चीन की किरकिरी, भारत जिम्मेदार राष्ट्र

Last Updated 19 Sep 2017 05:58:28 AM IST

जापान के साथ भारत की लगातार बढ़ रही नजदीकी से चीन की चिंता बढ़ गयी है. भारत को विश्व में और दक्षिण एशिया में अलग-थलग करने की कोशिश में वह खुद अलग-थलग नजर आने लगा है.


भारत के प्रधामंत्री नरेन्द्र मोदी व जापान के प्रधानमंंत्री शिंजो आबे (फाइल फोटो)

लगातार कोशिशों के बावजूद चीन के दाव न केवल उल्टे पड़े हैं बल्कि वह अपनी ही गलत चालों में घिर गया है. व्यापार के क्षेत्र में भारत से बड़ा नुकसान होने की संभावनाओं के अलावा आतंकवाद पर पाकिस्तान को सर्मथन करने के मामले में भी ब्रिक्स देशों की बैठक में चीन को मुंह की खानी पड़ी है. उत्तर कोरिया को सर्मथन से भी चीन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान हुआ है. इन सबके बीच भारत एक बेहतर जिम्मेदार राष्ट्र के रूप मे वि राजनीति में उभरा है.

सूत्रो ने बताया कि चीन भी आर्थिक मंदी का शिकार है और लम्बे समय से चीन की कई इनफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी योजनांए रुकी पड़ी हैं जिसका वहां के बैंकों पर काफी बुरा असर पड़ा है. लेकिन चीन के हालिया व्यवहार ने चीन की देश से बाहर बाजार खोजने की मुहिम को धक्का लगा. यहां तक कि उसकी विसनियता पर भी प्रश्नचिह्न लगा है. भारत को घेरने की नीति के तहत चीन ने श्रीलंका के हम्मनपोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए लीज पर लिया लेकिन वहां पर अभी से विरोध शुरू हो गया है.

भारत पर वन बेल्ट वन रोड में शामिल होने के लिए चीन कई तरह से दबाव बना रहा था और डोकलाम गतिरोध को उसी का हिस्सा बताया जा रहा था लेकिन इस मामले मे उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शमिर्ंदगी झेलनी पड़ी. चीन का अफ्रीका से सबसे ज्यादा व्यापार होता है लेकिन उसकी विसनीयता खराब है. चीन लेदराइट के उत्पादन में अग्रणी देश है. अफ्रीका इसका सबसे बड़ा खरीदार है. इसके बावजूद लगभग 80 फीसद लेदराइट पहले भारत आता है और वहां से इसे अफ्रीका भेजा जाता है.

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की भारत यात्रा के बाद चीन की तरफ से बयान जारी हुआ कि द्विपक्षीय व्यापार की बजाय ग्रुप की तरह काम करने से बेहतर प्रगति संभव है. इन सबके पीछे चीन को अपने निवेश को फलीभूत करने की कोशिश है जो भारत के मदद के बिना संभव नजर नहीं आ रही है. भारत और चीन के बीच व्यापार लगातार बढ़ रहे हैं. भारत-चीन से 2010-11 मे लगभग 43.5 बिलियन डालर का सामान आयात करता था जो 2016-17 मे बढ़कर 61.3 बिलियन डालर हो गया है. दूसरी तरफ भारत का निर्यात 2010-11 के 14.2 बिलियन डालर के मुकाबले घटकर 10.2 बिलियन डालर हो गया है.

इसके अलावा यह भी महत्वपूर्ण है कि पिछले 6-7 सालों मे भारत के लिए वित्तीय घाटा 29.3 फीसद से बढ़कर 51.1 फीसद हो गया है जो एक चिंता का विषय है. हालांकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में चीन अन्य देशों के मुकाबले तो काफी पीछे रहा है क्योंकि  2016-17 में भारत मे कुल 60 बिलियन डालर एफडीआई भारत आया जिसमें चीन की कुल हिस्सेदारी 278 मिलियन डालर ही रही जबकि चीन ने भारत में अब तक 2000 से 2017 की बीच कुल 1.63 बिलियन डालर निवेश एफडीआई के माध्यम से किया है.

विनोद के शुक्ल
सहारा न्यूज ब्यूरो


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment