देश की संसद में. संसद ने भी माना है कि फर्जीवाड़ा हुआ है. फिर भी तेरह साल बीत गये, लेकिन ये पता लगाने की कोशिश ही नहीं की गई कि आखिर सवाल पूछा किसने था.


संसद (फाइल फोटो)

अगस्त 2005 में ग्वालियर से तत्कालीन सांसद रामसेवक सिंह को लोकसभा सचिवालय के संबंधित प्रकोष्ठ से बताया गया कि उन्होंने लोकसभा में प्रश्न पूछने के लिए जो अनुरोध-पत्र दिया है, उस पर उनके हस्ताक्षर मेल नहीं खा रहे हैं. हैरान सांसद ने पत्र पाने के बाद से अब तक कई बार अनुरोध किया कि इसकी जांच की जाए कि उनके नाम पर किसने सवाल पूछा. इसके बाद भी अब तक सवाल पूछने वाले का पता नहीं चल सका. संसद की ओर से पहल न होते देख श्री सिंह ने पुलिस में मुकदमा भी लिखवा दिया और वो भी नामजद. लेकिन अभी तक पुलिस भी खामोश है. जबकि मंगलवार को रिश्वत मामले में कोर्ट में पुलिस की चार्जशीट पर आरोप तय किए जाने हैं. अपनी चार्जशीट में दिल्ली पुलिस कह चुकी है कि रामसेवक सिंह ने सवाल नहीं पूछे.

रामसेवक सिंह वही हैं, जिन्हें रिश्वत लेकर सवाल पूछने के मामले में 11 सांसदों के साथ सदन की सदस्यता से बर्खास्त कर दिया गया था. श्री सिंह अब कागजों का मोटा पुलिंदा लेकर अपनी बेगुनाही के दावे कर रहे हैं. बकौल श्री सिंह लोकसभा सचिवालय के संबंधित प्रकोष्ठ में 12 अगस्त 2005 को उनकी ओर से कुछ सवाल पूछने के लिए आग्रह पत्र दाखिल किया गया था. श्री सिंह का दावा है कि उस प्रपत्र पर बिल्कुल अलग तरह के दस्तखत देख कर संबंधित प्रकोष्ठ ने उन्हें ये कागज ये नोट लगा कर वापस कर दिया कि इस पर सांसद के दस्तखत मेल नहीं खाते.

चूंकि ये सवाल उन्हीं सवालों से मिलते जुलते थे, जिन्हें पूछने के लिए रिश्वत लेने की बात कही गई थी. लिहाजा संसद की एथिक्स कमेटी में सुनवाई के दौरान भी इन सवालों का जिक्र आया. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया है कि किसी ने श्री सिंह के फर्जी दस्तखत बना कर सवाल पूछने की कोशिश की है. ये अलग बात है कि कमेटी ने श्री सिंह को भी रिश्वत लेने का दोषी माना और बाद में संसद के प्रस्ताव से उनकी सदस्यता खत्म कर दी गई.

इसके बाद अपने ऊपर लगे कलंक को धोने के लिए श्री सिंह लगातार लोकसभा सचिवालय और स्पीकर के यहां जाते रहे. उन्होंने लोकसभा सचिवालय के संबंधित प्रकोष्ठ की सीसीटीवी फुटेज की मांग की ताकि देखा जा सके कि किसने सवाल पूछने वाला प्रपत्र दाखिल किया है. इस पर भी कोई जवाब उन्हें नहीं मिला. जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने संसद के ही सूचना के अधिकार कानून का सहारा लिया. उन्होंने लोकसभा सचिवालय से आईटीआई के तहत पूछा कि क्या 2004 से 2013 तक लोकसभा में फर्जी दस्तखत से सवाल पूछने का कोई मामला सामने आया है.

इसके जबाव में लोकसभा सचिवालय से बताया गया कि नहीं ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है. इसके बाद और आरटीआई दाखिल करके कई बार श्री सिंह की ओर से पूछताछ की गई. बार-बार यही जवाव मिला और लोकसभा सचिवालय ने ये भी कह दिया कि उनके पास जो जानकारी थी वो उन्हें दे दी गई और अब आगे उन्हें कोई जानकारी नहीं दी जाएगी. इसके विरुद्ध जब श्री सिंह संसदीय एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट और लोकसभा के जवाब को लेकर केंद्रीय सूचना आयोग गए तो कहा गया कि फर्जी दस्तखत के जरिए सवाल पूछा गया है तो पुलिस में जाना चाहिए.

इस पर श्री सिंह ने थाना पार्लियामेंट स्ट्रीट में धारा 468/ 471 के तहत एफआईआर नं. 0083/14/07/20014 से मुकदमा दर्ज करा दिया. श्री सिंह का कहना है कि चूंकि उन्हें फंसाने के लिए जो सवाल उनसे पूछने के लिए कहने के दावे किए जा रहे थे उनसे मिलते जुलते सवाल ही उस प्रपत्र पर किए गए. साथ ही उस समय जो लोग स्टिंग कर रहे थे उन्हें संसद में जाने आने की अनुमति थी, लिहाजा उन्हीं लोगों ने सवाल पूछे हैं.

इस तर्क के आधार पर श्री सिंह ने स्टिंग करने वाले अनिरुद्ध बहल और सुभाषिनी को नामजद भी किया. श्री सिंह का कहना है कि ये एफआईआर भी पुलिस कमिश्नर के आदेश पर दर्ज की गई, लेकिन पुलिस ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की. पूर्व सांसद श्री सिंह का ये भी आरोप है कि स्टिंग करने वाले श्री बहल ने संसदीय समिति के सामने कहा है कि उन्हें इस स्टिंग के लिए एक निजी चैनल से 57 लाख रुपये की रकम मिली और साथ ही ये भरोसा भी दिया गया कि अगर कोई कानूनी दांव पेंच फंसता है तो चैनल उससे निबटने के लिए 15 लाख रुपये तक की रकम खर्च के लिए देगी.

बकौल श्री सिंह बहल ने हाई कोर्ट में स्टिंग को जनिहत में बता कर अपने खिलाफ रिश्वत देने के आरोपों को हाईकोर्ट से खारिज करा लिया. उनका कहना है कि मुनाफा लेकर किए स्टिंग को जनहित में बता कर बहल ने गलतबयानी भी की है. इस पर भी उनके विरुद्ध मामला दर्ज किया जाना चाहिए. पुलिस का कहना है कि डीसीपी नई दिल्ली बी.के. सिंह का कहना है कि जांच जारी है. उनका कहना है- ‘अभी इसकी जांच लैब से कराई जानी है कि क्या दस्तखत फर्जी है.’ उन्होंने आरोपियों से पूछताछ करने के सवाल पर कहा कि इस बारे में वे और जानकारियां नहीं देना चाहते, लेकिन पुलिस अपना काम कर रही है.

मनोज मनु/राजकुमार पांडेय
सहारा न्यूज ब्यूरो


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment