मुस्लिम पर्सनल लॉ की समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इस्लामिक पर्सनल लॉ की समीक्षा करने का फैसला किया है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ की समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट |
सुप्रीम कोर्ट इसके जरिये उन प्रावधानों को हटाया जाना है, जो मनमाने ढंग से दिए जाने वाले तलाक और पहली शादी के दौरान ही की जाने वाली दूसरी शादी से मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं.
हालांकि, इस विवादास्पद कदम से मुस्लिम समुदाय का एक धड़ा निराश हो सकता है, जो इन सुधारों का विरोध करता है. जस्टिस एआर दवे और जस्टिस एके गोयल की बेंच ने मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू से गुजारिश की है कि वह एक बेंच का गठन करके मुस्लिम पर्सनल लॉ में लैंगिक समानता के मुद्दे का समाधान संविधान की तर्ज पर करें, जो लिंग के आधार पर विभेद को प्रतिबंधित करता है.
बेंच ने इस बात पर हैरत जताई कि संविधान में जब सबको बराबरी का अधिकार दिया गया है तो मुस्लिम महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव क्यों हो रहा है. बेंच ने कहा, \'मनमाने तलाक और पहली शादी बने रहने के दौरान ही पति के दूसरा विवाह कर लेने के खिलाफ कोई सुरक्षा उपाय न होने से इन महिलाओं को सुरक्षा नहीं मिल पाती.\'
भारत में हर धर्म के लिए अलग पर्सनल लॉ हैं जो विवाह, उत्तराधिकार, गोद लेने और गुजाराभत्ता की नीतियों को नियंत्रित करते हैं. हिंदू फैमिली लॉ 1950 के दशक में संसोधित किया गया था, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ को लेकर एक्िटविस्ट लंबे समय से तर्क करते रहे हैं. इसमें कोई खास बदलाव नहीं हुआ है.
इस वर्ष की शुरुआत में किए गए सर्वे में करीब 90 फीसद मुस्लिम महिलाओं ने तीन बार तलाक कहने और बहुविवाह की परंपरा को खारिज करने की मांग की थी. प्रमुख इस्लामिक विद्वान और नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटीज के पूर्व अध्यक्ष ताहिर महमूद ने सुप्रीम कोर्ट के इस कदम का स्वागत किया है.
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